जो इस्लाम की दूसरी सबसे पवित्र मस्जिद पर हर दिन हमला करता हो और उसपर क़ब्ज़ा करने की साज़िशें रच रहा हो, आज उससे एक ऐसा मुस्लिम देश अपने संबंधों को समान्य करने के लिए हाथ-पैर मार रहा है जो दुनिया भर के मुसलमानों का केंद्र है।
एक ख़बर कि जिसने पूरी दुनिया के मुसलमानों, विशेषकर फ़िलिस्तीनी मुसलमानों के ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है, वह यह है कि अपने आपको दुनिया भर के मुसलमानों का ठेकेदार समझने वाले आले सऊद शासन ने इस्राईल से गैस ख़रीदने की योजना पर काम आरंभ कर दिया है। इस ख़बर में सबसे ध्यान योग्य बात यह है कि एक ऐसा अवैध शासन कि जो फ़िलिस्तीनियों की ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से ज़मीन पर क़ब्ज़ा करके वजूद में आया है, उस आतंकी शासन से सऊदी अरब गैस ख़रीदेगा, जबकि उस गैस पर केवल और केवल फ़िलिस्तीनियों का अधिकार है।
वहीं इस बात में कोई संदेह नहीं है कि गैस के बदले में सऊदी अरब जो इस्राईल को पैसे देगा, वह पैसा फ़िलिस्तीनियों और इस्लामी जगत को नुक़सान पहुंचाने के लिए ही इस्तेमाल होगा। प्राप्त सूचना के मुताबिक़, हिब्रू भाषा के आर्थिक समाचार पत्र ग्लोब्स ने यह ख़बर दी है कि सऊदी अरब, मिस्र और अवैध ज़ायोनी शासन मिलकर रियाज़ को गैस की आपूर्ति के लिए एक संयुक्त परियोजना पर अध्ययन कर रहे हैं। इस परियोजना के तहत अक़्बा की खाड़ी से सऊदी अरब की सीमा तक गैस पाइपलाइन बिछाई जाएगी
इस्राईली समाचार पत्रों ने दावा किया है कि यह गैस परियोजना "मोहम्मद बिन सलमान" की उस परियोजना की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करेगी जिसे नियोम सिटी कहा जाता है। साथ ही लाल सागर और अक़्बा की खाड़ी की अन्य पर्यटन परियोजनाओं के लिए भी इससे लाभ उठाया जा सकेगा। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यद्यपि अवैध ज़ायोनी शासन की सऊदी अरब को गैस आपूर्ति करने की योजना अपने प्रारंभिक चरण में है, लेकिन इसे रियाज और तेल अवीव के बीच आर्थिक संबंधों को लेकर एक दूसरे के बीच गहरे होते रिश्तों के रूप में भी देखा जा सकता है। द ग्लोब्स अख़बार ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट में घोषणा की थी कि सऊदी अरब ने मिस्र से ख़रीदे गए तीरान और सनाफ़ीर नामक दो द्वीपों को अपने क़ब्ज़े में ले लिया है। इन दोनों द्वीपों में इस्राईली पर्यटकों को नज़र में रखते हुए सऊदी अरब ने बड़ी संख्या में होटल और कैसीनो का निर्माण शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि यह दोनों द्वीप इस्राईल और सऊदी अरब के बीच गहरे होते संबंधों की डोर को और मज़बूत करेंगे। वहीं फ़िलिस्तीनी जनता और प्रतिरोध गुटों ने रियाज़ सरकार के इस क़दम पर अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए इसे न केवल फ़िलिस्तीनी राष्ट्र बल्कि पूरे इस्लामी जगत के लिए शर्मनाक और विश्ववासघात बताया है।