इस बार कश्मीरी अपने सेब को लेकर क्यों है परेशान
जम्मू एवं कश्मीर के हर्टिकल्चर विभाग के मुताबिक, सेब, अखरोट और बादाम की खेती प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर इस इलाक़े में क़रीब 23 लाख लोगों को रोज़गार मुहैया कराती है।
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सर्द और धुंध भरे दिन भारत प्रशासित कश्मीर के पुलवामा ज़िले में सैकड़ों सेब उत्पादक किसान एक फल मंडी में टिन के अस्थाई शेड में अपनी फसल को लेकर पहुंचे थे। इस उम्मीद में कि व्यापारी उनके सेब खरीदने पहुंचेंगे।
इस साल किसानों के बीच सेब की गुणवत्ता को लेकर चिंता है क्योंकि इस बार उनकी क्वालिटी बहुत अच्छी नहीं है और इससे दाम पर भी असर पड़ने वाला है।
कश्मीर अपने विभिन्न किस्मों के सेब के लिए भारत में जाना जाता है। लेकिन फंफूद लगने, जलवायु परिवर्तन और कई आर्थिक दिक्कतों से भरी चुनौतियों ने इस फलते फूलते उद्योग को संकट में डाल दिया है।
आकार, रंग और गुणवत्ता के अनुसार, सेबों को ए, बी और सी की श्रेणी में रखा जाता है। ए प्रीमियम कैटेगरी है जबकि बी और सी फंफूद लगे सेब होते हैं, हालांकि बी, सी के मुकाबले कम संक्रमित होता है।
पुलवामा के एक सेब बागवान ग़ुलाम नबी मीर कहते हैं, “इस साल सेब उत्पादन का क़रीब 40% सी- ग्रेड का है।
जम्मू एवं कश्मीर के हर्टिकल्चर विभाग के मुताबिक, सेब, अखरोट और बादाम की खेती प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर इस इलाक़े में क़रीब 23 लाख लोगों को रोज़गार मुहैया कराती है।
श्रीनगर के एक स्वतंत्र अर्थशास्त्री एजाज़ अयूब ने बताया कि हर साल 20 लाख टन से भी ज्यादा सेब निर्यात होता है, जिससे 120 अरब रुपये का राजस्व हासिल होता है। ये कश्मीर के टूरिज़्म उद्योग का दोगुना है।
मौसम की मार पड़ी सेब पर
लेकिन मौसम में अनिश्चितता ने इस पर कहर ढाना शुरू कर दिया है।
50 साल के अब्दुल्ला गफ़्फ़ार क़ाज़ी कहते हैं, “अप्रैल से मई के बीच बेमौसम की बारिश से फ़सल में फंफूद लगती है। अगर किसान कीटनाशक छिड़कते हैं तो बारिश उन्हें बहा ले जाती है।
शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चरल साइंसेज़ में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. तारिक़ रसूल का कहना है कि मौसम की अतिवृष्टि से सेब की फसल के आकार, क्वालिटी और मात्रा पर भी असर पड़ता है।
मौसम के आधार पर गर्मियों में या वसंत के मौसम में फसल में रोग लगता है और सेब की गुणवत्ता बी से सी ग्रेड की हो सकती है।
कश्मीर के बडगाम ज़िले में चडूरा के 58 साल के किसान ग़ुलाम मोहम्मद भट का कहना है कि उन्होंने मौसम में इतनी अनिश्चितता यहां पहले कभी नहीं देखी।
वो कहते हैं, "मई में ओले पड़े, जिससे मेरी फसल बर्बाद हो गई।"
जबकि अगस्त और सितम्बर में लंबे समय से सूखे की स्थिति से पानी की कमी हो गई जिससे सेबों का स्वाद फीका का हो गया।
जम्मू कश्मीर के मौसम विभाग का डेटा दिखाता है कि पिछले सात सालों में कश्मीर में बिगड़ते मौसम की घटनाएं बढ़ी हैं।
साल 2010 और 2022 के बीच जम्मू एवं कश्मीर में खराब मौसम की वजह से 550 से अधिक लोग मारे गए।
18 जुलाई 2021 को कश्मीर में आठ सालों में सबसे अधिक गर्म दिन (35 डिग्री सेल्सियस) रहा। उसी साल, जनवरी में घाटी में 30 सालों में सबसे सर्द रात का रिकॉर्ड भी दर्ज किया गया।
कश्मीर में स्वतंत्र रूप से मौसम अनुमान लगाने वाले फ़ैज़ान आरिफ़ केंग के अनुसार, इस साल मार्च से मध्य अप्रैल के बीच यहां तापमान सामान्य से 12 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।
इसकी वजह से सेब के पेड़ों में जल्द फूल आ गए। लेकिन इसके बाद मौसम में अचानक बदलाव आया और जून तक तापमान समान्य से नीचे ही बना रहा।