22 जनवरी को भारत के इतिहास में वह हुआ कि जिसको हमेशा याद रखा जाएगा। क्योंकि यह दिन न्याय पर आस्था की जीत के प्रतीक के रूप में दर्ज हो चुका है। बाबरी मस्जिद को तोड़ कर उसके स्थान पर भारतीय जनता पार्टी के राम मंदिर का निर्माण हुआ है।
राम मंदिर के निर्माण में वर्षों से हज़ारों मज़दूर लगे हुए थे और उन्होंने दिन रात एक करके भारतीय जनता पार्टी को 2024 के आम चुनाव से पहले उसके लक्ष्य तक पहुंचा दिया और 22 जनवरी को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में राम मंदिर का उद्घाटन कर दिया गया।
मंदिर के उद्घाटन के बाद वहां लगे मज़दूर बेकार हो चुके थे। क्योंकि वह मज़दूर हैं उनको इस मंदिर से तो कोई फ़ायद नहीं पहुंचने वाला है, इसलिए उन्हें कहीं न कहीं फिर से मज़दूरी के लिए जाना ही था।
इस बीच इजरायल ने गाज़ा की पीड़ित जनता के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ रखा है। क्योंकि 7 अक्टूबर के बाद से इजरायल का निर्माण उद्योग श्रमिकों की गंभीर कमी का सामना कर रहा है। वहां काम करने वाले फिलिस्तीनी और अन्य लोग काम छोड़कर भाग गए है, इसलिए इजरायल के सामने मज़दूरों की कमी का संकट खड़ा हो गया।
वहीं राम मंदिर का निर्माण पूरा होने के बाद बेरोज़गार हो चुके भारतीय मज़दूरों पर इजरायल की नज़र पड़ी और उसने नरेंद्र मोदी से संपर्क किया और उन मज़दूरों को इजरायल भेजने का आग्रह कर दिया।
नेतन्याहू को अपना दोस्त बताने वाले नरेंद्र मोदी ने इजरायली प्रधानमंत्री की बात न काटते हुए भारतीय मज़दूरों को इजरायल भेजने की मंज़ूरी दे दी। इस बीच विवाद जो आरंभ हुआ वह सोशल मीडिया की कुछ पोस्टों से। क्योंकि इजरायल जाने वाले मज़दूरों ने अपनी आईडी से कुछ ऐसी विवादित पोस्टें की हैं कि जो पूरी दुनिया के मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंचाती हैं।
इजरायल जाने वाले कुछ भारतीय मज़दूरों ने जहां एक ओर राम मंदिर की फोटो अपलोड की है वहीं साथ ही साथ उन्होंने बैतुल मुक़द्दस शहर में स्थित मस्जिदुल अक़्सा की फोटो भी शेयर की है और लिखा है कि "बाबरी मस्जिद के बाद अब मस्जिदुल अक़्सा की बारी है।"