सऊदी अरब और ईरान समझौता, भारत पर क्या पड़ेगा प्रभाव
7 साल के बाद एक दूसरे के कट्टर शत्रु सऊदी अरब और ईरान दोबारा साथ आ गए हैं, भारत की बदलती विदेश नीति को देखते हुए इसका भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
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जब से देश में पीएम मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार आई है, भारत की विदेश नीतिय में व्यापक बदलाव आए हैं।
भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से जब भारत के खाड़ी देशों के साथ रिश्ते को लेकर प्रश्न किया गया तो उन्होंने कहाः दस सालों में भारत की विदेशनीति में हुए बड़े बदलावों में से एक भारत का खाड़ी देशों से बदलता रिश्ता भी है. बदली हुई सरकार के साथ इस क्षेत्र को ज़्यादा गहराई और रणनीतिक दृष्टि से देखा गया है।
ऐतिहासिक रूप से भारत के खाड़ी देशों के साथ अच्छे रिश्ते रहे हैं। भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरत का 80 प्रतिशत से अधिक आयात करता है जिसका अधिकतर भाग खाड़ी देशों से आता है।
यूक्रेन युद्ध से पहले सऊदी अरब भारत को तेल आयात करने वाला सबसे बड़ा देश था। बड़ी संख्या में भारतीय खाड़ी देशों में रहते हैं, और उनके द्वारा भेजा गया पैसा भारत की अर्थव्यवस्था में बड़ा रोल निभाता है।
ऐसे में ईरान और सऊदी अरब द्वारा संबंधों को दोबारा पटरी पर लाने की खबरों के बीच इस बात की भी चर्चा है कि इसका भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
सऊदी अरब और ईरान समझौता
चीन की मध्यस्था के बीच सऊदी अरब और ईरान एक समझौते पर पहुँच गए हैं। इस समझौते के अनुसार दोनों देशों ने राजनयिक संबंध बहाल करने की घोषणा की है. दोनों ने दो महीने के अंदर दूतावास खोलने और एक दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करने और आंतरिक मामलों में दखल ना देने को लेकर सहमति जताई है।
शुक्रवार को सऊदी सुरक्षा सलाहकार मुसैद बिन मोहम्मद अल एबन और ईरानी सुरक्षा अधिकारी अली शामखेनी ने समझौते पर हस्ताक्षर किए।
इस समझौते पर क्या होगा भारत का रुख
ऐतिहासिक रूप से भारत की विदेशनीति बहुत संतुलित रही है। इससे पहले तक भी भारत कूटनीतिक आधार पर सऊदी अरब-ईरान, इजरायल-ईरान, रूस-अमेरिका जैसे दुश्मनों के बीच संतुलित नीति अपनाते हुए संतुलन बरकरार रखने में कामयाब हुआ है।
हालांकि सऊदी अरब के ईरान के साथ आने के बाद इजरायल और अमेरिका की बढ़ती चिंता ने दुविधाएं बढ़ा दी है।
लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अभी फिलहाल हालात भारत के पक्ष में हैं क्योंकि भारत के ईरान और सऊदी अरब दोनों से रिश्ते रहे हैं और अभी तक भारत के यह दोनों दोस्त एक दूसरे के दुश्मन थे जो अब दोस्त बन रहे हैं, इससे भारत की राह और आसान हो जाएगी।
हालांकि दूसरे तरफ़ भारत के लिए यह दुविधा भी है कि वह अमेरिका और इजरायल को नाराज़ भी नहीं करना चाहता है यही कारण है कि भारत ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम के चलते अमेरिकी दबाव के चलते भारत को अपना व्यापार कम करना पड़ा. धीरे-धीरे जब ये मामला और उलझता गया तो भारत खाड़ी के देशों से गहरे संबंध बनाने लगा जैसे यूएई, सऊदी अरब और बहरीन. वहीं, ईरान भारत से दूर होता गया और चीन से उसकी नज़दीकी बढ़ी।
चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के ज़रिए अपना प्रभाव और व्यापार बढ़ा रहा है, लेकिन भारत यह नहीं कर पा रहा है। भारत अमेरिका और इसराइल को नाराज़ नहीं करना चाहता है। चीन ऐसा कर सकता है क्योंकि उसका अमेरिका के साथ सीधा तनाव है।''