श्रीलंका संकट; भारत के लिए आपदा में अवसर?
ऐतिहासिक रूप से श्रीलंका और भारत का पुराना रिश्ता रहा है। श्रीलंका में सकट के समय में भारत ने कई बार उसकी सहायता की है, लेकिन पिछले कुछ समय में इस देश का चीन की तरफ़ चुकाव हुआ है। लेकिन हाल के आर्थिक संकट के बाद श्रीलंका एक बार फिर भारत की तरफ़ आया है, जिसे विशेषज्ञ भारत के लिए मौके के तौर पर देख रहे हैं।
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भारत और श्रीलंका के रिश्ते खट्टे मीठे रहे हैं। भारत 1947 में आज़ाद हुआ, श्रीलंका इसके एक साल बाद, दोनों ही आज़ादी की 75वीं सालगिरह मना रहे हैं। आज़ादी के बाद श्रीलंका ने सबसे बड़ा संकट देखा जब 1980 के दशक में वहाँ तमिल अल्पसंख्यकों के लिए अलग देश की माँग ने हिंसा का रूप लिया, 1983 में वहाँ जो गृह युद्ध छिड़ा वो 26 साल बाद 2009 में जाकर ख़त्म हुआ।
श्रीलंका के संकट के इस दौर में भारत ने भी भूमिका निभाई, भारत ने श्रीलंका की मदद के लिए वहाँ शांति सेना भेजी, हालाँकि इसे लेकर सवाल भी उठे।
30 जुलाई 1987 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर कोलंबो के राष्ट्रपति आवास में गार्ड ऑफ़ ऑनर लेते समय श्रीलंका के एक नौसैनिक ने राइफ़ल के बट से हमला भी कर दिया, जिसमें राजीव गांधी को मामूली चोट आई।
21 मई 1991 को श्रीलंका के तमिल चरमपंथियों ने देश में आम चुनाव के बीच तमिलनाडु में एक चुनावी सभा में एक आत्मघाती बम धमाका कर राजीव गांधी की हत्या कर डाली। तब वो विपक्ष के नेता थे, और यदि उनकी हत्या ना हुई होती तो वो फिर से प्रधानमंत्री बन सकते थे।
युद्ध के आख़िरी वर्षों से लेकर युद्ध ख़त्म होने के 13 वर्षों तक भारत-श्रीलंका के संबंधों पर कभी धूप-कभी छाँव आती रही, मगर पिछले दो दशक में दोनों के बीच वैसी घनिष्ठता नहीं बन सकी, और इसकी एक बहुत बड़ी वजह रहा एक तीसरा देश - चीन।
चीन के साथ दोस्ती
पिछले दो दशकों में श्रीलंका की सरकारों ने चीन को गले लगाया, उनसे बड़ी परियोजनाओं के लिए मदद ली, और चीन ने मदद दी। मगर श्रीलंका के इस नए दोस्त के इरादे पर संदेह जताए जाते रहे, कहा जाने लगा कि चीन मदद के बहाने श्रीलंका को कर्ज़ के जाल में फँसा रहा है।
और श्रीलंका अभी सच में फँस गया है, हालाँकि इसकी एकमात्र वजह चीन नहीं है, इसके पीछे वहाँ की सरकार की बदइंतज़ामी, अति-महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में हाथ डालना और लोक-लुभावनकारी नीतियों को लागू करने जैसे कारण भी ज़िम्मेदार रहे हैं।
और श्रीलंका के संकट के इस दौर में उसका पुराना दोस्त भारत एक बार फिर उसके साथ खड़ा दिखाई दे रहा है, और उसके साथ-साथ ये भी दिखाई दे रहा है कि चीन मदद करने के लिए हाथ नहीं बढ़ा रहा।
तो क्या श्रीलंका का ये संकट भारत के लिए एक अवसर साबित हो सकता है?
श्रीलंका को अभी मदद की ज़रूरत है, उसके ऊपर भारी कर्ज़ है। समस्या कितनी विकराल है इसका अंदाज़ा समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक श्रीलंका के केंद्रीय बैंक से जुटाए एक आँकड़े से मिलता है। इसके मुताबिक़ श्रीलंका को इस साल 7 अरब डॉलर का कर्ज़ चुकाना है जबकि उसके विदेशी मुद्रा भंडार में अभी केवल 2।3 अरब डॉलर बचा है।
श्रीलंका ने मदद के लिए चीन की ओर भी देखा है, और भारत की ओर भी। मगर चीन ने जहाँ नज़रें फेर लीं, वहीं भारत ने मदद के लिए हाथ बढ़ा दिया है।
दिल्ली की जवाहरलाल यूनिवर्सिटी में सेंटर फ़ॉर साउथ एशियन स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर पी सहदेवन कहते हैं कि चीन बहुत सोच-समझकर मदद के लिए आगे नहीं आ रहा।
वो कहते हैं, "चीन ने हाथ पीछे खींच लिया है क्योंकि वो पहले अपने पिछले कर्ज़ को वसूलना चाहते हैं, जो बहुत ज़्यादा है, और वो चालाक हैं, इसलिए वो सीधे पीछे हट गए।"
जानकारों को लगता है कि ये भारत के लिए एक अवसर का संकेत है।
भारत से बढ़ती नज़दीकी
मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान (आईडीएसए) में श्रीलंका मामलों पर नज़र रखने वालीं एसोसिएट फ़ेलो डॉक्टर गुलबीन सुल्ताना कहती हैं कि श्रीलंका में एक भारत-विरोधी तबक़ा है जो हमेशा ये दिखाना चाहता है कि कैसे चीन उनके लिए भारत से ज़्यादा बेहतर दोस्त है क्योंकि वो उनकी राजनीति में दखल नहीं देता।
डॉक्टर गुलबीन सुल्ताना ने कहा, "श्रीलंका के आम लोगों के बीच बनाया गया ये मिथक इस बार टूट गया है, वो लोग जो दलील देते थे कि चीन उनका भरोसेमंद सहयोगी है, उन्हें ये समझ आ गया है कि ये बात सही नहीं है।"
पिछले कुछ समय से भारत ने श्रीलंका को लगातार मदद भेजी है, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर पिछले सप्ताह पाँच देशों के संगठन बिम्स्टेक के कार्यक्रम के सिलसिले में श्रीलंका के दौरे पर भी गए, और मदद की पेशकश की।
ऐसा समझा जाता है कि भारत ने 2022 के शुरू से अब तक श्रीलंका को 2।4 अरब डॉलर की मदद भेज चुका है। और चीन ने भारत से ज़रूरी सामानों की क़िल्लत को दूर करने के लिए और 1।5 अरब डॉलर की मदद माँगी है।
हालाँकि जानकारों का मत है कि श्रीलंका जिस वित्तीय संकट में फँसा है, उससे उसे भारत या किसी इक्के-दुक्के देश की मदद नहीं बचा सकती, उसे इसके लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद लेनी होगी, और वो इसकी कोशिश भी कर रहा है।
प्रोफ़ेसर पी सहदेवन कहते हैं, "लंबे समय के लिए भारत पर निर्भर रहना मुश्किल है, क्योंकि भारत को भी और काम करने हैं, हो सकता है कि भारत और 1।5 अरब डॉलर दे भी दे, मगर सवाल उठता है कि ऐसा कब तक चल सकता है?"
मगर भारत ने मुश्किल की इस घड़ी में श्रीलंका के कंधे पर जो हाथ रखा है, उसकी गरमाहट को श्रीलंका की सरकार ने भी महसूस किया है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर के दौरे से पहले फ़रवरी में श्रीलंका के विदेश मंत्री जीएल पेइरिस तीन दिन के दिल्ली दौरे पर आए थे। इसके बाद मार्च में श्रीलंका के तत्कालीन वित्त मंत्री बसिल राजपक्षे भी भारत दौरे पर आए थे।
जीएल पेइरिस ने अपने भारत दौरे में अख़बार इंडियन एक्सप्रेस से एक इंटरव्यू में कहा था कि भारत और श्रीलंका संबंध ऊँचाई पर हैं और उनके देश में चीन को लेकर जताई जाती रही चिंता अब "अतीत की बात" हो गई है।
श्रीलंका के आर्थिक संकट के बीच भारत के साथ निकटता बढ़ने का एक दूसरा असर भी दिखाई देने लगा है। भारत ने श्रीलंका में कई परियोजनाओं में दिलचस्पी दिखाई थी, मगर बात आगे नहीं बढ़ सकी। वो स्थिति अब बदल रही है।
डॉक्टर गुलबीन सुल्ताना कहती हैं," त्रिंकोमाली ऑयल टैंक फ़ार्म जैसी कई परियोजनाओं में भारत ने एमओयू (सहमति पत्र) पर दस्तख़त भी कर दिए थे, मगर कभी स्थानीय विरोध के नाम पर, तो कभी किसी और बहाने से उसे टाला जाता रहा। मगर दिसंबर के बाद से जब से भारत ने श्रीलंका को मदद देने की बात की है, ऐसी कई परियोजनाएँ जो अटकी थीं, मौजूदा सरकार की ओर से उन्हें आगे बढ़ाने के लिए कोशिश होती दिखाई दे रही है।"
चाय बाज़ार में अवसर
इस बीच भारत के चाय उद्योग से जुड़े प्रतिनिधियों और जानकारों का मानना है कि श्रीलंका में जारी आर्थिक संकट भारत के चाय निर्यातकों के लिए फ़ायदेमंद हो सकता है।
समाचार एजेंसी पीटीआई ने रेटिंग एजेंसी इकरा के उपाध्यक्ष कौशिक दास के हवाले से बताया है कि श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय चाय बाज़ार का एक बड़ा खिलाड़ी है और हर साल वहाँ जितनी चाय का उत्पादन होता है उसका 97-98 फ़ीसदी विदेशी बाज़ार में निर्यात होता है।
कौशिक दास ने पीटीआई से कहा, "श्रीलंका के चाय उत्पादन में बड़ी गिरावट का अंतरराष्ट्रीय बाज़ार पर असर पड़ेगा और इससे सप्लाई में जो कमी आएगी उसे पूरा करने के लिए भारतीय निर्यातकों के सामने एक अवसर बन सकता है।"
भारतीय चाय निर्यातक संगठन के अध्यक्ष अंशुमान कनोरिया ने पीटीआई से कहा कि श्रीलंका में अभी जो आर्थिक संकट है, उससे वहाँ चाय की पैदावार में 15 फ़ीसदी की कमी हो सकती है।
वहीं, हाल ही में कोलंबो से लौटे दक्षिण भारत चाय निर्यातक संगठन के अध्यक्ष दीपक शाह ने बताया कि श्रीलंका में दिन में 12-13 घंटे बिजली नहीं रह रही, और ना ही जेनरेटर चलाने के लिए तेल है जिससे उत्पादन प्रभावित हो रहा है।
उन्होंने पीटीआई से कहा, "आम तौर पर इसका असर चाय की क्वालिटी पर भी पड़ता है। इसके अलावा वहाँ बारिश भी कम हुई है। और मुझे लगता है कि ऐसे में हमारे पड़ोसी देश में उत्पादन 20-25 प्रतिशत कम हो सकता है।"
वैसे श्रीलंका में संकट के बीच अवसरों की चर्चा के बीच जानकार ऐसी स्थिति को लेकर आगाह भी करते हैं।
डॉक्टर गुलबीन सुल्ताना कहती हैं," भारत के किसी भी पड़ोसी देश में अस्थिरता बहुत अच्छी बात नहीं है क्योंकि इसका असर भारत पर पड़ता है, जैसे अभी ये ख़बरें आई हैं कि श्रीलंका में संकट के गंभीर होने के बाद वहाँ से बड़ी संख्या में लोग अवैध तौर पर भारत के तटीय इलाक़ों में पहुँच रहे हैं, और इसका राजनीतिक और आर्थिक असर' पड़ सकता है।"
सोर्स- बीबीसी