Ebrahim Raisi: ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी, विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियन और सात अन्य की हेलीकॉप्टर हादसे में मौत पर भारत सरकार ने मंगलवार को एक दिवसीय राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है। इस दिन देशभर की सभी सरकारी इमारतों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा।
हेलिकॉप्टर हादसे में ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की आकस्मिक मौत भारत के लिए भी बड़ा नुकसान है। ये रईसी ही थे, जिन्होंने चीन और पाकिस्तान की ओर से दबाव डाले जाने के बावजूद चाबहार बंदरगाह भारत को सौंपने का रास्ता साफ किया। यही नहीं, ईरान के इस्लामिक देश होने के बाजवूद रईसी ने कश्मीर के मसले पर भी हमेशा भारतीय रुख का समर्थन किया।
भारत ने बीते सप्ताह ही ईरान के साथ चाबहार स्थित शाहिद बेहेश्ती बंदरगाह के संचालन व विकास के लिए 10 वर्ष का अनुबंध किया है। यह बंदरगाह भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों तक पहुंच का रास्ता देता है।
चीन ने पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह पर जब से पैर जमाए हैं, तभी से भारत के लिए रणनीतिक तौर पर यह जरूरी हो गया था कि अरब सागर में भारत अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए चाबहार में मौजूद रहे। 2003 में पहली बार भारत-ईरान के बीच इस बंदरगाह के विकास और संचालन को लेकर सहमति पत्र पर दस्तखत किए गए थे।
लेकिन, दो दशक तक बंदरगाह से संचालन का दीर्घकालिक समझौता अलग-अलग कारणों से लटकता रहा। 2017 में भारत ने बेहेश्ती बंदरगाह पर टर्मिनल का निर्माण कर उसका संचालन शुरू कर दिया। लेकिन, दीर्घकालिक समझौता 2024 में हुआ।
भले ही ईरान की सत्ता और विदेश नीति सर्वोच्च नेता अली खामनेई के ही हाथों में है लेकिन लेकिन रईसी जैसे उनके वफादार एक दायरे में इन नीतियों पर अपने व्यक्तित्व का प्रभाव भी डालते हैं।
भारतीय हितों के प्रति संवेदनशीलता रखने वाले रईसी ने इस दायरे में से रिश्ते बढ़ाने की गुंजाइश निकाली। ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामनेई भारत के साथ चाबहार समझौते को लेकर अनिश्चय की स्थिति में थे।
इसी वजह से दो दशक तक ईरान के किसी भी राष्ट्रपति ने इस समझौते को आगे बढ़ाने में खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। लेकिन, जब रईसी राष्ट्रपति बने, तो ईरान मुश्किल हालात में था, जहां उसे भारत के सहयोग की जरूरत थी।
यह बात भी राज नहीं है कि अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद भारत ईरान से तेल खरीदकर उसे जरूरी आर्थिक राहत देता रहा है। रईसी ने भी इस समझौते को लेकर दृ़ढ़ता दिखाई और पिछले वर्ष दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान रईसी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात के कुछ महीने बाद ही यह समझौता अमल में आ गया।