इमाम हुसैन के इंसानियत की राह में इस बलिदान को दुनिया के बहुत से गैर मुसलमान विद्वानों ने भी स्वीकार किया है।
मिस्टर जान लिविन्ग
इमाम हुसैन निष्ठ, ईश्वर पर विश्वास रखने वाले, दूसरों का सम्मान करने वाले और वीर थे। वह सत्ता य हुकूमत के लिए नहीं लड़े, बल्कि वह यज़ीद के इसलिए विरोधी थे क्योंकि वह इस्लाम और मोहम्मद के दीन से दूर एक पथभ्रष्ठ इंसान था।
मिस्टर वाशिंगटन औरंग
10 मुहर्रम 61 हिजरी (3 अक्टूबर 650) उस बेमिसाल लड़ाई की तारीख़ है जब कई हज़ार फौजियों के सामने 72 का जीवित रहना असंभव था। मारे जाने का खतरा था। जान बचाना बहुत आसान था, केवल इमाम हुसैन को यज़ीद की बैअत करना था, लेकिन कर्तव्य की उस पुकार ने जो हर धार्मिक सुधार के नेचर में होता है ने हुसैन पर इस का प्रभाव नहीं पड़ने दिया और हर प्रकार की कठिनाईयों और अत्याचारों पर भी हुसैन को मज़बूत और अपने स्थान पर डटे रखा। छोटे छोटे बच्चों का मारा जाना, ज़ख्मों की तक्लीफ़, अरब की चिलचिलाती धूप, वहां की प्यास यह वह सब तकलीफ़ें नहीं थो जो सत्ता य हुकूमत के शौक़ में किसी इंसान से बर्दाश्त करवाती हैं।
मिस्टर कारलायल
(लेखक हीरोज़ एण्ड हीरो वरशिप)
आओ देखें कि हमें कर्बला से क्या सीख मिलती है। सबसे बड़ी सीख यह थी कि कर्बला के शहीदों को ईश्वर पर पूर्ण विश्वास था। इसी के साथ ही उनमें अपनी कौम के लिए गैरत और कुछ कर गुज़रने की भी सीख मिलती है।
वह दुनिया को देख रहे थे। इससे यह भी पता चलता है कि जब दुनिया में ज़ुल्म और अत्याचार बढ़ जाता है तो सुधार बलिदान मांगता है। इसके बाद सभी रास्ते साफ हो जाते हैं।
मिस्टर जेम्स काकरन
(लेखक तारीख़े चीन)
दुनिया में रुस्तम अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन एक ऐसा व्यक्ति भी गुज़रा है जिसके सामने रुस्तम का नाम भी छोटा पड़ जाता है।
वीरता में हुसैन इब्ने अली का कोई सानी नहीं है। क्योंकि कर्बला के मैदान में तपती रेत पर प्यास और भूख जिस व्यक्ति ने वह कारनामा अंजाम दिया हो उसके सामने रुस्तम का नाम वही लेगा जो इतिहास को नहीं जानता होगा।
मिस्टर आरथर एन-विस्टन
(सी-आई-ए)
इमाम हुसैन में धैर्य और दृढ़ता और नैतिकता की वह खूबियां थी जो आम लोगों में नहीं पाई जाती। इसलिए इमाम हुसैन का व्यक्तित्व स्वंय एक चमत्कार है। इमाम हुसैन की वीरता की दूसरी कोई मिसाल दुनिया शायद कभी पेश न कर सके। दुनिया में किसी भी धर्म और समुदाय में ऐसा कोई वीर दिखाई नहीं देता है जो हज़ारों से अकेला लड़ा हो और खुशी से अपने गले पर खंजर चलने दिया हो।