इस विधेयक में कहा गया है कि ये जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद लागू होगा तो वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों का कहना है कि इसमें अन्य पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम महिलाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए।
साथ ही विपक्ष का कहना है परिसीमन और जनगणना की प्रक्रिया में समय लगेगा, ऐसे में महिला आरक्षण क़ानून के लागू होने में भी वक़्त लगेगा।
परिसीमन का मतलब होता है जनसंख्या के अनुसार देश में लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों और राज्यों की विधानसभा के निर्वाचन क्षेत्रों की संरचना का निर्धारण करना बदलती आबादी के मुताबिक़, ये एक सतत प्रक्रिया है। इसके लिए क़ानून बनाकर परिसीमन आयोग की स्थापना की जाती है।
महिला आरक्षण बिल से महिलाओं पर होने वाला असर
जानकारों का मानना है कि विपक्ष लोगों तक ये संदेश पहुंचाने में कामयाब रहा है कि ये बिल अगले आम चुनाव में लागू नहीं होगा। ऐसे में नारी शक्ति वंदन विधेयक इन राज्यों में बीजेपी को ज़्यादा फ़ायदा नहीं दे पाएगा लेकिन मोदी की छवि कि 'वो करके दिखाते हैं' उसे ज़रूर मज़बूती देगा।
हालांकि बीजेपी इन चुनाव में इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश करेगी कि विपक्ष ने 27 साल तक ठंडे बस्ते में पड़े इस बिल पर कुछ नहीं किया और बीजेपी इसे महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए लेकर आई है।
वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषन के अनुसार महिलाओं के समक्ष बीजेपी इसे केवल नारी शक्ति वंदन अधिनियम के तौर पर पेश नहीं करेगी बल्कि एक पैकेज में इसे शामिल करके बताएगी।
राधिका रामशेषन के अनुसार, "अगर निर्मला सीतारमण के भाषणों को देखें तो वो केवल ताज़ा विधेयक के बारे में ही बात नहीं कर रही हैं बल्कि 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ', 'उज्ज्वला योजना', 'शौचालय के निर्माण' आदि की बात कर रही हैं। ये देखा गया है कि उज्ज्वला स्कीम के बाद हुए चुनाव में महिलाओं ने जातिवाद से दूर हटकर पार्टी के लिए वोट किया है।