12वीं के नंबरों पर ग्रेजुएशन में नहीं मिलेगा एडमिशन
झारखंड के देवघर की रहने वाली कौशिकी ने बारहवीं के इम्तिहान में 93 प्रतिशत अंक हासिल किए. कौशिकी दिल्ली यूनिवर्सिटी के नामी कॉलेज से अर्थशास्त्र की पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी का जब कटऑफ आया तो कौशिकी के हाथ निराशा लगी. वजह थी कि पिछले साल दिल्ली यूनिवर्सिटी के नामी कॉलेजों में अर्थशास्त्र का कटऑफ 99 प्रतिशत तक गया था. यही हाल कई दूसरे विषयों का भी था.
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दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिले की उम्मीद में ऐसे ही हजारों छात्र कटऑफ के बाद हताश हो जाते हैं. जबकि उनमें प्रतिभा की कमी नहीं होती. कौशिकी के साथ भी यही हुआ. उन्हें अपना विषय बदलना पड़ा. कौशिकी ने इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च के तहत होने वाली परीक्षा को पास किया जिसके बाद उन्हें तेलंगाना के कॉलेज में दाखिला मिला. अब कौशिकी फूड टेक्नोलॉजी की पढ़ाई कर रही हैं और सरकार से उन्हें स्कॉलरशिप भी मिल रही है.
पांच महीने की उथल पुथल के बाद कौशिकी को पढ़ाई के लिए संस्थान तो मिल गया लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई का सपना पूरा नहीं हो पाया. ये कहानी ना तो एक यूनिवर्सिटी की है और ना ही किसी एक छात्रा की. हजारों छात्र देशभर में हर साल दाखिले के लिए इस तरह की कटऑफ का सामना करते हैं.
लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. 2022-23 शैक्षणिक सत्र से यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) ने अंडर ग्रेजुएट कोर्स में दाखिला लेने की पुरानी व्यवस्था को बदल दिया है. अब देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ग्रेजुएशन में दाखिला लेने के लिए बारहवीं बोर्ड में प्राप्त अंकों को वरीयता नहीं दी जाएगी लेकिन न्यूनतम अंकों की जरूरत जरूर पड़ेगी.
यूजीसी ने विश्वविद्यालय संयुक्त प्रवेश परीक्षा की व्यवस्था की है. ये एक कॉमन टेस्ट होगा जिसमें प्राप्त अंकों के आधार पर छात्र देश के किसी भी केंद्रीय विश्वविद्यालय में दाखिला ले सकेंगे. इसमें बारहवीं के नंबरों को वेटेज नहीं दिया जाएगा. उदाहरण के लिए कोई छात्र बारहवीं में 90 प्रतिशत अंक प्राप्त करता है और विश्वविद्यालय संयुक्त प्रवेश परीक्षा में 80 प्रतिशत. ऐसे में उस छात्र को संयुक्त प्रवेश परीक्षा के आधार पर ही दाखिला मिलेगा. सोमवार को यूजीसी ने देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अंडर ग्रेजुएट कोर्स में दाखिले के लिए इस व्यवस्था की घोषणा की
2022-23 शैक्षणिक सत्र से विश्वविद्यालय संयुक्त प्रवेश परीक्षा (CUET) का आयोजन नेशनल टेस्टिंग एजेंसी करेगी. ये परीक्षा कंप्यूटर बेस्ड होगी जिसमें छात्रों को सेंटर पर जाकर कंप्यूटर की मदद से मल्टीपल च्वॉइस सवालों का जवाब देना होगा. परीक्षा का पाठ्यक्रम, एनसीईआरटी के 12वीं कक्षा के सिलेबस से मिलता-जुलता ही होगा.
विश्वविद्यालय संयुक्त प्रवेश परीक्षा 13 भाषाओं में होगी. छात्र अपनी पसंद की भाषा का चयन कर इस परीक्षा को दे सकते हैं. इनमें अंग्रेजी, हिंदी, असमिया, बंगाली, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, ओड़िया, पंजाबी, तमिल, तेलुगु और उर्दू भाषा शामिल है.
केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अंडर ग्रेजुएट कोर्स में दाखिले के लिए आवेदन अप्रैल 2022 के पहले सप्ताह से शुरू होंगे. छात्रों को जुलाई के पहले हफ्ते में ये परीक्षा देनी होगी.
यूजीसी के चेयरमैन प्रो. एम जगदीश कुमार का मानना है कि इससे बच्चों को देश में लेवल प्लेइंग फील्ड मिलेगी. बीबीसी से बातचीत में प्रो. एम जगदीश कुमार कहते हैं, ''एक पेपर भाषा का रहेगा. 13 भाषाओं में से किसी भी भाषा का चुनाव किया जा सकता है. इसके अलावा 27 मुख्य विषय हैं. एक छात्र ज्यादा से ज्यादा 6 विषयों के लिए परीक्षा दे सकता है. इसके आधार पर केंद्रीय विश्वविद्यालय के अंडर ग्रेजुएट कोर्स में दाखिला मिलेगा''
अब छात्रों को अलग अलग केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए अलग अलग प्रवेश परीक्षा नहीं देनी होगी. छात्र एक कॉमन टेस्ट की मदद से देश के किसी भी केंद्रीय विश्वविद्यालय के अंडर ग्रेजुएट कोर्स में दाखिला ले पाएंगे.
हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री का मानना है कि इससे छात्रों को फायदा होगा. बीबीसी से बातचीत में कुलदीप चंद अग्निहोत्री कहते हैं, ''हर राज्य के एजुकेशन बोर्ड का अपना अलग अलग सिलेबस है. पंजाब और हरियाणा स्टेट बोर्ड के बच्चे शिकायत करते हैं कि उनकी मार्किंग अलग तरीके से होती है जबकि सीबीएसई से पढ़ने वाले बच्चे 99 प्रतिशत तक ले आते हैं. कॉमन टेस्ट होने से बच्चों को एक समान मौका मिलेगा''
भाषा के आधार पर भेदभाव खत्म
देश के अलग अलग राज्यों के बच्चे अपनी पसंद की भाषा में इस परीक्षा को दे पाएंगे. प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री बताते हैं, ''पहले भी कुछ 10-15 सेंट्रल यूनिवर्सिटी मिलकर एक कॉमन टेस्ट लेती थी लेकिन वो सिर्फ अंग्रेजी में परीक्षा होती थी. उस समय भी मैंने सवाल उठाए थे कि राजस्थान और हरियाणा का बच्चा हिंदी में पढ़ाई करता है तो वो अंग्रेजी में परीक्षा कैसे देगा? अब कॉमन टेस्ट में भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं होना होगा''
कुलदीप चंद अग्निहोत्री इन 13 भाषाओं को बढ़ाने की बात करते हैं. उनका कहना है देश भर में लाखों बच्चे इस परीक्षा को देंगे तो इस परीक्षा को 13 भाषाओं तक सीमित नहीं रखना चाहिए. ज्यादा भाषाओं में पेपर देने की सुविधा से बच्चों को इसका लाभ मिलेगा.
नए नियमों से क्या होगा नुकसान
एक तरफ जहां विश्वविद्यालय संयुक्त प्रवेश परीक्षा के फायदों की बात हो रही है वहीं दूसरी तरफ कुछ जानकार इसे विश्वविद्यालयों की स्वतंत्रता पर भी खतरा भी बता रहे हैं.
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. गंगा सहाय मीणा का मानना है कि इस नए नियम से स्थापित विश्वविद्यालयों को नुकसान होगा. बीबीसी से बातचीत में वे इसकी कई वजह गिनाते हैं.
''जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के अंदर डेप्रिवेशन प्वाइंट की व्यवस्था है. इसके तहत चार कैटेगरी में आने वाले बच्चों को डेप्रिवेशन पॉइंट दिए जाते हैं. इसका मकसद है कि पिछड़े इलाकों से आने वाले बच्चे अच्छी जगह से पढ़ाई करने वालों की तुलना में पीछे ना छूट जाएं''
ये प्वाइंट पिछड़े जिलों से पढ़ाई करने वाले, कश्मीरी माइग्रेंट, डिफेंस कैटेगरी के तहत आने वाले बच्चों और लड़कियों को दिए जाते हैं. हर कैटेगरी में पांच प्वाइंट की व्यवस्था है. छात्र ज्यादा से ज्यादा 10 पॉइंट तक ले सकता है. इन प्वाइंट की मदद से पिछड़े इलाकों से आने वाले बच्चों को जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में दाखिला मिलने में मदद मिलती है.
बीबीसी से बातचीत में प्रो. गंगा सहाय कहते हैं, ''जेएनयू में लड़कियों की और पिछड़े इलाकों से आकर पढ़ने वाले बच्चों की संख्या काफी ज्यादा है इसकी पीछे की मुख्य वजह डेप्रिवेशन प्वाइंट की व्यवस्था है. कॉमन टेस्ट के आने से जेएनयू की ये व्यवस्था का क्या होगा?''
बारहवीं की पढ़ाई क्या शून्य हो जाएगी
एक बात गौर करने की है. बारहवीं के नंबर पूरी तरह खत्म नहीं होंगे. केंद्रीय विश्वविद्यालय बारहवीं के नंबरों को दाखिले के लिए न्यूनतम आधार बना सकते हैं. उदाहरण के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी ये कर सकती है कि वो बारहवीं में कम से कम 60 प्रतिशत नंबर लाने वाले बच्चों को ही कॉमन टेस्ट के आधार पर दाखिला दे, या बनारस विश्वविद्यालय दाखिले के लिए बारहवीं में 70 प्रतिशत न्यूनतम नंबरों को आधार बना दे. ये फैसला कोई भी केंद्रीय विश्वविद्यालय अपने से कर सकता है.
मतलब साफ है कि बारहवीं में प्राप्त नंबर पूरी तरह खत्म नहीं होंगे. इसकी बजाय कॉमन टेस्ट में प्राप्त नंबरों को वरीयता का आधार बनाया जाएगा. बीबीसी से बातचीत में सीबीएसई के पूर्व चेयरमैन अशोक गांगुली कहते हैं '' ग्यारहवीं और बारहवीं की पढ़ाई के मायने नहीं रहेंगे. अब बच्चे दसवीं के बाद से ही कॉमन टेस्ट की तैयारी शुरू कर देंगे. इसी आधार पर बच्चे कोचिंग करेंगे जिससे सीखने की क्षमता काफी सीमित हो जाएगी''
अशोक गांगुली का मानना है कि यूजीसी को सिर्फ एक कॉमन टेस्ट पर आधारित नहीं होना चाहिए था. अच्छा ये होता कि कुछ प्रतिशत नंबर बारहवीं के रखते और कुछ प्रतिशत कॉमन टेस्ट के. फिर इन दोनों को जोड़कर बच्चों को अंडर ग्रेजुएट कोर्स में दाखिला मिलता. इससे बारहवीं कक्षा की अहमियत बनी रहती.