हारे हुए लोगों की बैठक
"हारे हुए लोगों की बैठक" यह सबसे अच्छी लाइन है जो अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन की पश्चिमी एशिया की यात्रा के लिए कही जा सकती है।
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एक: तेल अवीव में बेन गुरियन हवाई अड्डे पर बाइडन के उतरने का दृश्य अमरीका की वर्तमान स्थिति का प्रतीक था। बाइडन की मानसिक अक्षमता की समस्या बार-बार आई, वे पूछते दिखे: "अब मुझे क्या करना चाहिए?!" और कई लोग उन्हें भ्रम से बाहर निकालने के लिए दौड़ पड़ते हैं। दो दिन तेल अवीव में रहने के बाद बाइडन जेद्दा के लिए रवाना हो गए।
दो: इज़राइल ने पिछले चार वर्षों में अभूतपूर्व संकटों का सामना किया है। इस शासन की कैबिनेट को चार बार भंग करना पड़ा है। गाजा युद्ध में हार, ईरान की शक्ति में वृद्धि और हिजबुल्लाह की क्षमताओं, और इजरायल में आंतरिक विवादों के तेज होने के कारण दो पूर्व प्रधानमंत्रियों (एहूद बराक और नफ्ताली बेनेट) ने चेतावनी दी है कि इजरायल 80 साल के अभिशाप में फंस गया है। और बहुत संभव है कि यह शासन अपने जीवन के आठवें दशक के अंत तक अस्तित्व बनाए नहीं रख पाएगा। इजरायल की सुरक्षा रिपोर्ट में इस शासन के आंतरिक विवादों को एक बड़े खतरे के रूप में वर्णित किया गया है। इसीलिए बाइडन की यात्रा के दौरान, सभी राजनेताओं को इकट्ठा करके और एक स्मारिका फोटो खींचकर इस द्विध्रुवीय वातावरण को कम करने का प्रयास किया गया। जबकि सच्चाई यह है कि अमरीका एक अभूतपूर्व द्विध्रुवीय स्थिति का सामना कर रहा है।
तीन: क्षेत्र के मैदानी हालात बताते हैं कि इस क्षेत्र में पिछले दो दशकों से अमरीका और इजरायल के विरुद्ध हवा चल रही है। और ईरान ने वैश्विक शक्ति की धुरी को पश्चिम से पूर्व की ओर स्थानांतरित करने में एक अहम भूमिका निभाई है। अमेरिकियों द्वारा नई सदी को "न्यू अमेरिकन सेंचुरी" नाम देने के दो दशक बाद, अब विश्व के कई बड़े नेता कह रहे हैं कि: दुनिया "न्यू एशियन सेंचुरी" के उद्भव को देख रही है।
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चार: पश्चिमी एशिया के दलदल में फंसने के बाद अमरीका ने इस क्षेत्र में अपने महंगे हस्तक्षेप को कम करने चीन और रूस की प्रगति पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया। यह आर्थिक क्षेत्र में चीन से अमरीका की हार थी, और राजनीतिक एवं सैन्य क्षेत्र में रूस से हार। जिसका हालिया उदाहरण यूक्रेन युद्ध है। अमरीका में आठ सरकारें निकल जाने के बाद भी अब भी ईरान इस देश के लिए मुख्य समस्या बना हुआ है।
"रणनीतिक गिरावट" की स्थिति में अब अमरीका को समझ में नहीं आ रहा ह कि व सुदूर पूर्व में चीन की प्रगति पर ध्यान केंद्रित करे, या पूर्वी यूरोप में रूस की शक्ति पर ध्यान केंद्रित करना है, या फिर मध्य पूर्व में वापस लौट जाए, जहां उसे अफगानिस्तान, इराक़ और सीरिया में अपमान जनक हार का सामना करना पड़ा है उसका सात हजार अरब डॉलर खर्च बेकार चला गया।
पांच: एक तरफ अमरीका सऊदी अरब को दूध देने वाली गाय की तरह देखता है जबकि दूसरी तरफ स्वंय आइपेक (AIPAC) लॉबी द्वारा खूब दुहा गया है। IPEC को अब भी अमरीका से 25 साल पहले वाली आशाएं हैं, जिसने व्हाइट हाउस को अफगानिस्तान और इराक के दलदल में प्रवेश करने के लिए मजबूर किया था। लेकिन आज का अमरीका उन दिनों के अमरीका से बहुत अलग है। सीरिया और इराक (ISIS) में छद्म युद्ध में हार के बाद अमरीकी शक्ति की गिरावट दोगुनी हो गई है। थॉमस फ्रीडमैन ने पिछले साल तुर्की के अखबार "मेलिट" के साथ एक साक्षात्कार में स्वीकार किया: "हमारे पास अब सीरिया जैसे संकटों में सैन्य हस्तक्षेप करने की क्षमता नहीं है, यहां तक कि एक अंगुली के बराबर भी नहीं।
अमरीका एक ऐसे दौर में प्रवेश कर चुका है, जहां उसे अपनी आंतरिक समस्याओं को हल करने की आवश्यकता है। अमरीकी लोग कम सेवाओं के लिए अधिक कीमत चुका रहे हैं, और अब पहले से कहीं अधिक यह प्रश्न पूछते हैं कि दुनिया के एक निश्चित क्षेत्र में हमारी सेना क्या कर रही है?
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छह: अमरीका के अंदर बाइडन की शारीरिक स्थिति और उनकी सरकार का हालत पिछले सत्तर वर्षों में कई मायनों में अभूतपूर्व रही है। हेल पत्रिका ने संयुक्त राज्य अमरीका की स्थिति का वर्णन इस प्रकार किया है: "यूक्रेन के बहाने रूस के खिलाफ प्रतिबंधों का बूमरैंग अब अमरीकी और यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं के तरफ़ पलट गया है और पिछले चार दशकों का सबसे अभूतपूर्व मुद्रास्फीति पैदा कर दी है।"
सात: इस आंतरिक और बाहरी स्थिति के साथ, अमरीका इजरायल या सऊदी अरब की मदद करने के लिए बहुत कमजोर है। इजरायल और सऊदी अरब अमरीका की मदद से ज्यादा अमरीका के कंधों पर बोझ बन गए हैं। डेमोक्रेट कई दशकों से खुद को लोकतंत्र और मानवाधिकारों के पक्ष में दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अब वे तेल अवीव और रियाद में दुनिया की सबसे अस्थिर, बेईमान और आपराधिक सरकारों के प्रमुखों के साथ तस्वीरें ले रहे हैं। रियाद में बाइडन का मेजबान वह है जिसने इस्तांबुल में वाशिंगटन पोस्ट के स्तंभकार को आरी से काटने और सैकड़ों सऊदी नागरिकों की हत्या का आदेश दिया था।
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ट्रम्प की तरह, बाइडन भी सऊदी क्राउन प्रिंस को दूध देने वाली गाय की तरह देख रहे हैं, लेकिन अंतर यह है कि इस गाय को उसकी अधिकतम सीमा तक दुहा जा चुका है, और अब वह हाल के तेल संकट से निपटने में सक्षम नहीं है। इस कारण से, तेल की वैश्विक कीमत में फिर से वृद्धि हुई है।
फॉरेन पॉलीसी ने लिखा है कि: "दुनिया जल्द ही तेल की कीमतों को 150 डॉलर तक जाते देखेगी।" अमरीका अपने पिछले सत्तर वर्षों के सबसे बुरे संकट में एक ऐसे राष्ट्रपति को देख रहा है जो अक्षम है और उसे बुश, ओबामा और ट्रम्प की विफलताएं भी विरासत में मिली हैं। अमरीका की इस स्थिति पर टिप्पणी करते हुए वाशिंगटन टाइम्स लिखता है: " भारी आर्थिक दबाव और गलतियों के बीच राष्ट्रपति बाइडन का दुर्भाग्यपूर्ण युग जल्द ही समाप्त होने की संभावना है।"
आठ: बाइडन की यात्रा में त्रिकोण का तीसरा पक्ष सऊदी अरब है, जो अपने को अरब दुनिया का "भाई" कहता रहा है, लेकिन यमन, सीरिया, लेबनान और फिलिस्तीन में उसे कड़वी हार का सामना करना पड़ा। यह कहा जा सकता है कि सऊदी सरकार, जिसने अपना कंट्रोल महत्वाकांक्षी और अनुभवहीन क्राउन प्रिंस के हाथों में सौंप दिया है, अमरीका और इज़राइल के साथ जोखिम भरे संबंधों में मुख्य हारने वाला है। वे इससे पहले भी एक बार अमरीका और इज़राइल के बहकावे में आ कर यमनी दलदल में प्रवेश कर गए थे। और अगर वे फैसला लेने में और देर करते तो शायद अंसारुल्लाह के बढ़ते हमलों के कारण उनके तेल निर्यात में भारी गिरावट आई होती।
सउदी अरब ने यही नीति इराक, सीरिया, लेबनान और फिलिस्तीन के खिलाफ भी अपनाई, लेकिन थोड़े अंतर के साथ। लेकिन इसका परिणाम एक शक्तिशाली मोर्चे के मुकाबले में प्रतिरोधी मोर्चे की बढ़ती ताकत हुआ। सऊदी शासक स्वंय को "दो पवित्र मस्जिदों के सेवक" कहते रहे हैं लेकिन सच्चाई यह है कि कई दशकों तक उन्होंने अमरीका और इज़रायल के गुल्लक की भूमिका निभाई है। इजरायल के साथ उनका रिश्ता कोई नया मुद्दा नहीं है। अंतर केवल यह है कि यह रिश्ता अब खुलकर दुनिया के सामने आ रह है।
हिब्रू भाषा के समाचार पत्र "हारेत्ज़" ने हाल ही में लिखा है: "सऊदी खुफिया संगठन के पूर्व प्रमुख बंदर बिन सुल्तान वर्षों तक गुप्त रूप से इजरायल के अधिकारियों से मुलाकात करते रहे हैं। मोसाद के प्रमुख के साथ उनकी पहली मुलाकात 1990 के दशक की शुरुआत में हुई थी। तीन दशक बाद, मोसाद प्रमुख और कम से कम दो प्रधानमंत्रियों (ओल्मर्ट और नेतन्याहू) ने यूरोप, जॉर्डन, मिस्र और यहां तक कि सऊदी अरब में सऊदी अधिकारियों से मुलाकात की। इन सभी मुलाकातों और वार्ताओं में ईरान हमेशा वार्ता के मुख्य विषयों में से एक रहा है।