प्लास्टिक की चीज़ें इस्तेमाल नहीं करने को लेकर दुनियाभर में कई मुहिम छिड़ी हैं। द साइंस जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 2040 तक पूरी दुनिया में क़रीब 1.3 अरब टन प्लास्टिक जमा हो जाएगा। अकेले भारत हर साल 33 लाख टन से अधिक प्लास्टिक पैदा करता है।
भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) और प्रैक्सिस ग्लोबल अलायंस के सहयोग से तैयार की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत हर साल क़रीब 3.4 मिलियन टन यानी 340 करोड़ किलो प्लास्टिक कचरा पैदा करता है और इसके केवल तीस प्रतिशत हिस्से को रिसाइकिल किया जाता है।
भारत में जहां सिंगल यूज़ प्लास्टिक उत्पादों के विरोध में एक मुहिम छिड़ी है वहीं दुनिया भर में लाखों की संख्या में लोग ऐसी मुहिम से जुड़े हैं जो प्लास्टिक के इस्तेमाल का विरोध करता है और इनमें से एक है प्लास्टिक के स्ट्रॉ का विरोध।
प्लास्टिक के स्ट्रॉ के विरोध के लिए माइलो क्रेसो को भी कुछ श्रेय दिया जा सकता है। नौ साल की उम्र में उन्होंने 'बी स्ट्रॉ फ़्री' अभियान की शुरुआत की जिसकी वजह से स्टारबक्स और मैकडोनल्ड जैसी कंपनियों ने प्लास्टिक स्ट्रॉ का इस्तेमाल पूरी तरह बंद कर दिया।
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सिंगल यूज़ प्लास्टिक के विरोध की वजह से आज पेपर, मेटल, कांच और पौधे पर आधारित स्ट्रॉ बाज़ार में बड़ी मात्रा में देखे जा रहे हैं लेकिन क्या इनमें से किसी एक का चयन आसान है और क्या वाकई ये पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते?
लोगों को प्लास्टिक की समस्या सुलझाने के लिए ज़िम्मेदारी भी लेनी होगी। इसके लिए वो सिर्फ़ और सिर्फ़ केवल रिसाइकिल की जाने वाली प्लास्टिक की वस्तुएं ही ख़रीदें। प्लास्टिक की समस्या से निपटने में उठाए गए सरकारी क़दम को समझे और लोगों को समझाएं और उसका पालन करें।"
उनके अनुसार, "इसके लिए स्कूल-कॉलेजों में प्लास्टिक की समस्या पर बातें हो और छात्रों को इसे लेकर जागरूक किया जाए ताकि वो समाज के विभिन्न तबके में इसे लेकर आम जनों में समझ पैदा करने में सहयोग दें।
अगर हम रिसाइकिल की ज़िम्मेदारी सुनिश्चित करते हैं तो प्लास्टिक की समस्या का प्रबंधन करने में सक्षम हो सकेंगे। विकसित देश अपने वहां प्लास्टिक को रिसाइकिल करते रहे हैं और आज वे उससे राजस्व भी कमा रहे हैं।"
भारत में प्लास्टिक का जो कचरा पैदा होता है उसमें सिंगल यूज़ प्लास्टिक के कचरे का हिस्सा 43% है। इसे देखते हुए भारत सरकार जुलाई 2022 से भारत में सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया है।
स्ट्रॉ के साथ ही गुटखे, शैंपू के पाउच, पन्नी, छोटी बोतलें, प्लास्टिक के ग्लास और कटलरी के कई छोटे सामान आदि वो प्लास्टिक उत्पाद हैं जिनका दोबारा इस्तेमाल नहीं होता और ये प्लास्टिक प्रदूषण के बड़े कारणों मे से हैं।
यदि ऐसी वस्तुओं को हम उपयोग में न लाएं और बाज़ार से इन्हें न ख़रीदें तो निश्चित तौर पर इसका फ़ायदा दिखेगा। लिहाजा हमें इसकी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए।
भारत में हर साल बड़ी मात्रा में प्लास्टिक कचरा पैदा होता है लेकिन यह दुनिया भर के उन देशों में आगे है जो रिसाइकिल किए गए प्लास्टिक कचरे का एक सार्थक इस्तेमाल भी कर रहा है।
इसकी शुरुआत साल 2000 में ही हो गई थी जब भारत में सड़क बनाने की तकनीक में प्लास्टिक-तार यानी प्लास्टिक और कोलतार का उपयोग किया जाना शुरू हुआ। दिल्ली से मेरठ तक के रास्ते में प्लास्टिक-तार का उपयोग किया गया है। ऐसे ही कई छोटे छोटे उपायों से प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन करने की दिशा में सार्थक क़दम बढ़ाया जा सकता है।