मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना सैयद राबेअ हसनी नदवी की अध्यक्षता में नदवतुल उलेमा लखनऊ में रविवार को संगठन की कार्यकारिणी की बैठक में समान नागरिक संहिता सहित विभिन्न मुद्दों को लेकर प्रस्ताव पारित किया गया।
बोर्ड ने अपने प्रस्ताव में यह भी कहा कि देश के संविधान में बुनियादी अधिकारों में हर व्यक्ति को अपने धर्म पर अमल करने की आज़ादी दी गई है, इसमें पर्सनल लॉ शामिल है, इसलिए हुकूमत से अपील है कि वह आम नागरिकों की मज़हबी आज़ादी का भी एहतराम करे क्योंकि समान नागरिक संहिता लागू करना अलोकतांत्रिक होगा।
बोर्ड ने प्रस्तावित समान नागरिक संहिता का विरोध करते हुए तर्क दिया है कि यह ‘संविधान की भावना के खिलाफ’ होगा। एक आधिकारिक बयान में बोर्ड ने कहा कि समान नागरिक संहिता को लागू करने से नागरिक व्यक्तिगत कानूनों द्वारा उन्हें प्रदान किए गए विशेषाधिकारों से वंचित हो जाएंगे।
बोर्ड के सदस्यों में से एक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि समान नागरिक संहिता की ओर कदम भारत जैसे बहु-धार्मिक, बहु-सांस्कृतिक और बहु-भाषी देश के लिए न तो प्रासंगिक है और न ही फायदेमंद है। समिति ने सरकार से प्रस्तावित कदम को स्थगित करने का आग्रह किया है।
उन्होंने कहा कि अगर संसद में अपने बहुमत का लाभ उठाते हुए सरकार समान नागरिक संहिता को पारित करती है और लागू करती है तो यह राष्ट्र को बांधने वाली एकता और सद्भाव को प्रभावित करेगी, यह देश की प्रगति में बाधा बनेगा और इसका कोई फल भी नहीं मिलेगा, बोर्ड सरकार से इस एजेंडे को आगे न बढ़ाने की अपील करता है।
बैठक के बाद बोर्ड के महासचिव मौलाना ख़ालिद सैफुल्लाह रहमानी की ओर से जारी बयान में कहा गया कि इसी बिना पर हमारे संविधान में इस अधिकार को स्वीकार्य किया गया है और हर नागरिक को किसी भी धर्म को अपनाने तथा धर्म का प्रचार करने की पूरी आज़ादी दी गई है लेकिन वर्तमान में कुछ प्रदेशों में ऐसे कानून लाए गए हैं, जो नागरिकों को इस अधिकार से वंचित करने की कोशिश है, जो कि निंदनीय है।
ज्ञात रहे कि उत्तर प्रदेश में उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम-2021 के अनुसार राज्य में ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से धर्म परिवर्तन कराने या पहचान छिपाकर शादी करने के मामले में सख्त सजा का प्रावधान किया गया है।