बिन के शासनकाल के दौरान मृत्युदंड की औसत संख्या सलमान और उनके पिता के शासन काल की तुलना में 82 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में सऊदी अरब ने 147 लोगों को सज़ाए मौत दी थी और यह आंकड़ा पिछले दो सालों की कुल सज़ा से ज़्यादा था जो 81 मामले थे। इन 147 लोगों में से 81 लोगों को मार्च में एक दिन में सज़ाए मौत दी गई थी। मार्च 2022 सऊदी अरब के इतिहास में सामूहिक सज़ाए मौत के लिए जाना जाता है और इस पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निंदा भी हुई थी।
इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 और 2022 में दी गयी सज़ाओं में 119 प्रतिशत की वृद्धि हुई और इन आदेशों को जारी करने में वर्ष 2020 से 2022 तक 444 प्रतिश की वृद्धि हुई। आधिकारिक मानवाधिकार केंद्र के अनुसार, 2020 में 27 और 2021 में 67 लोगों मौत की सज़ा दी गई।
सऊदी अरब की पारंपरिक और धार्मिक बनावट के अनुसार जब से देश बना है तब से सज़ाए मौत का वजूद रहा है लेकिन तब सज़ाए मौत की संख्या इतनी अधिक नहीं थी। दूसरी बात, अतीत में और मुहम्मद बिन द्वारा सत्ता के सत्ता पर बैठने से पहले तक सज़ाए मौत का एक धार्मिक पहलू था और शरिया क़ानूनों को लागू करने का परिणाम रहा है लेकिन बिन सलमान के सत्ता हासिल करने के बाद, सज़ाए मौत का आयाम ही बदल गया क्योंकि सऊदी राजनीतिक व्यवस्था के धार्मिक आयाम, कार्यान्वयन के कारण मूल रूप से कमजोर हो गए हैं और बिन सलमान के आधुनिकीकरण और धर्मनिरपेक्ष कार्यक्रमों के विपरीत, सज़ाए मौत के राजनीतिक आयाम बढ़ गए हैं और अब अधिकांश सज़ाए मौत राजनीतिक कारणों से या ज़्यादातर बिन सलमान के आलोचकों को सज़ाए मौत की दी जाती है।
इस संदर्भ में उल्लेखनीय बिंदु यह है कि पश्चिमी देश आम तौर पर उन सज़ाए मौत पर ही प्रतिक्रियाएं देते हैं जिनका धार्मिक पहलू होता है लेकिन अब जबकि अधिकांश सज़ाए मौत राजनीति से प्रेरित होती हैं तो पश्चिमी देश भी ख़ामोश ही रहते हैं। इन सज़ा मौत को बिन सलमान द्वारा विरोधियों को ख़त्म करने के एक साधन के रूप में प्रयोग किया जाता है, पश्चिमी देश इस पर भी ख़ामोश ही नज़र आते हैं और उनके खिलाफ कोई दबाव भी नहीं होता जैसा कि कि सऊदी अरब के विरोधी पत्रकार जमाल ख़ाशुक्जी की हत्या के दौरान देखा गया।
इसके आधार पर कहा जा सकता है कि बिन सलमान के सत्ता में आने के बाद सऊदी अरब में सज़ाए मौत की तादाद बढ़ने का एक कारण पश्चिमी देशों और अंतरराष्ट्रीय मंचों का दोहरा बर्ताव भी है। ये देश और समाज या तो इन सज़ाए मौत पर चुप हैं या अपने इन ख़बरों के सामने आने को भत्ता लेने के रूप में उपयोग करते हैं।