सऊदी सरकार भले ही यह दावा कर रही हो कि ये ग़ैर कानूनी गतिविधियों में लिप्त थे परंतु सच्चाई कुछ और ही है, दरअसल शिया समुदाय अपने धार्मिक अधिकारों को मांगता है जिसके जवाब में आले सऊद शासन बेगुनाह शिया लोगों को जेल में ठूंसता है और मृत्युदंड देता है ताकि कोई आवाज़ ही न उठाने पाए।
जैसा की ज्ञात है कि सऊदी अरब में आले सऊद का तानाशाही शासन है जो अपने आलोचकों को बड़ी निर्ममता से कुचलने और शिया समुदाय को प्रताड़ित करने के लिए कुख्यात है, शिया समुदाय को सऊदी अरब में समता के साथ जीने का अधिकार नहीं है, सऊदी तानाशाही न जाने कितने बेगुनाह शिया लोगों को शहीद कर चुकी है सऊदी सरकार की बातों में दोहरा मापदंड साफ़तौर पर झलकता है, एक तरफ़ तो वह मज़लूम शिया मुसलमानों को प्रताड़ित करके आतंकवाद पर रोक लगाने की बात करती है तो दूसरी तरफ़ आईएसआईएस जैसे ख़ूंख़ार तकफ़ीरी आतंकी संगठन को सऊदी द्वारा दी गई मदद की बात किसी से छिपी नहीं है।
सऊदी तानाशाही समय समय पर अपने आलोचकों को मौत के घाट उतार चुकी है, जमाल ख़ाशुक़्जी जो कि प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार थे, जिनकी हत्या तुर्की स्थित सऊदी दूतावास में कर दी गई थी, जिसके पीछे बिन सलमान का हाथ बताया जाता रहा हैं, वहीं शिया समुदाय पर ज़ुल्म का इतिहास पुराना है, चाहें वो दशकों पूर्व अल्लाह के आख़िरी नबी के परिवारजनों के रोज़ों को ढहकर धार्मिक आस्थाओं पर हमला हो या शिया स्कॉलर शैख़ बाक़िर निम्र को बेदर्दी से दिया गया मृत्युदंड इत्यादि।
इस सब पर विश्व समुदाय की चुप्पी हालात को और अधिक दुखदाई बनाती है क्या ऐसी विध्वंसकारी स्थिति में संयुक्त राष्ट्र संघ व विश्व समुदाय को सऊदी तानाशाही पर प्रतिबंध लगाने में भला क्या रुकावट हो सकती है ? मानवाधिकार प्रेमी इस ज़ालिमाना क़दम को कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं सऊदी सरकार अपनी आलोचना झेलने की आदी हो गई है अब सिर्फ़ आलोचना से काम नहीं चलेगा, जरूरत है अब कि सऊदी तानाशाही पर सख्त प्रतिबंध लगाए जाएं, इस क़ातिलाना व्यवस्था में लिप्त पाए जाने वालों को उनके सही स्थान पर पहुंचाया जाए ताकि सउदी का आम जनमानस व शिया समुदाय ख़ुद को सुरक्षित महसूस करे ले दुनियाभर के इन ज़ालिम व्यवस्थाओं को कड़ा संदेश जाए जो लगातार मानवाधिकारों के हनन के बावजूद अपनी विध्वंसकारी नीतियों को बरक़रार रखे हुए हैं |