जानें भारत में सैनिटरी पैड का इस्तेमाल कितना सुरक्षित है?
भारत में बेचे जा रहे सैनिटरी पैड्स में थैलेट और वॉलेटाइल ऑर्गेनिक कम्पाउन्ड (वीओसी) जैसे ज़हरीले केमिकल हैं जो शरीर के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
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ये बात दिल्ली में पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था टॉक्सिक्स लिंक द्वारा किए गए शोध में सामने आई है।इस संस्था ने देश में सैनिटरी पैड्स बेचने वाले 10 ब्रैंड्स का अध्ययन किया और पाया कि उसमें ऐसे केमिकल हैं जिनसे कई बीमारियां हो सकती हैं।टॉक्सिक्स लिंक में चीफ़ प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर प्रीति महेश का कहना है कि हालांकि इन पैड्स में इस्तेमाल किए गए थैलेट और वीओसी यूरोपीय संघ के मानदंडों के मुताबिक हैं, लेकिन उनका मक़सद लोगों को इन केमिकल्स के दुष्प्रभावों के बारे में बताना है। तान्या महाजन का कहना है कि टॉक्सिक्स लिंक ने महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर सही मुद्दा उठाया है, लेकिन ये शोध समग्र होना चाहिए क्योंकि इसका सैंपल साइज़ बहुत कम है। ऐसे में ये संकेत ज़रूर देता है, लेकिन हम ये नहीं कह सकते कि ये प्रतिनिधत्व नहीं करता है। इस पर व्यापक शोध होना चाहिए। तान्या महाजन 'दि पैड' प्रोजेक्ट में काम कर रही हैं। ये अमेरिका स्थित एक ग़ैर सरकारी संस्था है और वे इसकी अंतरराष्ट्रीय प्रोग्राम निदेशक हैं। इस संस्था का काम दक्षिण एशिया और अफ्रीका में मेन्स्ट्रुअल हेल्थ को लेकर जागरुकता फैलाना है।
प्रीति महेश भी ये मानती हैं कि शोध का सैंपल साइज़ छोटा है, लेकिन एक ग़ैर सरकारी संस्था के तौर पर उनका काम लोगों को जागरूक करना है और बड़ा सैंपल लेना एक संस्था के लिए संभव नहीं होता है।
क्या कहता है अध्ययन
टॉक्सिक्स लिंक ने अपने शोध में सैनिटरी पैड में अलग-अलग प्रकार के 12 थैलेट पाए। थैलेट दरअसल एक प्रकार का प्लास्टिक होता है जो पैड्स को लचीलापन देता है और पैड को टिकाऊ बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। 'रैप्ड इन सीक्रेसी: टॉक्सिक केमिकल्स इन मैन्स्ट्रुअल प्रोडक्टस' नाम की इस रिपोर्ट में बताया गया है इस शोध के लिए इस्तेमाल किए गए सैंपल में 24 प्रकार के वीओसी पाए गए जिसमें ज़ाइलीन, बेंजीन, क्लोरोफॉर्म आदि शामिल हैं।
इनका इस्तेमाल पेंट, नेल पॉलिश रिमूवर, कीटनाशकों, क्लिन्ज़र्स, रूम डीओडिराइज़र आदि में होता है। टॉक्सिक्स लिंक में चीफ़ प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर प्रीति महेश बीबीसी से बातचीत में कहती हैं कि ''हमने शोध के लिए भारतीय बाज़ार में उपलब्ध 10 अलग-अलग कंपनियों के जैविक और अजैविक दोनों तरह के सैनिटरी पैड्स लिए। हमने इन दोनों पैड्स में मौजूद केमिकल की जांच की और पाया गया कि इन सैनिटरी पैड्स में थैलेट और वीओसी था।''
उनके अनुसार, "एक महिला कई वर्षों तक सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करती है। ये केमिकल वजाइना के ज़रिए शरीर में प्रवेश करते हैं, उसका असर सेहत पर पड़ता है।" वे बताती हैं कि यूरोपीय संघ के अनुसार, एक सैनिटरी पैड में कुल वज़न का 0 ।1 प्रतिशत से ज्यादा थैलेट नहीं होना चाहिए और इन सैंपल में भी थैलेट इसी दायरे में पाए गए हैं। ये शोध बड़े ब्रांड पर किए गए हैं, ऐसे में ये देखा जाना चाहिए कि जो छोटे ब्रैंड हैं, उनमें उपयुक्त मात्रा से ज़्यादा तो इन केमिकल का इस्तेमाल नहीं हो रहा है क्योंकि भारत में ऐसी कोई सीमा तय ही नहीं की गई है।
वीओसी का असर
आंखों , नाक और त्वचा में एलर्जी
सिर में दर्द
गले में इन्फेक्शन
लिवर और किडनी पर असर
तान्या महाजन कहती हैं, ''थैलेट और वीओसी हर उत्पाद में पाए जाते हैं चाहे वो कपड़े हों या खिलौने। लेकिन किस समय जाकर ये हानिकारक हो जाते हैं ये देखना ज़रूरी हो जाता है क्योंकि जो सैंपल लिए गए उनमें इन केमिकल का इस्तेमाल एक सीमा में ही किया गया है।'' वे आगे कहती हैं, ''हमें ये नहीं पता कि थैलेट किस कच्चे माल से आ रहा है, लेकिन ये पता है कि वो पॉलिमेरिक पदार्थ से आता है जो पैड के ऊपरी हिस्से में या निचले हिस्से में इस्तेमाल होता है। इस पॉलीमर का इस्तेमाल सोखने के लिए भी होता है। लेकिन हमें ये समझना होगा इसका विकल्प क्या हो सकता है।''
वे कहती हैं कि सैनिटरी पैड्स की जगह क्या कॉटन पैड, मैन्स्ट्रुअल कप, टैंपून हो सकता है, लेकिन इनमें कैसे उत्पाद या केमिकल का इस्तेमाल हो रहा है और वे कितने सुरक्षित हैं, उसे लेकर डेटा होना चाहिए।
मेन्स्ट्रुअल हेल्थ एलांयस इंडिया (एमएचएआई) के आकलन के मुताबिक़ क़रीब 12 करोड़ महिलाएं सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करती हैं। ऐसे में इससे होने वाला कचरा अभी भी एक समस्या बना हुआ है। भारत में ये अनुमान है कि क़रीब 30 से अधिक ऐसी संस्थाएं हैं जो रियूज़ेबल या कई बार इस्तेमाल होने वाले सैनिटरी पैड्स बना रही है। इसमें केले के फ़ाइबर, कपड़ा या बैंबू से बनने वाले पैड्स शामिल हैं। जानकारों के मुताबिक़ भारत में सरकार को सैनिटरी पैड्स में इस्तेमाल होने वाले केमिकल को लेकर मानदंड तय करने की ज़रूरत है क्योंकि ऐसे कई ब्रैंड या कंपनियां हैं जो सैनिटरी पैड्स बेच रही हैं। साथ ही सरकार को ऐसे ही शोध करने में पहल दिखानी चाहिए।
सोर्स बीबीसी