फिर आगे जितेंद्र त्यागी कहता है कि अगर आपने कोई जाति ले भी ली तब भी उस जाति के लोग आपको स्वीकार नहीं करेंगे। मैंने अपने नाम में त्यागी जोड़ लिया इसका मतलब यह नहीं है कि त्यागी समाज बेटी-रोटी का संबंध बना लेगा। मेरा अतीत उन्हें अपनाने नहीं देगा। सनातन धर्म की ये दिक़्क़त हैं। यहाँ लोग अपनाते नहीं हैं। सातवीं सदी का मज़हब इस्लाम अगर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मज़हब बन गया तो इसकी कुछ ख़ूबियाँ भी हैं।''
जितेंद्र त्यागी आगे कहता है, ''इस्लाम में घुलने मिलने का स्पेस है। आपने एक बार इस्लाम स्वीकार कर लिया तो आपके अतीत से उन्हें कोई मतलब नहीं होता है। वहाँ वैवाहिक संबंधों में समस्या नहीं होती है। इस्लाम में जाति को लेकर इस तरह अपमान नहीं झेलना होता है। मैं मरते दम तक सनातन में रहूँगा लेकिन मुझे पता है कि कोई भी बेटी-रोटी का संबंध नहीं बनाएगा। ऐसे में लगता है कि हम न घर के रहे न घाट के। जब इस्लाम में था तब भी चैन नहीं था और अब यहाँ हूँ तब भी अलग-थलग महसूस होता है।''
जितेंद्र नारायण त्यागी कहता है कि सनातन में आने के बाद उसका निकाह टूट गया। परिवार बुरी तरह से प्रभावित हुआ, ''सच कहिए तो मैंने अपने जीवन में ज़हर घोल लिया। इसीलिए मैं पूरे परिवार के साथ सनातन में नहीं आया था। पहले मैं ख़ुद आकर देखना चाहता था। अच्छा हुआ कि पूरे परिवार के साथ नहीं आया।''
जितेंद्र नारायण त्यागी के इंटरव्यू का अंश जिस पे सनातनियों को विचार करना चाहिए और उनके दुखो को कम करने की कोशिश करनी चाहिए !!