सउदी और इज़राइल संबंधों के सामान्यीकरण की सार्जवजनिक घोषणा में क्या चीज़ रुकावट है?
हालांकि यह उम्मीद की जा रही थी कि सऊदी अरब और इज़राइल के बीच बहुत पहले संबंध समान्य हो जाएंगे और इसको सार्वजनिक कर दिया जाएगा। लेकिन हर बार यह आगे बढ़ता रहा है। बड़ा प्रश्न यह है कि ऐसा क्यों हो रहा है?
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लेखक और विश्लेषक: एडवर्ड विल्सन
हालांकि यह उम्मीद की जा रही थी कि सऊदी अरब और इज़राइल के बीच बहुत पहले संबंध समान्य हो जाएंगे और इसको सार्वजनिक कर दिया जाएगा। लेकिन हर बार यह आगे बढ़ता रहा है। बड़ा प्रश्न यह है कि ऐसा क्यों हो रहा है? वह कौन सा कारण है जो सऊदी अरब और इजरायल के बीच संबंधों को सामान्यीकरण के एलान के बीच रुकावट बन रहे हैं?
इज़राइल और सऊदी अरब के बीच संबंध कोई नया मुद्दा नहीं है। कई इतिहासकारों का मानना है कि दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक रूप से संबंध रहे हैं। कभी यह संबंधो गोपनीय तो कभी सार्वजनिक रहे हैं। समकालीन इतिहास में रियाद और तेल अवीव के बीच संबंध हमेशा मौजूद रहे हैं।
इस संबंध के सबसे महत्वपूर्ण आयामों में से एक, जो इसे बहुत संवेदनशील और रणनीतिक बनाता है, सुरक्षा और खुफिया सहयोग है। जो पहले पूरी तरह से अंग्रेजों के नियंत्रण और नेतृत्व में अंजाम पाया, और इस औपनिवेशिक साम्राज्य के पदन के बाद अमरीका ने उसका स्थान ले लिया। यह स्पष्ट है कि इस तरह के खुफिया और सुरक्षा सहयोग का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य इस क्षेत्र पर हावी होना, युद्धों की आग को भड़काना, अराजकता, और आतंकवाद का प्रसार करना है।
15 सितंबर, 2020 को यूएई और इज़राइल के बीच संबंधों के सामान्य होने की घोषणा और बहरीन के इज़राइल के साथ संबंधों के सामान्यीकरण पर समझौते में शामिल होने के बाद, सऊदी अरब और इज़राइल के बीच संबंधों के सामान्यीकरण पर समय समय पर बात होती रही है। और पश्चिमी मीडिया ने प्रोपेगंडा चला कर लगातार सामान्यीकरण की राह आसान करने की कोशिश की है। पश्चिमी मीडिया में हर कुछ समय बाद इस प्रकार की खबरें आना एक प्रकार से अरब जगत की जनता की इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया को देखाना और इस मुद्दे की संवेदनशीलता को कम करना रहा है।
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अन्य अरब देशों के विपरीत, इज़राइल के साथ संबंधों को सामान्य करने का मुद्दा सउदी के लिए प्रतिष्ठा का संकट बन गया है, इस प्रकार कि एक ऐसा देश जहां पर इस्लामी दुनिया के दो सबसे पवित्र स्थान हैं, और जो हर वर्ष हज का आयोजन करता है अगर वह ज़ायोनी शासन के साथ संबंधों के सामान्यीकरण की घोषणा करता है तो वह इसकी छवि को बहुत नुकसान पहुँचाएगा और इस्लामी दुनिया में उसकी विश्वसनीयता कम होगी, साथ ही इस्लामी दुनिया और मुसलमान इस पर व्यापक प्रतिक्रिया देंगे और बहुत संभव है कि इस्लामी दुनिया के लीडर का ताज आले सऊद से छिन जाए।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि सउदी के लिए इस्लामी दुनिया के नेतृत्व का चला जाना महत्वपूर्ण नुकसान नहीं है, क्योंकि अल सऊद के लिए इस्लामी दुनिया का लीडन बने रहने से अधिक महत्वपूर्ण अमरीका और इजरायल को संतुष्ट रखना है। सच यह है कि इस समय यहां अमरीका और इजरायल भी नहीं चाहते हैं कि यह संबंध सार्वजनिक हो।
कई लोगों को हमारी इस बात पर आश्चर्य हो सकता है। लेकिन सच्चाई यही है। सऊदी अरब और इजरायल के बीच संबंधों की सार्वजनिक घोषणा न केवल सऊदी अरब बल्कि तेल अवीव और वाशिंगटन के लिए भी संकट बन सकती है। क्योंकि रियाद-तेल अवीव-वाशिंगटन त्रिकोण अच्छी तरह से जानता है, रियाद और तेल अवीव के बीच संबंधों के सामान्यीकरण की आधिकारिक घोषणा का अर्थ रियाद की सार्वजनिक स्वीकृति का नुकसान और प्रतिरोधी मोर्चे की लोकप्रियता है। जिसके बाद प्रतिरोधी मोर्चा क्षेत्र की जनता के बीच और अधिक लोकप्रिय हो सकता है। और यह न केवल सऊदी अरब बल्कि अमरीका और इजरायल के लिए भी खतरनाक होगा।
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अगर ऐसा न होता तो अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन तेल अवीव से सऊदी अरब की यात्रा पर अपने साथ एक इजरायली अधिकारी को क्यों ले जाते?! जबकि सभी जानते हैं, इजरायल के अधिकारी लंबे समय से अपने सऊदी समकक्षों के साथ गुप्त रूप से बैठक कर रहे हैं, और इस पर मीडिया में कई रिपोर्ट प्रकाशित हो चुकी हैं।
सभी को पता है कि कुछ समय पहले इजरायल के पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सऊदी अरब के नियोम शहर में वरिष्ठ सऊदी अधिकारियों से मुलाकात की थी। और मोसाद के पूर्व प्रमुख "मीर डेगन" ने 2010 में सऊदी अरब का दौरा किया था। इसलिए, इस रिश्ते का अस्तित्व कोई नया मुद्दा नहीं है। नया केवल इस रिश्ले की आधिकारिक और सार्वजनिक घोषणा हैं, और क्या यह घोषणा होगी या नहीं?
संबंधों के सार्वजनिक घोषणा के सिलसिले में कई कदम उठाए गए हैं और मीडिया में कई खबरें आई हैं और सऊदी अरब ने उनका खंडन नहीं किया है। कैंप डेविड समझौते, इजरायली विमानों के लिए सऊदी एयरस्पोस को खोलना और बैलिस्टिक मिसाइलों एवं ड्रोन के खतरे के बहाने से इजरायल से साथ सुरक्षा एवं खुफिया समझौतों में सऊदी अरब का शामिल होना संबंधों के सामान्यीकरण को सार्वजनिक घोषणा के लिए प्रष्ठभूमि तैयार करने के रूप में देखा जा सकता है।
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इस सभी चीज़ें सो इतर, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के पास सऊदी अरब में अपने शासन की नींव को और मजबूत करने के लिए अमेरिका और इज़राइल के प्रति कर्तव्य हैं, और चूंकि बिन सलमान के जो बिडेन के साथ संबंध अच्छे नहीं हैं इसलिए, उसे इस संबंध को सुधारने के लिए कई रियायतें देनी होंगी, और इन्हीं रियायतों में से एक है इजरायल के साथ संबंधों का सामान्यीकरण है।