अमरीका की दूध देने वाली गाय और रूस ईरान दोस्ती की तुलनात्मक समीक्षा
अमरीकी राष्ट्रपति बाइडन के बहुप्रतीक्षित पश्चिमी एशिया के दौरे के बाद अब रूस के राष्ट्रपति पुतिन का ईरान का दौरा मीडिया में प्रमुखता से कवरेज पा रहा है।
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कई बार दौरे को स्थगित करने के बाद आखिरकार अमरीकी राष्ट्रपति बाइडन पिछले सप्ताह इजरायल और सऊदी अरब की यात्रा पर पहुँचे। उनके इस दौरे को व्यापक मीडिया कवरेज मिली। हालांकि इजरायल और सऊदी अरब के खराब मानवाधिकार रिकार्ड के कारण अमरीका के साथ साथ दुनियाभर के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस यात्रा की निंदा की है।
बाइडन ने अपनी सऊदी अरब की यात्रा का औचित्य दर्शाने के लिए वाशिंगटन पोस्ट में एक आर्टिकल में कहा कि वह पूरी दुनिया में जारी ऊर्जा संकट के हाल के लिए सऊदी अरब जा रहे हैं।
बहुत से विश्लेषकों का भी यह मानना था कि बाइडन की सऊदी अरब यात्रा के दो लक्ष्य हैं। एक सऊदी अरब और इजरायल के बीच संबंधों के सामान्यीकरण के रास्ते को हमवार करना और दूसरे सऊदी अरब से आयल प्रोडेक्शन में बढ़ोतरी करने की मांग करना।
लेकिन बिन सलमान के साथ वार्ता के बाद जो साझा बयान जारी किया गया उससे ऐसा लगता है कि बाइडन का यह दौरा उनकी मंशा के अनुरूप कामयाब नहीं रहा। अमरीकी मीडिया ने भी इस दौरे को एक नाकाम दौरा बताया है।
बाइडन द्वारा तेल के उत्पादन में बढ़ोतरी की मांग पर सऊदी अरब ने अपने बयान में कहा हैः कि सऊदी अरब तेल उत्पादन बढ़ाने की स्थिति में नहीं है। तेल उत्पादन में बढ़ोतरी का कोई भी फैसला ओपेक के अंतर्गत ही लिया जाएगा।
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एक तरफ़ जहां अमरीकी राष्ट्रपति सऊदी अरब से खाली हाथ वापस गए हैं, वहीं दूसरी तरफ़ रूस के राष्ट्रपति पुतिन का ईरान का दौरा चर्चा में है।
रूस के यूक्रेन पर हमले और उसके बाद अमरीका एवं पश्चिमी देशों द्वारा इस देश पर प्रतिबंध और ईरान पर परमाणु कार्यक्रमों के कारण प्रतिबंध के बाद यह दोनों देश तेज़ी से एक दूसरे के करीब आए हैं। विश्लेषकों का मानना है कि इस समय अंतर्राष्ट्रीय परिदृष्य में रूस, चीन और ईरान अमरीका के मुकाबले में एक नया समीकरण गढ़ रहे हैं। और इन तीनों देशों का एक मंच पर आना अमरीका के लिए खतरे की घंटी है।
समाचार के अनुसार पुतिन के ईरान दौरे पर तुर्की, ईरान और रूस के बीच सीरिया में जारी संघर्ष पर कोई समझौता हो सकता है। यह भी खबर है कि रूस ईरान से आत्मघाती ड्रोन की खरीदारी पर भी बातचीत कर सकता है।
एक तरफ़ जहां पुराने सहयोगी अमरीका और सऊदी अरब के संबंधों में खटास आई है। जिसका नमूना हमको बाइडन की सऊदी अरब यात्रा में भी देखने के मिला। कि जब खगोशी हत्याकांड का मामला बाइडन द्वारा उठाए जाने के बाद बिन सलमान ने अमरीका से पूछ लिया की अबू अकलेह की इजरायल द्वारा हत्या के मामले में क्या किया है, या फिर अमरीका द्वारा तेल उत्पादन बढ़ाने की मांग पर ठेगा दिखा दिया। दूसरी तरफ़ पुराने सहयोगी ईरान और रूस लगातार एक दूसरे के करीब आ रहे हैं। परमाणु मामलों पर जहां रूस ईरान का पक्ष लेते हुए दिखाई देता है, वहीं यूक्रेन पर रूस के हमले के मामले में ईरान के स्पष्ट रूप से रूस का साथ दिया है।
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बदलते समीकरण और संबंध दिखाते हैं कि अगर राजनीतिक स्तर पर दोस्ती बराबर की हो तो वह अधिक कामयाब रहती है, जैसा कि रूस और ईरान के मामले में देखने को मिल रहा है। यह एक ऐसी दोस्ती है, जिसमें दोनों देश एक दूसरे के परस्पर सम्मान के साथ सहयोग कर रहे हैं। लेकिन अगर दोस्ती बराबर की न हो य फिर एक देश लगातार दूसरे देश का तिरस्कार करता रहे तो पुराना सहयोगी भी मौक़ा पड़ने पर साथ छोड़ देता है। जैसे कि सऊदी अरब और अमरीका के मामले में देखने को मिला है। यह वही अमरीका है जिसके राष्ट्रपति ने किसी ज़माने में सऊदी अरब को दूध देने वाली गाय कहा था।
अमरीका और सऊदी अरब के संबंधों का भविष्य क्या होगा, या फिर ईरान और रूस की दोस्ती किस सीमा तक जाएगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन एक बात तै है कि हाल के समय में अमरीका के मुकाबले में ईरान अपने सहयोगियों को जोड़ने में अधिक कामयाब रहा है, और यह उसकी सफल डेप्लोमेसी का नतीजा है।