बहरीन; बनावटी चुनाव का जनता ने किया विरोध
बहरीन के प्रदर्शनकारियों के एक बड़े समूह ने एक विरोध मार्च आयोजित करके अल-खलीफा शासन के फर्जी चुनावों और ज़ायोनी शासन के साथ संबंधों के सामान्यीकरण के विरोध की घोषणा की है।
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बहरीन में सैकड़ों लोगों ने विरोध मार्च निकालकर अल-खलीफा शासन के फर्जी और दिखावे के चुनावों का विरोध किया है।
प्रदर्शनकारियों ने इजरायल के साथ अल-खलीफा शासन के संबंधों के सामान्यीकरण की भी निंदा की और फिलिस्तीनी मुद्दे के प्रति अपनी कटिबद्धता पर ज़ोर दिया।
बहरीन के "अल-हमला" क्षेत्र के लोगों ने "शेख अब्दुल जलील अल-मकदाद" सहित सभी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाले कैदियों और सभी राजनीतिक बंदियों के साथ एकजुटता की घोषणा करने के लिए एक विरोध रैली आयोजित की।
बहरीन के अल-सनाब क्षेत्र के लोगों का विरोध भी इसी संदर्भ में जारी है। इस देश की राजधानी मनामा सहित बहरीन के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने बार-बार शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया है और कानूनी और राजनीतिक कार्यकर्ताओं की रिहाई की मांग की है, जिन्हें बिना किसी अपराध के और केवल उनकी मांगों की शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति के कारण गिरफ्तार और कैद किया गया है। और कई वर्षों से, वे खराब मानवीय परिस्थितियों में अल-खलीफा शासन की जेलों में रह रहे हैं।
इस संबंध में, "बहरीन अधिकार और स्वतंत्रता" केंद्र ने पिछले सप्ताह एक बयान प्रकाशित कर घोषणा की कि बहरीन की अदालतों ने हाल ही में 4 बहरीन के कार्यकर्ताओं को मौत की सजा जारी की है।
इस मानवाधिकार संस्था ने अपने बयान में कहा कि जारी किए गए अदालती आदेश अनुचित परीक्षण और यातना के तहत स्वीकारोक्ति पर आधारित थे।
पिछले महीनों एक 62 वर्षीय बहरीन मौलवी "शेख अब्दुल जलील अल-मकदाद", जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा का प्रयोग करने के कारण जेल में बंद हैं के साथ अस्पताल में इलाज से इनकार करने वाले एक बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार करने के बाद जेल प्रहरियों द्वारा मारपीट की गई।
बहरीन में अल-खलीफा शासन बड़े पैमाने पर विपक्षियों के दमन और राजनीतिक घुटन पैदा कर रहा है। लेकिन यह शासन देश में दिखावे के आम चुनाव कराकर दुनिया के सामने एक लोकतांत्रिक और सुधारवादी चेहरा पेश करने का इरादा रखता है।
12 नवंबर को बहरीन के संसदीय और नगर परिषद चुनाव होने वाले हैं। इन चुनावों को मानवाधिकार संगठन भी मान्यता नहीं देते और मानते हैं कि यह चुनाव पूर्व निर्धारित है और वोटों का इसके परिणामों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
बहरीन में संसदीय और नगर परिषद चुनाव ऐसी स्थिति में हो रहे हैं कि जब इस देश में आलोचनात्कम राजनीति या फिर अल खलीफ़ा शासन का विरोध करने के लिए कोई जगह नहीं है। और अल खलीफ़ा शासन भी जनता की जायज़ मांगो को लेकर कोई लचीला रुख नहीं दिखा रहा है।
बहरीन में सारी शक्ति देश के राजा के हाथ में है। इस देश के लोगों ने अधिकारों के सही बटवारे के लिए देश के संविधान को बदलने की कई बार मांग की है, लेकिन चूँकि इस संबंध में भी अंतिम निर्णय राजा के ही हाथ में है, इसलिए वह इसके लिए कभी सहमत नहीं हुए हैं। क्योंकि अगर संविधान में जनता की मांग के अनुसार परिवर्तन होता है तो वह राजा और शाही परिवार के अधिकारों को सीमित कर देगा जो कि राजा को किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं है।
अल खलीफ़ा शासन की दमनकारी नीतियों के कारण कई राजनीतिक पार्टियों ने इस देश में होने वाले चुनावों के बहिष्कार का आह्वान किया है।
अल-खलीफा शासन के विपक्षी समूहों ने सभी बहरीन के सभी धर्म के अनुयायियों से राष्ट्र के हितों की सुरक्षा ज़ायोनी शासन के साथ संबंधों के सामान्यीकरण का विरोध करने के लिए चुनावों का बहिष्कार करने की अपील की है।
14 फरवरी, 2011 से बहरीन के अल खलीफा शासन और लोगों के बीच संघर्ष चल रहा है। बहरीन की जनता अल-खलीफा शासन से देश में सुधार और राजनीतिक कैदियों की रिहाई की मांग कर रही है लेकिन शाही शासन ने जनता की मांगो का बलपूर्वक दमन किया है।