प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत के असम राज्य के डीजीपी भास्कर ज्योति महंत कहा है कि राज्य में मुसलमानों की अच्छी-ख़ासी आबादी है और यह ‘कट्टरपंथ को बढ़ावा देने’ के लिए ‘स्वाभाविक लक्ष्य’ है। उन्होंने कहा कि कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाली गतिविधियां आमतौर पर छोटे मदरसों में की जाती हैं। उन्होंने बताया कि राज्य के ऐसे सभी शिक्षण संस्थानों का डेटाबेस तैयार करने के लिए सर्वेक्षण किया जा रहा है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, ‘डीजीपी महंत ने कहा, मदरसा चलाने वाले लोगों को हमने जानकारी के लिए बुलाया था, हमने उनसे एक बोर्ड बनाने को कहा है, साथ ही हम भी कुछ नियम बना रहे हैं कि उन छोटे मदरसों को बड़े मदरसों में मिला दिया जाएगा, जिनमें 50 से कम छात्र हैं।’ समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, सभी मदरसों का डेटाबेस तैयार करने के लिए सर्वे चल रहा है, जिसमें ज़मीन का ब्योरा, शिक्षकों की संख्या, छात्रों और पाठ्यक्रम शामिल होगा। असम के डीजीपी ने कहा कि पूरी रिपोर्ट 25 जनवरी तक तैयार होने की उम्मीद है।
इस बीच असम सरकार और पुलिस द्वारा मदरसों में कट्टरवाद और चरमपंथ की बात किए जाने पर जहां आम मुसलमानों में रोष देखने को मिल रहा है वहीं इसपर राजनीति भी शुरू हो गई है। सोशल मीडिया पर लोग असम के डीजीपी को टैग करके पूछ रहे हैं क्या उन्हें मालूम है कि भारत में सबसे ज़्यादा कट्टरपंथ हिन्दू संगठनों की ओर से फैलाया जाता है। क्या इसको देखते हुए उन्होंने कट्टरपंथी हिन्दू संगठन आरएसएस और अन्य चरमपंथी हिन्दू गुटों द्वारा संचालित ट्रेनिंग सेंटरों का ब्योरा एकत्रित किया है। लोग यह भी सवाल पूछ रहे हैं कि पुलिस की ज़िम्मेदारी होती है संविधान की रक्षा करना न कि किसी विशेष पार्टी के एजेंडों को व्यवहारिक बनाने के लिए किसी भी तरह की साज़िश का हिस्सा बन जाना। उल्लेखनीय है कि असम में जब से बीजेपी सत्ता में आई है तब से उसके निशाने पर इस राज्य में रहने वाले मुसलमान हैं। उनसे मुजरिमों जैसा बर्ताव किया जाता है। इसकी एक मिसाल इसी महीने की शुरुआत में असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा था कि मदरसों में पढ़ा रहे असम के बाहर के शिक्षकों को नियमित रूप से थानों में उपस्थित होना पड़ेगा। इस आदेश से ऐसा लगता है कि जैसे मदरसों में पढ़ाने वाले गुरु, शिक्षक कम मुजरिम ज़्यादा हैं