फिलिस्तीनी जवानों ने किया इस्राईल के ख़िलाफ़ चार हमले
फिलिस्तीनियों ने इस्राईल के मनसूबों पर पानी फेर दिया इस समय पूरे इस्राईल में डर का माहौल छाया है।
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चार शहादत प्रेमी हमले जो फ़िलिस्तीनी जवानों ने किए हैं उनसे इस्राईल के अति सुरक्षित होने की सारी कहानियों और सारे प्रोपैगंडे पर पानी फिर गया है। इन हमलों ने इस्राईलियों का मनोबल भी ध्वस्त कर दिया है। इस समय पूरे इस्राईल में भय और आशंका का माहौल है।
इन चार हमलों में 14 इस्राईली मारे गए और 20 से अधिक घायल हुए। यह हमले किसी फ़िलिस्तीनी संगठन की ओर से नहीं किए गए बल्कि इन्हें आम फ़िलिस्तीनी जवानों ने अंजाम दिया है। यह हमले उन इलाक़ों में हुए हैं जिन पर इस्राईल ने 1948 में ग़ैर क़ानूनी रूप से क़ब्ज़ा किया था। यहीं से पता चलता है कि यह हमले कितनी महारत और सूझबूझ के साथ अंजाम दिए गए हैं।
सबसे महत्वपूर्ण हमला जेनिन शरणार्थी शिविर के युवा रअद हाज़िम ने तेल अबीब में अंजाम दिया। जेनिन इस समय प्रतिरोध का प्रतीक बन गया है। यहां के लोगों में ख़ास साहस और शहादत का जज़्बा पाया जाता है। बीस साल पहले भी इस्राईल ने जेनिन पर हमला करके वहां जेहादे इस्लामी संगठन से जुड़े लोगों को गिरफ़तार करने की कोशिश की थी। यह आप्रेशन 12 दिन से ज़्यादा चला था और इसमें इस्राईली सेना को काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ा था। उसके कम से कम 24 सैनिक मारे गए थे जिनमें कई जनरल थे।
यही वजह है कि इस्राईली सेना जेनिन मे दाख़िल होने के बाद वहां से बाहर निकल आई।
जेहादे इस्लामी संगठन के दिवंगत प्रमुख शहीद रमज़ान अब्दुल्लाह ने बताया था कि उस समय उन्होंने जेहादे इस्लामी की उस युनिट को फ़्री हैंड दे दिया था तो जेनिन के जवानों ने शहादत तक जंग का विकल्प चुना था। एक बार फिर वही दृष्य दोहराया जा रहा है।
इन चारों हमलों ने पूरे इस्राईल की नाक रगड़ दी है क्योंकि इन हमलों में इस्राईल के बेहद सुरक्षित हिस्से को निशाना बनाया गया है। इन हमलों में तेल अबीब, बेरसबा, अलख़ुज़ैरा और बनी बराक जैसे शहरों को निशाना बनाया गया।
फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध इस समय दो रूप में नज़र आ रहा है। एक तो हवाई क्षेत्र में मिसाइलों और ड्रोन विमानों के रूप में नज़र आता है जैसा कि क़ुद्स की तलवार नामक आप्रेशन में देखने में आया। दूसरे ज़मीन पर अंजाम दिए जाने वाले हमले है। जिनमें आधुनिक गनों से पुलिस और सेना के जवानों को निशाना बनाया जाता है वैसे यह भी हक़ीक़त है कि इस्राईल में आम नागरिक भी हथियार लेकर चलते हैं इस लिए उन्हें सिविलियन समझना भूल होगी।
अरब जगत की ग़द्दारी का यह हाल है कि यूक्रेन की जनता की लड़ाई को सराहनीय प्रतिरोध कहता है मगर जब फ़िलिस्तीनी जवान इस्राईल की बर्बरता और ग़ैर क़ानूनी क़ब्ज़े का मुक़ाबला करने के लिए हथियार उठाता है तो उसे आतंकवाद का नाम दे देता है। अगर हम फ़िलिस्तीनी इलाक़ों में इस्राईल के युद्ध अपराध के ख़िलाफ़ कुछ बोल देते हैं तो हमें यहूदी विरोधी कहा जाने लगता है।
इस्राईली प्रधानमंत्री नफ़ताली बेनेत झूठ बोलते हैं कि दूसरा इंतेफ़ाज़ा आंदोलन कई साल चला और उसमें इस्राईल को विजय मिली और इस बार भी उसे विजय मिलेगी।
इस्राईल दरअस्ल 1967 के बाद किसी भी मुक़ाबले और जंग में कामयाब नहीं हो पाया। हाल ही में क़ुद्स की तलवार नाम की लड़ाई में इस्राईल को दिन में तारे नज़र आने लगे थे। 11 दिन के अंदर इस्राईल संघर्ष विराम पर मजबूर हो गया था। इस बार इंतेफ़ाज़ा आंदोलन अपनी पूरी ताक़त से चल पड़ा है और रुकवने वाला नहीं है। यह फ़िलिस्तीनी जवानों का इंतेफ़ाज़ा है जिन्हें झुकाया नहीं जा सकता।
सोर्स : पार्सटोडे