प्रिसिडेंट बिडेन; मुझे क्यों सऊदी अरब नहीं जाना चाहिए
अमरीकी प्रिसिडेंट बिडेन ने वाशिग्टन पोस्ट में एक स्तंभ लिखकर सऊदी अरब की अपनी यात्रा के लक्ष्यों के बारे में बताया है।

अमरीकी प्रिसिडेंट सऊदी अरब की यात्रा पर जाने वाले हैं, इस यात्रा के लक्ष्यों के बारे में उन्होंने वाशिंग्टन पोस्ट के एक स्तंभ में लिखे हैं, हम यहां पर उनकी समीक्षा करके वास्तविक लक्ष्य जानने की कोशिश कर रहे हैं।
अमरीकी हितों को आगे बढ़ाएगी, लेकिन आपको याद रखना चाहिए कि 9/11 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमलें का सबसे बड़ा आरोपी सऊदी अरब ही है, क्या आप अमरीकी लोगों की जान लेने वाले एक हत्यारे देश के साथ संबंध को बढ़ाना चाहते है, अगर आपका उत्तर हां है तो प्लीज़ कम से कम बहाना तो अच्छा बनाएं, अगर आप अमरीकी हितों को बजाए यह कहते कि मैं सऊदी अरब जा रहा हू और मेरी यह यात्रा इजरायली हितों को आगे बढ़ाएगी तो अधिक बेहतर होता।
प्रिसिडेंट बिडेन ने कहा है कि यात्रा से ठीक पहले अपनी सरकार की कई उप्लब्धियां गिनाई है, जैसे इराक़ में युद्ध को समाप्त करना, क्षेत्र में अमरीकी बलों पर हमलों में कमी, अफगानिस्तान की उप्लब्धि, यमन में संघर्ष विराम... साथ ही उन्होंने कहा है कि मेरी सऊदी अरब यात्रा का मुख्य लक्ष्य ईरान को परमाणु वार्ता की मेज़ पर वापस लाना है। वह समझौता जिससे पूर्व में हमारी सरकार एकतरफ़ा रूप से बाहर निकल गई थी। उन्होने कहा कि हम ईरान पर लगातार दबाव बनाते रहेंगे ताकि वह अलग थलग पड़ जाए और परमाणु वार्ता की मेज़ पर वापस आने के लिए विवश हो जाए।
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बिडेन के यह सभी शब्द देखने में बहुत लोक लुभावन लगते हैं, लेकिन सच्चाई से दूर हैं। आए हम उनके सभी दावों की जांच करते हैं। जहां तक अमरीकी हितों की बाद है तो उसके बारे में हम ऊपर बता ही चुके हैं। दूसरी बात आती है इराक़ में युद्ध की समाप्ति की, तो हां यह अमरीका का एक अच्छा मूव था, लेकिन बहुत से सैन्य विशेषज्ञ मानते हैं कि अमरीकी सैनिकों पर लगातार होते हमलों के बाद अमरीका इराक़ में सैन्य उपस्थिति बनाए रखने में सक्षम नहीं था, साथ ही बगदाद एयरपोर्ट पर इराक़ में ईरान के वरिष्ठ सैन्य मेहमान जनरल सुलैमानी की हत्या, और उसके बाद जवाबी कार्यवाही में ईरान द्वारा अमरीकी सैन्य बेस पर मीसाइलों की बारिश और इराक़ पार्लिमेंट में उमरीकी सैनिकों की उपस्थिति की समाप्ति के पक्ष में कानून पास किया जाना, वह अहम कारण हैं जिससे अमरीका को अपनी सैन्य उपस्थिति को समाप्त करना पड़ा है। तो प्लीज़ मिस्टर प्रिसिडेंट इसे उप्लब्धि नहीं बल्कि कमज़ोरी के रूप में बयान कीजिए। प्लीज़ अमरीकी जनता के साथ ईमानदार रहिए। और जहां तक ईरान के परमाणु समझौते की मेज़ पर लौटने की बात है, तो ईरानी मीडिया और सरकारी अधिकारियों के अनुसार उन्होंने तो कभी वार्ता से मना किया ही नहीं है, उनकी कुछ शर्तें है अगर वह पूरी की जाती है तो वह वार्ता के लिए तैयार हैं। अब मेरा आपसे प्रश्न यह है कि क्या ईरान अपनी शर्तों से पीछे हट गया है?! क्या ईरान अमरीकी प्रतिबंधों और दबावों से टूट गया है?! क्या ईरान ने आप की बात मान ली है?!
उन्होंने दुनिया की खाद्य संकट के लिए रूस यूक्रेन युद्ध को जिम्मेदार बताते हुए दावा किया है कि उनकी सऊदी अरब यात्रा से इस संकट का समाधान निकल सकता है।
यूक्रेन युद्ध आज के युग के सबसे बुरे युद्धों में से है, जिसने दुनियाभर में खाद्य पदार्थों की कीमतों को आसमान पर पहुँचा दिया है। लेकिन प्रिसिडेंट बिडेन का यह बयान ऐसा है कि वह दुनिया को दिखाना चाह रहे हैं कि इस संकट के लिए रूस जिम्मेदार है! जब कि सच्चाई यह है कि इस युद्ध के लिए जितना रूस जिम्मेदार है उससे कहीं अधिक अमरीका जिम्मेदार है, उसने रूस की लगातार चेतावनियों के बावजूद यूक्रेन को नाटो में शामिल करना चाहा, जिसको रूस लगातार खतरनाक कदम बता रहा था। अमरीका ने रूस की तमाम चेतावनियों को नज़रअंदाज़ करते हुए नाटो का प्रसार करता रहा और रूस की सरहदों की तरफ़ आगे बढ़ना जारी रखा। जिसके बारे में कई अमरीकी सैन्य विशेषज्ञों ने भी अतीत में चेतावनी दी थी, और उसे खतरनाक बताया था। तो यह खाद्य संकट अमरीका और रूस दोनों द्वारा पैदा किया गया है। लेकिन अब इसका दूसरा पक्षा, क्या सऊदी अरब की यात्रा से यह संकट खत्म हो जाएगा? क्या सऊदी अरब गेहूँ और दूसरे ज़रूरी खाद्य पदार्थों का बड़ा उत्पादक देश है? ऐक ऐसा देश जो अपनी खाद्य ज़रूरतों का 80 प्रतिशत से अधिक सामान दूसरे देशों से आयात करता हो उसके लिए अमरीकी प्रिसिडेंट यह कह रहे हैं कि वहां की यात्रा दुनिया के खाद्य संकट को समाप्त कर सकता है, इससे अधिक हास्यपद कुछ और नहीं हो सकता है।
बिडेन ने सऊदी अरब द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन और राजनीतिक विरोधियों के दमन पर लिखाः "सऊदी अरब में, हमने विरासत में मिली ब्लैंक-चेक नीति को उलट दिया। मैंने जमाल खशोगी की हत्या पर खुफिया समुदाय की रिपोर्ट जारी की, नए प्रतिबंध जारी किए, जिसमें उनकी हत्या में शामिल सऊदी अरब के रैपिड इंटरवेंशन फोर्स पर भी शामिल थे, और एक नए नियम के तहत 76 वीजा प्रतिबंध जारी किए, जो किसी के लिए संयुक्त राज्य में प्रवेश पर रोक लगाते हैं। विदेश में असंतुष्टों को परेशान करने में शामिल। मेरे प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका किसी भी सरकार द्वारा असंतुष्टों और कार्यकर्ताओं के खिलाफ बाहरी खतरों और उत्पीड़न को बर्दाश्त नहीं करेगा। हमने उन अमेरिकी नागरिकों की भी वकालत की, जिन्हें मेरे पद ग्रहण करने से बहुत पहले सऊदी अरब में गलत तरीके से हिरासत में लिया गया था। तब से उन्हें रिहा कर दिया गया है, और मैं उनकी यात्रा पर से प्रतिबंध हटाने के लिए जोर देना जारी रखूंगा।"
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यह सही है कि पूर्व प्रिसिडेंट ट्रम्प के उलट बिडेन ने मानवाधिकार पर सऊदी अरब के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाया है। कम से कम प्रचार की हद तक तो ऐसा ही कहा जा सकता है। हालांकि अमरीकी पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या का क्या हुआ, क्या बिन सलमान जिनके आदेश पर उनकी हत्या की गई, उनको सज़ा दी जा सकी, इस पर कुछ बोलने की आवश्यकता नहीं है। कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अमरीका सऊदी अरब के संबंध में जमाल खशोगी से आगे बढ़ना चाहता है।
बिडेन के तथा-कथित कड़े रुख के बावजूद सऊदी अरब में अब भी मानवाधिकार उल्लंघन अपने चरम पर है। राजनीतिक विरोधियों का दमन हो रहा है, उनका उत्पीड़न किया जा रहा है। विदेशों में रहने वाले राजनीतिक विरोधियों का इजरायल के जासूसी साफ्टवेयरों द्वारा फोन हैक किया जा रहा है। सारी दुनिया चुप है, और अमरीका केवल कागज़ पर मानवाधिकार की डुगडुगी पीट रहा है।
एक सबसे बड़ा मानवाधिकार उल्लंघन बल्कि मानवीय त्रासदी यमन युद्ध, जिसपर बिडेन सरकार ने कहा है कि उन्होंने एक दूत भेजा और जिसके कारण वहां संघर्ष विराम संभव हो सका है।
पिछले 8 वर्षों से जारी यमन युद्ध संयुक्त राष्ट्र और कई मानवाधिकार संगठनों के अनुसार दुनिया की सबसे बड़ी मानवायी त्रास्दी है। युद्ध के इन वर्षों में यमन का आधारभूत ढांचा ध्वस्त हो चुका है। और बिडेन कह रहे हैं कि हमने संघर्ष विराम करा दिया है। अगर बिडेन के इस दावे को सच मान भी लिया जाए तो भी यमन की ज़मीनी सच्चाई यह है कि, सऊदी युद्धक विमानों द्वारा लगातार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया जा रहा है। यमन की घेराबंदी अब भी जारी है। ऊर्जा और तेल से लदे जहाज़ों को यमन की बंदरगाहों पर लंगर डालने में अब भी मुश्किलें है। भीषण रूप से खाद्य संकट से जूझ रहे यमन को खाद्य सामग्री की पहुँच अब भी बहुत सीमित है। सनआ का एयरपोर्ट बंद होने के कारण बीमार देश से बाहर नहीं जा सकते हैं और दवाएं देश में नहीं आ सकती है...
अपने लेख के अंत में प्रिसिडेंट बिडेन ने इजरायल और अरब देशों के संबंधों, बदलते समीकरणों और संबंधों के सामान्यीकरण पर भी इस प्रकार लिखा हैः "शुक्रवार को, मैं इजरायल से जिद्दा, सऊदी अरब के लिए उड़ान भरने वाला पहला राष्ट्रपति भी बनूंगा। वह यात्रा नवोदित संबंधों और इज़राइल और अरब दुनिया के बीच सामान्यीकरण की दिशा में कदमों का एक छोटा प्रतीक भी होगी, जिसे मेरा प्रशासन गहरा और विस्तारित करने के लिए काम कर रहा है। जिद्दा में, पूरे क्षेत्र के नेता एक अधिक स्थिर और एकीकृत मध्य पूर्व की संभावना के लिए इकट्ठा होंगे, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका एक महत्वपूर्ण नेतृत्व भूमिका निभाएगा।"
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मेरी नज़र में प्रिसिडेंट बिडेन की सऊदी अरब यात्रा का यही मुख्य उद्देश्य है। यानी क्षेत्र में इजरायल को शक्तिशाली बनाना। इस यात्रा के द्वारा बिडेन क्षेत्र में इजरायल की स्वीकृति को बढ़ावा देना चाहते हैं, और उनकी यह यात्रा ईरान के खतरे के मुकाबले में इस अरब नाटो की स्थापना की संभावनाओं को बढ़ाना और प्रबल करना है। उन्होंने लिखा है कि नए स्थिर और शांतिपूर्ण मध्यपूर्व की नेत़ृत्व में अमरीका मुख्य भूमिका निभाएगा। यह एक छलावा है, सच्चाई यह है कि अमरीका मध्यपूर्व को छोड़ रहा है, उसने अफगानिस्तान को खाली कर दिया है, इराक़ से सैनिक बाहर निकाले हैं, सीरिया से उसको निकलने पड़ेगा। इसके राजनीतिक विश्लेषण "नई विश्व व्यवस्था" कह रहे हैं। अमरीका मध्यपूर्व से निकलने के बाद इस रोल के लिए सबसे भरोसेमंद साथी जिसका चुनाव कर सकता है वह इजरायल है। और अमरीका इसी प्लान पर आगे बढ़ रहा है, इस प्लान के अनुसार इजरायल विरोधी, सीरिया, इराक़ और लेबनान जैसे देशों को पहले युद्ध और प्रतिबंध जैसे हथकंडो से कमज़ोर किया गया और अरब देशों को लालच देकर सामान्यीकरण के बंधन में बांधा गया। अब अगर किसी प्रकार सऊदी अरब भी सार्वजनिक और आधिकारिक रूप से इजरायल के साथ संबंधों को सामान्य बना लेता है तो इजरायल की स्थिति और मज़बूत हो जाएगी, और उसके बाद उनके सामने इजरायल का केवल एक शत्रु रह जाएगा, ईरान।
इन तमाम चीज़ों का विश्लेक्षण करने के बाद हम इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि बिडेन की सऊदी अरब यात्रा के मुख्य लक्ष्य यह हैं
1. इजरायल की सुरक्षा सुनिश्चित करना
2. सऊदी अरब और इजरायल के बीच संबंधों को सामान्य बनाने पर बल देना
3. ईरान के विरुद्ध अरब देशों को इजरायल के नेतृत्व में लामबंद करना
4. नाटो की भाति इजरायल के नेतृत्व में अरब नाटो जैसे किसी बल का निर्माण करना