बड़ा खतरा ईरान नहीं, बल्कि क्षेत्रीय नेताओं का व्यवहार हैः कतर
कतर के पूर्व प्रधानमंत्री हमाद बिन जसिम ने चेतावनी देते हुए कहा है कि ईरान के साथ युद्ध खाड़ी देशों के हित में नहीं है। ईरान बड़ा खतरा नहीं है।
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इस मुद्दे का उल्लेख करते हुए, हमाद बिन जासिम ने "एक समाधान प्राप्त करने के लिए एक स्पष्ट बातचीत का आह्वान किया, जो न केवल क्षेत्र में शांति स्थापित करेगा, बल्कि व्यापार और अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी उपलब्धि भी होगी।"
क़तर के पूर्व प्रधान मंत्री, ने ब्लूमबर्ग समाचार एजेंसी के साथ बातचीत में "ईरान के संबंध में कई अरब देशों, विशेष रूप से सऊदी अरब की चिंताओं" के बारे में रिपोर्टर के सवाल के जवाब में कहा: "बड़ा खतरा ईरान नहीं, बल्कि हम खुद और क्षेत्र में हमारा व्यवहार है। मेरा मतलब क्षेत्र के प्रमुखों और नेताओं से है, जिनमें से मैं एक नहीं हूं। मेरा मानना है कि हमें अपनी खुशी, निराशा, क्रोध और आम तौर पर अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना चाहए, और क्षेत्र के देशों और अपने पड़ोसियों के साथ बातचीत में किसी भी भावनात्मक व्यवहार से परहेज करना चाहिए।
बिन जासिम ने कहा: "क्षेत्र के देशों की नीति अन्य देशों के साथ सहयोग पर आधारित होनी चाहिए। यदि हमारे इस या उस देश के साथ मतभेद हैं, तो हमें इस मतभेद को बातचीत और सभ्य तरीके से हल करना चाहिए।"
उन्होंने आगे कहा: "अगर हमारे सामने चुनौतियां हैं, तो हमें एक समझौते और समझ पर पहुंचकर चुनौतियों का समाधान करना चाहिए। अगर हम कहते हैं कि ईरान हमारा पहला दुश्मन है, तो हमें यह देखना होगा कि हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, इस बयान के क्या कारण हैं।" क्या यह वास्तविक है या सिर्फ एक दावा है और हम कैसे इस स्थिति को बदल सकते हैं और अपने मतभेदों को दूर कर ईरान के साथ एक समझौते पर पहुंच सकते हैं।
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कतर के पूर्व प्रधान मंत्री ने जोर दिया: "भले ही ईरान हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है, हमें यह देखना होगा कि इस मुद्दे से कैसे निपटा जाए?" क्या हम इस देश के साथ सीधी बातचीत या युद्ध से निपटना चाहते हैं? आखिरकार, कोई भी युद्ध नहीं चाहता क्योंकि यह हममें से किसी के भी हित में नहीं है।"
ब्लूमबर्ग के साथ बातचीत में, हमद बिन जासिम ने जोर देकर कहा: "वास्तविकता यह है कि ईरान बड़ा खतरा नहीं है, हमारी वास्तविक समस्या यह है कि हम निर्णय खुद नहीं लेते हैं, वर्षों से क्षेत्र के नेताओं ने अपने देशों का नेतृत्व दूसरों को दिया है, और उनके पास अपने स्वयं के कोई भी निर्णय लेने की क्षमता नहीं है।"
उन्होंने आगे कहा: "अगर हमें वास्तव में ईरान के साथ समस्या है, तो हमें ईरान के नेताओं के साथ बैठना चाहिए और समाधान तक पहुंचने के लिए सभी समस्याओं पर विस्तार से चर्चा करनी चाहिए, क्योंकि मुझे लगता है कि खाड़ी क्षेत्र के देशों को ईरान-इराक़ के साथ एकजुटता दिखानी चाहिए।" और मेरा मतलब फारस की खाड़ी क्षेत्र के देशों से है, वे देश जो सहयोग परिषद के सदस्य हैं।
बिन जासिम ने बताया कि यदि खाड़ी देश ईरान के प्रति ऐसी नीति अपना सकते हैं, तो यह शांति और क्षेत्रीय व्यापार और अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी
उन्होंने कहा: "ईरान की आबादी 100 मिलियन से अधिक है। इराक की जनसंख्या है 40 मिलियन से अधिक है, जबकि खाड़ी सहयोग परिषद में हमारी जनसंख्या कुल मिलाकर 50 मिलियन से अधिक नहीं है। अब, मेरा प्रश्न है, क्या हम उनका सामना कर सकते हैं, कल्पना कीजिए वे क्या कर सकते हैं?"
सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात सहित फारस की खाड़ी सहयोग परिषद के सदस्य देशों ने संयुक्त राज्य अमेरिका, इज़रायल और पश्चिम की नीतियों का पालन करते हुए ईरान को इस क्षेत्र में एक काल्पनिक दुश्मन बनाने की कोशिश की है।
वे इस बात से अनजान हैं कि खाड़ी देशों के लिए ईरान को एक काल्पनिक दुश्मन के तौर पर पेश करना अमेरिका, इजरायल और पश्चिमी देशों के हित में है, क्योंकि इस प्रकार वह अरब देशों को ईरान का भय दिखाकर अपनी हथियार इंडस्ट्री की जेब भर सकते हैं और अपने हथियार निर्यात को कई गुना बढ़ा सकते हैं।
जब की सच्चाई यह है कि वह ईरान जिसे पश्चिमी देशों ने खाड़ी देशों के लिए बड़े खतरे के तौर पर पेश किया है उसने पिछले 45 से अधिक वर्षों से किसी भी देश पर छोटा सा भी हमला नहीं किया है। ईरान ने न केवल हमला नहीं किया है बल्कि वह हमेशा पड़ोसी देशों के हमलों का शिकार रहा है। जिसकी सबसे बड़ी मिसाल अमेरिकी और पश्चिमी देशों के उकसावे में सद्दाम हुसैन द्वारा ईरान पर किया गया हमला है। आठ साल के इस युद्ध में लाखों ईरानियों की मौत हुई और लाखों घायल और विकलांग हो गए।