मुस्लमान हज पर जाकर क्या करते हैं?
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हज यात्री पहले सऊदी अरब के जिद्दा शहर पहुंचते हैं। वहां से वो बस के ज़रिए मक्का शहर जाते हैं। लेकिन मक्का से पहले एक ख़ास जगह है जहां से हज की प्रक्रिया शुरू होती है। मक्का शहर के आठ किलोमीटर के दायरे से इस विशेष जगह की शुरुआत होती है। इस जगह को मीक़ात कहते हैं।
हज पर जाने वाले सभी यात्री हज का कपड़ा पहनते हैं जिसे अहराम कहा जाता है। जो सफेद रग का होता है।
अहराम सिला हुआ नहीं होता है। महिलाओं को अहराम पहनने की ज़रुरत नहीं होती, वो अपनी पसंद का कोई भी कपड़ा पहन सकती हैं।
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हज के दौरान हाजीयों को करना होता है इन बातो का खास ख्याल
हज यात्री
हज के दौरान पति-पत्नि शारीरिक संबंध नहीं बना सकते
अपने बाल और नाख़ून नहीं काट सकते
परफ़्यूम या किसी भी ख़ुशबूदार चीज़ लगाने से बचें
किसी से लड़ाई झगड़े नहीं कर सकते।
हज किस महीने में किया जाता है?
हज की शुरुआत इस्लामिक महीने ज़िल-हिज की आठ तारीख़ से होती है। आठ तारीख़ को हाजी मक्का से क़रीब 12 किलोमीटर दूर मीना शहर जाते हैं। आठ की रात हाजी मीना में गुज़ारते हैं और अगली सुबह यानी नौ तारीख़ को अराफ़ात के मैदान पहुंचते हैं। हज यात्री अराफ़ात के मैदान में खड़े होकर अल्लाह को याद करते हैं और उनसे अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते हैं। शाम को हाजी मुज़दलफ़ा शहर जाते हैं और नौ तारीख़ की रात में वहीं रहते हैं। दस तारीख़ की सुबह यात्री फिर मीना शहर वापिस आते हैं।
उसके बाद वो एक जगह पर जाकर सांकेतिक तौर पर शैतान को पत्थर मारते हैं। अक्सर इसी दौरान भगदड़ मचती है और सरकार की लापरवाही के कारण कई लोग मर भी जाते हैं शैतान को पत्थर मारने के बाद हाजी एक बकरे या भेड़ की कुर्बानी देते हैं। उसके बाद मर्द अपना सर मुड़वाते हैं और महिलाएं अपना थोड़ा सा बाल काटती हैं।
उसके बाद यात्री मक्का वापस लौटते हैं और काबा के सात चक्कर लगाते हैं जिसे धार्मिक तौर पर तवाफ़ कहा जाता है। इसी दिन यानी ज़िल-हिज की दस तारीख़ को पूरी दुनिया के मुसलमान ईद-उल-अज़हा या बक़रीद का त्यौहार मनाते हैं।
तवाफ़ के बाद हज यात्री फिर मीना लौट जाते हैं और वहां दो दिन और रहते हैं। महीने की 12 तारीख़ को आख़िरी बार हज यात्री काबा का तवाफ़ करते हैं और दुआ करते हैं। बस इस प्रकार मुस्लमानों का हज पूरा होता है।