क्या आप जानते है लाल किले में छुपी हुई है नहर-ए-बहिश्त
लाल किले में नहर-ए-बहिश्त हुआ करती थी, जो पूरे लाल किले में बहती थी और इसमें जगह-जगह फव्वारे लगे थे। इसके लिए पानी यमुना से खींचा जाता था और नहर-ए-बहिश्त से वह फव्वारे तक पहुंचता था। जामा मस्जिद में हौज़ (तालाब) तक पानी लाने के लिए रहट का कुआं था और वह आज भी मौजूद है।"
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जैसा कि आप जानते हैं कि पानी की आदत है कि वो ऊंचाई से नीचे की ओर बढ़ता है। पहाड़ों के झरने, नदियां या आपके घर पर पानी की मोटर का पाइप इस बात की गवाही देते आपको दिखे होंगे। ज़ाहिर है कि इसकी वजह गुरुत्वाकर्षण है।
आसान भाषा में कहें तो अगर आप अपने घर की मोटर चालू करें। फिर उसके पाइप को किसी कोने में ज़ोर से पकड़ लें तो आप देखेंगे कि पानी की स्पीड तेज़ हो गई है और पानी पाइप से जिस तरह से निकल रहा है वो दिखने में एक तरह का फव्वारा जैसा ही प्रतीत होता है।
इसी तकनीक को अब आइए ताजमहल, कश्मीर के मुग़ल गार्डन या फिर लाल किले के फव्वारों के संदर्भ में समझते हैं। ये ऐतिहासिक स्थल बिजली के अविष्कार से सालों पहले बने थे। इसके बावजूद इनमें फव्वारे बने आपने देखे होंगे।
होता ये था कि सबसे पहली कारीगरी फव्वारे को बनाने में की जाती थी। फव्वारे को कुछ ऐसा डिजाइन किया जाता कि एक जगह पानी जमा रहे, फिर वहां से वो पानी का बहाव ऐसे संकरे रास्तों या नाली में जाता, जहां जाने से पानी का प्रेशर बढ़ जाता। ये बढ़े प्रेशर का पानी फव्वारे के छेदों से जब निकलता तो उसकी स्पीड काफी ज्यादा होती।
ये पानी की स्पीड और फव्वारे के डिजाइन से गिरता पानी ही किसी फव्वारे को सुंदर बनाता है।
फव्वारे का विज्ञान
ऊपर आपने बोल चाल की भाषा में ये समझा कि फव्वारा कैसे काम करता है। आइए अब आपको थोड़ा विज्ञान भी बताने की कोशिश करते हैं।
अर्बन प्लानर शुभम मिश्रा कहते हैं, "मुग़ल काल में फव्वारा तैयार करने में टेराकोटा के पाइप का इस्तेमाल होता था। इसमें ढलान इतने सटीक तरीके से बनाए जाते थे कि पानी आए और वह ऊपर चढ़ते हुए बुदबुदाता हुआ फव्वारे से निकले। इसके लिए पानी की सही गति भी अहम होती थी। पूरी गणना और उसको फिर लागू करना कमाल की बात थी।"
टेराकोटा यानी आग में जलाकर पकाई गई मिट्टी।
इतिहासकार राना सफ़वी कहती हैं, "मुगल इमारतों में बने फव्वारे में गुरुत्वाकर्षण और हाइड्रालॉजिकल सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता था।"
यह एक ऐसा सिस्टम है, जिसमें जल संसाधनों के इस्तेमाल में सुविधा, घटना और पूरी प्रक्रिया को रखा जाता है। इसमें पानी के फ्लो प्रोसेस, भूमि उपयोग, भूमि कवर, मिट्टी, वर्षा और वाष्पीकरण जैसे घटक पर ध्यान दिया जाता है।
राना सफ़वी के मुताबिक़, "मुग़ल आर्किटेक्ट में मक़बरे बनें या मस्जिद, उसमें पानी का चैनल बेहद महत्वपूर्ण है। मक़बरे चार बाग़ के तर्ज पर बनते हैं और इसमें जगह-जगह फव्वारे लगे होते हैं। इसी तर्ज पर हुमायूं का मक़बरा बना है और इसी तर्ज पर कश्मीर के बगीचे बने हैं और उसमें फव्वारे का खूब इस्तेमाल हुआ है।
फव्वारे कहां के सबसे मशहूर?
फव्वारों से जुड़ी ऐसी ही एक दिलचस्प कहानी फ्रांस से जुड़ी है। फ्रांस के राजा लुई 14वें ने एक ऐसा फ़ैसला किया, जिससे न केवल राज परिवार बल्कि उनके दरबार के मंत्री और सहयोगी तक परेशान हो गए।
यह फ़ैसला था दरबार के कामकाज को यानी सत्ता के केंद्र को पेरिस से हटाकर दूर के इलाके वर्साय में ले जाने का, जहां पेरिस की चमक-दमक बिल्कुल नहीं थी।
पैलेस ऑफ वर्साय रिसर्च सेंटर के बेंजामिन रिंगट ने नेशनल जियोग्राफी से इस बारे में बात की थी।
उन्होंने बताया था, "जिस स्थान पर लुई अपना केंद्र बनाना चाहते थे, वह एक बंद इलाका (लैंड लॉक) था और लुई के सपनों के बगीचे और फव्वारों के लिए पर्याप्त पानी का इंतज़ाम नहीं था।"
"इसका समाधान निकालने के लिए बेल्जियम से इंजीनियर बुलाए गए। पंपिग स्टेशन और जलाशयों के सहारे सीन नदी से पानी लाया गया और फव्वारों को पानी मिला। वर्साय के शीश महल के साथ यह बगीचा और फव्वारा फ्रांस के मुख्य पर्यटक स्थलों में से एक है। इस महल में सालाना पचास लाख से ज्यादा पर्यटक जाते हैं।"
फव्वारों के लिए इटली दुनिया भर में मशहूर है। 'फाउंटेन ऑफ द फोर रिवर' हो या फिर ट्रिवी फाउंटेन, जिसमें टूरिस्ट सिक्का फेंककर दुआ मांगने में यक़ीन रखते हैं।
इसे राजा लुई 14वें ने बनवाया था और यहां के फव्वारे बेहद खूबसूरत माने जाते हैं।
इतिहासकार फ़िरोज़ बख्त अहमद बताते हैं, "इटली ऐसी जगह है, जहां कुछ बेहद पुराने फाउंटेन हैं और पियात्सा नवोना के फाउंटेन इनमें से एक हैं। अन्य यूरोपीय देश फ्रांस और जर्मनी में भी पुराने फव्वारे हैं।"