जहांगीरपुरी हिंसा; अब कैसे हैं ज़मीनी हालात, पढ़े बीबीसी की रिपोर्ट
16 अप्रैल को दिल्ली के जहांगीरपुरी की हिंसा का खौफ़ वहां रहने वाले लोगों पर अब भी दिखाई देता है, कई लोग पुलिस द्वारा परेशान किए जाने या फिर झूठे केस में फंसा दिए जाने के डर से घर छोड़कर जाने को मजबूर हैं।
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इस मकान पर पिछले करीब 1 महीने से ताला लटका हुआ है। घर में रहने वाले व्यक्ति का पता नहीं है। वो कहां गया या कब लौटेगा ये भी किसी को मालूम नहीं। मालूम है तो सिर्फ़ उसकी कहानी।
पड़ोसी बताते हैं, ''यहां 'वो' किराए पर रहता था। चिकन सूप की रेहड़ी लगाता था लेकिन पुलिस के डर से भाग गया।''
हालांकि बीबीसी से बातचीत में दिल्ली पुलिस की पीआरओ सुमन नालवा ने इन सभी आरोपों का खारिज किया है। उन्होंने कहा, "कुछ लोगों ने हाई कोर्ट में एक याचिका लगाई थी कि पुलिस लोगों को परेशान कर रही है। कोर्ट ने उस याचिका में कुछ नहीं पाया और उसे खारिज कर दिया।
"इसके अलावा कुछ सत्ता विरोधी और पुलिस विरोधी लोग प्रोपेगेंडा चला रहे हैं। वे लोग हमें हमारा काम करने से पहले रोकेंगे फिर कहेंगे कि पुलिस कुछ काम नहीं कर रही है।"
'वो' पिछले कई कई सालों से जहांगीरपुरी में सूप की रेहड़ी लगा रहा था लेकिन अब कई दिनों से एक लोहे की जंजीर से रेहड़ी बंधी हुई है और उसकी देखरेख करने वाला भी कोई नहीं है।
ये कहानी उस डर की जो 16 अप्रैल को हुई जहांगीरपुरी में हिंसा से शुरू हुई। इसके बाद इस डर ने इलाके में रहने वाले कई मुसलमानों को घर छोड़ने को मजबूर कर दिया।
बीबीसी को पता चला था कि जहांगीरपुरी हिंसा के बाद यहां रहने वाले कई मुसलमान अपना घर और काम छोड़कर जा रहे हैं। आख़िर इसकी वजह क्या है। ये जानने के लिए हम जहांगीरपुरी के उसी इलाके में पहुंचे जहां अप्रैल में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी।
जहांगीरपुरी में दाखिल होने पर करीब एक किलोमीटर दूर मुख्य चौराहा है। चौराहे से बाएं मुड़ने पर करीब 200 मीटर दूर मस्जिद है और वहां से कुछ दुकानें छोड़कर मंदिर है। इसी सड़क पर 16 अप्रैल को हनुमान जयंती के दौरान सांप्रदायिक हिंसा हुई थी और उसके दो दिन बाद एमसीडी ने अवैध निर्माण हटाने की कार्रवाई की थी।
घटना के करीब डेढ़ महीने बाद दुकानों और घरों के सामने का फर्श अभी भी टूटा हुआ हैं। लोगों ने फिर से अपनी छोटी छोटी दुकानें लगाना शुरू कर दिया है।
सड़क से पुलिस ने बैरिकेट तो जरूर हटा लिए हैं लेकिन उनकी गश्त आम दिनों के मुकाबले काफी बढ़ गई है। हमें कई बार पुलिस की गाड़ी इलाके में गश्त करते हुए दिखाई दी।
मुख्य चौराहे से सीधा जाने पर बाएं तरफ सी ब्लॉक है और उसके पीछे झुग्गी शुरू हो जाती हैं। संकरी गलियों को पार करते हुए हम झुग्गी के अंदर पहुंचे।
झुग्गी में रहने वाले लोग बाहर से आने वाले व्यक्ति को शक की नज़र से देखते हैं। कपड़ों के अलावा स्थानीय लोगों की नज़रें बाहर से आने वाले व्यक्ति के जूतों पर टिकती हैं। लोगों बताते हैं कि पुलिस वाले सादी वर्दी में आते हैं लेकिन उनके जूतों से हमें उन्हें पहचान लेते हैं।
इलाके में कुछ लोग बात करने के लिए तैयार तो हुए लेकिन अपना नाम ज़ाहिर करने को तैयार नहीं हैं। उन्हें भय है कि पुलिस उन्हें भी परेशान करना शुरू कर देगी।
जहांगीरपुरी में रहने वाले फारुख़ का कहना है, "पुलिस पूछताछ के नाम पर कई लोगों को उठाकर ले गई है। पुलिस कार्रवाई से इलाके में रहने वाले कई मुस्लिम परिवार मकान छोड़कर जा रहे हैं। कई घरों में महीने भर से ताला लगा है।"
झुग्गी में थोड़ा और अंदर जाने पर एक संकरी गली में साफ़िया बीवी रहती हैं। उनकी कहानी भी पुलिस कार्रवाई के इर्द गिर्द घूमती है।
साफ़िया का बेटा अपनी पत्नी और बच्चों के साथ करीब एक महीने पहले ही घर छोड़ चुका है। कमरे पर ताला लटका है और उनकी स्कूटर तब से घर के बाहर खड़ी है जिस पर धूल की परत चढ़ी हुई है।
साफ़िया का बेटा बचपन से ही जहांगीरपुरी में रह रहा था। करीब 20 दिन पहले उन्होंने अपने परिवार के साथ इलाके को छोड़ दिया।
उनकी मां साफ़िया अब भी यहीं रह रही हैं। वो बताती हैं, "पुलिस मेरे बेटे को ढूंढ रही है। 1 जून को ही चार लोग मेरे बेटे को खोजते हुए घर आए थे। सादी वर्दी में आए वो चारो खुद को दिल्ली पुलिस का बता रहे थे। मैंने उन्हें बताया कि मुझे बेटे के बारे में कुछ मालूम नहीं।"
साफ़िया का दूसरा बेटा भी जहांगीरपुरी में ही रहता है। उनका परिवार भी डरा हुआ है। उनकी पत्नी बताती हैं, "पुलिस हफ्ते में दो दिन बार खोजबीन के लिए आती रहती है। इस बार आए थे तो राशन कार्ड मांग रहे थे। हमने कुछ नहीं दिया। बेटा कब लौटेगा ये खुद मां को भी नहीं पता।
साफ़िया के बाद हमारी मुलाकात मुस्तकीम से हुई। मुस्तकीम बताते हैं, "मैं 17 अप्रैल यानी सांप्रदायिक हिंसा के अगले दिन ही यहां से भाग गया था। मैं दो दिन पहले ही लौटा हूं। मैं अपने दोस्त के घर छिपकर रह रहा था। पुलिस वाले सब टॉर्चर कर रहे हैं। घर पर लोगों को उठाने के लिए आ रहे हैं। मेरे कुछ दोस्तों को पुलिस ने बंद कर दिया है और कुछ को परेशान कर रही है"।
मुस्तकीम झुग्गी में वापस लौटे तो ज़रूर हैं लेकिन कितने दिन रुकेंगे इसका ठीक ठीक जवाब उनके पास नहीं था।
मुस्तकीम के बाद हमारी मुलाकात सरीफ़ा बीवी से हुई। 10 दिन पहले पुलिस सरीफ़ा बीबी के 19 साल के बेटे को उठाकर ले गई थी।
सरीफ़ा बताती हैं, "मेरा बेटा खाना खा रहा था। 6 पुलिसवाले सादी वर्दी में आए और मेरे बेटे को मारते-मारते ले गए। दो दिनों तक उन्होंने मेरे बेटे को अपने पास रखा फिर छोड़ दिया।"
सरीफ़ा का बेटा बेटा कबाड़ का काम करता है। सरीफ़ा के तीन बड़े बेटे पश्चिम बंगाल में रहते हैं।
सरीफ़ा कहती हैं, ''पुलिस 1 जून को फिर से आई थी, बोल रही थी कि अपने बड़े बेटे को पेश करो, नहीं तो घर की कुर्की कर देंगे। मेरा बड़ा बेटा पिछले आठ महीनों से पश्चिम बंगाल में रह रहा है। जब हिंसा हुई उस दिन वो यहां था ही नहीं। मेरी जवान बेटी है, पुलिस वाले कभी भी आ जाते हैं। डराकर जाते हैं कि सबको उठा कर ले जाएंगे। हम लोग बहुत परेशान हैं।"
ये कहानी साफ़िया, सरीफ़ा जैसे कई परिवारों की है जो पिछले कई दशकों से जहांगीरपुरी में रह रहे हैं। इन परिवारों के मर्द या लड़के जहांगीरपुरी छोड़कर जा रहे हैं।
जहांगीरपुरी से कहां जा रहे हैं लोग
जहांगीरपुरी में ज़्यादातर मुस्लिम परिवार पश्चिम बंगाल के पूर्वी मिदनापुर में हल्दिया और उसके आस पास के रहने वाले हैं। कई दशकों पहले ये परिवार काम की तलाश में दिल्ली आए थे और समय के साथ उन लोगों ने जहांगीरपुरी में अपनी रिहाइश बना ली। यहां रहने वाले परिवार ज़्यादातर कबाड़ बीनने का काम करते हैं।
झुग्गी में रहने वाले ज़्यादातर मुस्लिम परिवार बांग्लाभाषी हैं। हिंदी के बजाय बांग्ला भाषा अच्छे से बोलते हैं।
जहांगीरपुरी में ही मोबाइल की दुकान चलाने वाले अकबर बताते हैं, "पुलिस के डर से लोग वापिस पश्चिम बंगाल भाग रहे हैं। मंगलवार को चौराहे पर ऑटो ही ऑटो नज़र आते हैं क्योंकि उस दिन आनंद विहार से हल्दिया के लिए ट्रेन जाती है। पिछले कई हफ्तों से लोग ऐसा कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि अगर नहीं भागे तो पुलिस पकड़ कर ले जाएगी।"
आख़िर पुलिस किसे ढूंढ रही है?
जहांगीरपुरी हिंसा में जांच अब भी जारी है। पुलिस ऐसे संदिग्ध लोगों की खोजबीन कर रही है जो 16 अप्रैल की सांप्रदायिक हिंसा में कथित रूप से शामिल थे लेकिन जहांगीरपुरी में रहने वाले मुस्लिम परिवारों का कहना है कि पुलिस जानबूझकर बेकसूर लोगों को परेशान कर रही है।
पुलिस को जिन लोगों की तलाश है उनमें से एक साजदा भी है। साजदा जहांगीरपुरी के ब्लॉक सी में रहती हैं। जिस दिन सांप्रदायिक हिंसा हुई उस वक्त साजदा वहीं मौजूद थी।
साजदा बताती हैं, "मैं तरबूज लेने गई थी, तभी हिंसा भड़क गई। मैंने लोगों को शांत करवाने की कोशिश की। वीडियो में मेरा भी चेहरा दिखाई दे रहा है। मैं चार बार पुलिस थाने में जा चुकी हूं। मैं कहीं नहीं भाग रही हूं लेकिन पुलिस वाले बार बार गली में आकर परेशान कर रहे हैं।"
साजदा की परेशानी महज़ इतनी ही नहीं हैं। उनका एक बेटा प्राइवेट नौकरी करता है। वो बताती हैं, "हिंसा के बाद से मेरे बेटे का काम करना मुश्किल हो गया है। मेरे बेटे को बाहर खड़ा करके रखते हैं। यही ताना मिलता है कि ये जहांगीरपुरी का मुसलमान है। काम करना उसके लिए बहुत मुश्किल हो गया है।"
पुलिस है खामोश
वहीं जहांगीरपुरी जीएच ब्लॉक के रेज़िडेंट वेलफ़ेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष इंद्रमणि तिवारी की राय इससे अलग है। वे पुलिस की कार्रवाई का साथ देते हुए नज़र आते हैं।
इंद्रमणि तिवारी कहते हैं, "पुलिस अपना काम कर रही है। कोई घर छोड़कर नहीं जा रहा है। सिर्फ़ वे ही लोग जा रहे हैं जो सांप्रदायिक हिंसा में शामिल थे। उन्हें ही डर लग रहा है।"
इस मामले पर बीबीसी ने उत्तर-पश्चिम दिल्ली की डीसीपी उषा रंगनानी से व्यक्तिगत रूप से मिलने की, फोन, ईमेल और मैसेज के ज़रिए बात करने की कोशिश की लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया।
पुलिस जिन मुस्लिम परिवारों पर कार्रवाई कर रही है उनकी मदद करने वालों में एक नाम फ़ारुख़ का भी है। फ़ारुख़ जहांगीरपुरी में स्क्रैप का काम करते हैं। वो बताते हैं, "पुलिस ने मुस्लिम समाज से अब तक 35 से ज्यादा लोगों को गिरफ़्तार किया है। हम उन परिवारों की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं।"
एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स जहांगीरपुरी हिंसा केस में करीब 12 अभियुक्तों को कानूनी मदद कर रही है। संस्था के नेशनल सेक्रेटरी नदीम खान पुलिस कार्रवाई पर सवाल उठाते हैं। वो बताते हैं कि पुलिस अज्ञात लोगों के खिलाफ एफ़आईआर दर्ज करने का फायदा उठाती है। इसके ज़रिए ऐसे लोगों को भी परेशान किया जाता है जिनका इस केस से कुछ लेना देना नहीं है।
नदीम ख़ान के मुताबिक जहांगीरपुरी हिंसा केस में पुलिस ने एक नाबालिग बच्चे को मास्टरमांइड बताकर उठा लिया था। पुलिस ने कोर्ट से उसकी कस्टडी भी ले ली थी। कोर्ट ने तब उम्र की जांच नहीं की। हम इस मामले को हाई कोर्ट ले गए। कोर्ट ने पुलिस को काफी लताड़ लगाई और चार घंटे के अंदर जुवेनाइल सेंटर में भेजने का आदेश दिया।
जहांगीरपुरी में मुस्लिम समुदाय के जो लोग सैकड़ों मील दूर रोजी रोज़गार के लिए आए थे अब हिंसा के बाद उनका जीवन बदल गया है। कई परिवार पश्चिम बंगाल में अपने गांव लौटना चाहते हैं। कई ऐसे भी जो अब भी इस उम्मीद में हैं कि मामला शांत हो जाए तो ज़िंदगी वापस पटरी पर लौट आएगी।