एक अरब साल पृथ्वी से कहां ग़ायब हो गये ?
पहाड़, घाटियां और दूसरी भू-आकृतियों को बनाने वाली मिट्टी की परत किताबों के उन पन्नों की तरह होती है जो ये बताती है कि आज जो परिदृश्य हमें दिख रहा है वह कब और कैसे बना।
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पृथ्वी की परत से सटी चट्टान इस किताब के शुरुआती पन्ने हैं। वो पन्ने जो धरती का शुरुआती इतिहास बताते हैं। बाद की परतों के बारे में जानने के साथ ही हम धरती के बारे में और जानने लगते हैं। लेकिन सवाल है कि जब किताब के पन्ने ही ग़ायब हों तो फिर क्या होगा? अगर इसके अध्यायों को भी पढ़ नहीं पाएं तो कहानी कैसे समझ में आएगी?
इस धरती के जियोलॉजिकल रिकॉर्ड के साथ ऐसा ही हुआ है। धरती पर मौजूद सबसे पुरानी और सबसे नई चट्टान की परतों के बीच बहुत बड़ा फ़ासला है। यानी कई पन्ने ग़ायब हैं यूनाइटेड स्टेट्स जियोफिजिकल यूनियन ( एजीयू) के मुताबिक फ़ासला एक हज़ार मिलियन साल का भी हो सकता है। इस बड़े फ़ासले को एक बड़ी असंगति के तौर पर देखा जा सकता है। भू-विज्ञान की ये सबसे बड़ी पहेलियों में से एक है।
यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बॉल्डर के जियोलॉजिकल साइंस विभाग की डॉक्टरल कैंडिडेट और जियोलॉजिस्ट बारा पीक का कहना है, ''एक अरब साल यानी पृथ्वी के इतिहास का लगभग चौथाई हिस्सा। यानी इतने वक्त की सूचना ग़ायब है। इसका मतलब काफी बड़ा वक्त ग़ायब है।" यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों के एक समूह ने इस सूचना के नदारद रहने को बड़ी जियोलॉजिकिल विस्मृति करार दिया है।
आखिर इस खोए हुए वक्त का क्या रहस्य है और इसे सुलझाना क्यों ज़रूरी है?
परत दर परत
जियोलॉजी में किसी कालखंड को चट्टानों और तलछटों की परतों में संग्रहित किया जाता है। ये परतें एक दूसरे के ऊपर जमा होती जाती हैं। निचली परत सबसे पुरानी होती है और जो सबसे ऊपर होती है वह सबसे नई।
चट्टान की परतें और हर परत की लोकेशन बताती है कि उस इलाके की मिट्टी कैसे और कब बनी। परतों के इस अध्ययन को स्ट्रेटिग्राफी कहते हैं। जब कोई परत बनी होगी तो पृथ्वी कैसी होगी। इन परतों की जहां बिल्कुल स्पष्ट तरीके से पहचान हो सकती है वैसी ही एक प्रसिद्ध जगह है अमेरिका में एरिज़ोना की ग्रैंड केनयन। यहां हर क्षैतिज लाइन दिखाती है कि परतों को बनाने वाली चट्टानें कैसे और कहां जमा हुईं। ग्रैंड केनयन में पहली बार इस बात का पता चला कि इतने बड़े दौर की सूचना गायब है।
जियोलॉजिस्ट जॉन वेस्ली पॉवेल ने 1869 में पहली बार इस पर गौर किया। उन्होंने ही बताया कि चट्टानों की किताबों पर इतने लंबे समय का इतिहास लिखा ही नहीं हुआ है। आखिर इस बीच की चट्टानें कहां गईं। पीक बताती हैं कि ये परतें इसलिए ग़ायब हैं क्योंकि चट्टानें पानी या अपरदन से ग़ायब हो गई हैं। इससे ये रेत में बदल गईं और समुद्र में जमा हो गईं। लेकिन दूसरी जगहों पर यह साफ नहीं हो पाया है कि ये परतें कभी अस्तित्व में थीं भी या नहीं।
वह कहते हैं, ''ये हो सकता है कि ऐसी जगहों पर कभी वो रेत या मिट्टी न हो जो बाद में जमकर चट्टान बन गई हों। उस परिदृश्य में कुछ हुआ ही न हो।''
आखिर इसका पता क्यों नहीं चल पा रहा?
इसका संक्षिप्त सा उत्तर यही है कि इस बारे में कोई नहीं जानता। हालांकि पीक कहती हैं कि इस खोये हुए वक्त के विश्लेषण के लिए कम से कम चार अवधारणाएं चल रही हैं। पहली का संबंध प्राचीन सुपर कॉन्टिनेंट रोडिनिया के निर्माण से है। यह एक अरब से लेकर 80 करोड़ वर्ष पूर्व बना होगा। ये प्रसिद्ध सुपर कॉन्टिनेंट पेन्जिया से पहले की बात है।
जब धरती बनने के क्रम में रोडिनिया का निर्माण हुआ तो बड़ी तादाद में चट्टानें वातावरण के संपर्क में आ गईं। हो सकता है कि इससे आकार ले रही चट्टान सामग्री नष्ट हो गई हो। पीक कहती हैं, ''जब चट्टानें नई होती हैं तो वो उन्हें नष्ट करने वाली प्रक्रिया के प्रति बड़ी संदेह में रहती हैं।''
दूसरी अवधारणा भी काफी समान है। दूसरे सुपर कॉन्टिनेंट के निर्माण को पेनोटिया कहते हैं। इसका निर्माण 58 करोड़ साल पहले हुआ होगा।
तीसरी अवधारणा भी रोडिनिया से संबंधित है लेकिन यह सुपर कॉन्टिनेंट के निर्माण से नहीं इनके टुकड़ों में विभाजन से संबंधित है। यह प्रक्रिया 75 करोड़ साल पहले हुई होगी।
धरती के इस द्रव्यमान के अलग होने की प्रक्रिया में काफी सामग्री नष्ट हो गई, जिसे जियोलॉजिस्ट ताज़ा चट्टान कहते हैं।
सोर्स : बीबीसी