जनगणना के नाम पर लोगों से और क्या जानना चाहती है भारत सरकार
जनगणना में धर्म, खान-पान के अलावा लोगों से भारत सरकार 2000 रुपये के नोट को वापस लेने के फ़ैसले के बारे में जानना चाहती है ।
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दिल्ली से छपने वाले अख़बारों में शनिवार को 28 मई को होने वाले संसद भवन उद्घाटन समारोह को लेकर हो रहे विवाद और जनगणना के नए फॉर्म में पूछे जा सकने वाले सवालों को प्रमुखता से जगह दी गई है।
साथ ही 2000 रुपये के नोट को वापस लेने के फ़ैसले पर आरबीआई की दलील और मॉनसून को लेकर मौसम विभाग के पूर्वानुमान को लेकर ख़बरें भी कई अख़बारों में हैं। आगामी जनगणना के फॉर्म की ख़बर से जनगणना में लोगों से क्या कुछ नए सवाल पूछे जा सकते हैं इसके बारे में द हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस में ख़बर प्रकाशित की गई है।
द हिंदू लिखता है कि इसमें ये सवाल किया जा सकता है परिवार में पानी का मूल स्रोत बोतलबंद पानी है या कुछ और, साथ ही स्थानांतरण की वजहों में शिक्षा, शादी, काम और व्यापार के साथ अब एक ऑप्शन 'प्राकृतिक आपदा' की भी जोड़ा गया है।
इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि इस बार के सवालों में आपके किचन में एलपीजी सिलेंडर है या पाइप्ड नैचुरल गैस है, आपके घर में कितने फ़ोन और कितने फ़ोन कनेक्शन हैं, घर में मुख्य खाने में कौन-सा अनाज शामिल है। जैसे सवाल भी शामिल किए गए हैं।
अख़बार लिखता है कि भारत सरकार 2021 में जनगणना कराने वाली थी लेकिन कोविड महामारी के कारण इसे अनिश्चित वक्त के लिए टाल दिया गया था। बीते सोमवार, जनगणना दफ्तर अपनी स्थापना की 150वीं वर्षगांठ मना रहा था। इस मौक़े पर एक नया प्रकाशन जारी किया गया है जिसमें बीते चार दशकों में हुई जनगणना की तैयारियों बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है।
इसमें एक चैप्टर 2021 की जनगणना (जो नहीं कराई जा सकी) की तैयारियों के बारे में भी है, जिसमें बताया गया है कि इसके ज़रिए किस-किस तरह की अतिरिक्त जानकारी जुटाने की कोशिश की जा रही थी।
द हिंदू लिखता है कि दो चरणों में होने वाली ये जनगणना पहली बार डिजिटल स्वरूप में भी होने वाली है, जिसमें लोग ऑनलाइन फॉर्म भर सकेंगे।
अख़बार लिखता है कि कई समुदाय मांग करते रहे हैं कि उनकी पहचान एक अलग धर्म को मानने वाले के रूप में की जाए लेकिन इस बार के जनगणना के फॉर्म में धर्म की पहचान के लिए छह ऑप्शन दिए गए हैं। ये हैं हिंदू, मुसलमान, ईसाई, बौद्ध, सिख और जैन।
प्रकृति पूजा करने वाले झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के आदिवासी मांग करते रहे हैं कि उनके सरना मत को धर्म के रूप में स्वीकार किया जाए वहीं कर्नाटक के लिंगायत भी इसी तरह की मांग करते रहे हैं।
अख़बार लिखता है कि काफी सोच-विचार और चर्चा के बाद अधिकारियों ने जनगणना के फ़ॉर्म के आख़िरी शेड्यूल में धर्म बताने के लिए छह ऑप्शन दिए हैं हालांकि व्यक्ति चाहे तो अपनी इच्छा के अनुसार किसी और धर्म का नाम भी लिख सकता है, लेकिन इसके लिए कोई अलग कोड नहीं होगा।
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2000 रुपये का नोट चलन से वापस लेने के फ़ैसले पर सफ़ाई देते हुए आरबीआई ने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया है कि ये 'नोटबंदी नहीं, बल्कि करेंसी मैनेजमेन्ट व्यवस्था' का हिस्सा है।
इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक ख़बर के अनुसार एक याचिका की सुनवाई के दौरान आरबीआई ने कोर्ट में ये बात कही है। साथ ही आरबीआई ने कहा है कि ये 'आर्थिक नीति' से जुड़ा मामला है।
चीफ़ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की दिल्ली हाई कोर्ट की डिविज़न बेंच के समक्ष पेश होते हुए आरबीआई ने कहा कि 2000 रुपये का नोट फिलहाल चलन में है और लोग इसे इस्तेमाल कर सकते हैं।
इस ख़बर को जनसत्ता ने भी रिपोर्ट किया है अख़बार का कहना है कि आरबीआई ने इसी महीने 19 मई को नोटिफ़िकेशन जारी कर कहा था कि 2000 रुपये के नोट चलन से वापस लिए जाएंगे, जिनके पास ये नोट हैं वो 30 सितंबर तक इन्हें बैंकों में जमा कर सकते हैं।
कोर्ट में आरबीआई ने कहा है कि ये नोट बदलने की कवायद है और 30 सितंबर के बाद नतीजे देखने के बाद इस पर कोई फ़ैसला लिया जा सकता है।
अख़बार लिखता है कि याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया एक्ट 1934 के तहत केंद्रीय बैंक के पास स्वतंत्र अधिकार नहीं है कि वो किसी भी मूल्य की मुद्रा को चलन से बाहर कर सके। आरबीआई एक्ट की धारा 24(2) के तहत ये अधिकार केंद्र सरकार के पास है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि 8 नवंबर 2016 को हुई नोटबंदी वाले मामले में पहले केंद्र सरकार ने गैजेट नोटिफ़िकेशन जारी किया था जिसके बाद आरबीआई ने भी नोटिफ़िकेशन जारी किया। लेकिन अभी के मामले में केंद्र सरकार की तरफ से कोई नोटिफ़िकेशन जारी नहीं किया गया है, और अगर है भी तो जनता को उसके बारे में कोई जानकारी नहीं है।
याचिका में ये भी कहा गया है कि अब तक आरबीआई ने ये नहीं बताया है कि 2000 रुपये का नोट वापस लेने के इस फ़ैसले से आरबीआई को या फिर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को क्या फ़ायदा होगा।