नसीरुद्दीन शाह ने कहा- सौ साल बाद लोग भीड़ देखेंगे और वे गदर-2 भी देखेंगे। वे ये भी देखेंगे कि कौन सी फ़िल्म अपने समय के सच को दर्शाती है। क्योंकि फ़िल्म ही एक ऐसा माध्यम है, जो ये कर सकता है. ये काफ़ी भयावह है कि फ़िल्मकार ऐसी फ़िल्म बना रहे हैं, जो हर ग़लत चीज़ की सराहना करता है. ये ख़तरनाक ट्रेंड है।
बिना लाग लपेट के अपनी बात रखने के बारे में सवाल पूछे जाने पर नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि वे इस पर ध्यान नहीं देते कि लोग उनके बारे में क्या राय रखते हैं।
उन्होंने कहा, "बचपन से ही मैंने इसे अहमियत नहीं दी है। 14 साल की उम्र से ही मैं जानता था कि मुझे क्या करना है। मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मैं अपना जीवन वो काम करते हुए बिता रहा हूँ, जिससे मैं प्यार करता हूँ। जो आप सोचते हो, वो बोलना काफ़ी महत्वपूर्ण है। दक्षिणपंथी भी यही कह रहे हैं कि जो वे सोचते हैं, वे बोलते हैं और वे ऐसा बोलने को स्वतंत्र हैं। मुझे क्यों डरना चाहिए?"
अपने बेहतरीन अभिनय के कारण नसीरुद्दीन शाह हमेशा सुर्ख़ियों में रहे हैं। लेकिन विवाद से भी उनका चोली दामन का नाता रहा है। वे अपनी टिप्पणियों के कारण वे पहले भी विवादों का केंद्र रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने सिंधी भाषा पर दिए एक विवादास्पद बयान पर माफ़ी मांगी थी।
दरअसल उन्होंने ये कह दिया था कि पाकिस्तान में सिंधी भाषा नहीं बोली जाती। उन्हें भारत में मराठी भाषा को फ़ारसी से जोड़ने पर भी आलोचना का सामना करना पड़ा था। इन दोनों मामलों में उन्होंने स्पष्टीकरण दिया। सिंधी भाषा वाले मामले में तो उन्होंने माफ़ी मांगी। जबकि मराठी भाषा के मामले में उन्होंने कहा कि उनकी बात का ग़लत मतलब निकाला गया।
नसीरुद्दीन शाह नुपूर शर्मा के मामले में भी पीएम मोदी की सरकार को घेर चुके हैं। उस समय उन्होंने कहा था कि बीजेपी सरकार ने कार्रवाई करने में देर की। वर्ष 2021 में उन्होंने हरिद्वार में हुए धर्म संसद पर भी टिप्पणी की थी। आरोप है कि इस धर्मसंसद में मुसलमानों के जनसंहार की अपील की गई थी।
नसीरुद्दीन शाह ने कहा था- अगर इन्हें पता है कि वे किस बारे में बात कर रहे हैं, तो मैं हैरान हूँ ये एक गृह युद्ध के लिए अपील कर रहे हैं। हममें से 20 करोड़ लोग इतनी आसानी से नष्ट होने वाले नहीं हैं। हम 20 करोड़ लोग लड़ेंगे. हम 20 करोड़ लोगों के लिए यह मातृभूमि है। हम 20 करोड़ लोग यहीं के हैं। हमारा यहाँ जन्म हुआ है। हमारे परिवार और कई पीढ़ियां यहीं रहीं और इसी मिट्टी में मिल गईं। मैं इस बात को लेकर निश्चिंत हूँ कि अगर इस तरह का कोई अभियान शुरू होता है तो कड़ा प्रतिरोध होगा और लोगों का ग़ुस्सा फूट पड़ेगा।
वर्ष 2021 में ही नसीरुद्दीन शाह के तालिबान पर दिए बयान को लेकर विवाद खड़ा हो गया था। एक वीडियो में नसीर ने "उन मुसलमानों" की निंदा थी, जो तालिबान की जीत का जश्न मना रहे थे। उन्होंने कहा था कि ये एक ग़लत मिसाल पेश कर रहा है। उन्होंने "भारतीय इस्लाम" की तुलना दुनिया के दूसरे हिस्सों में इस्लामी परंपराओं से की थी।
वर्ष 2020 में नागरिकता क़ानून को लेकर राजनीतिक बहस के बीच नसीरुद्दीन शाह और अनुपम खेर के बीच ज़ुबानी जंग हो गई थी। नसीरुद्दीन शाह ने एक वीडियो इंटरव्यू में अनुपम खेर को 'चापलूस' और 'जोकर' बताया था।