शांति रूस और यूक्रेन पर निर्भर है लेकिन अब तक दोनों देशों का जो रुख है उससे लगता नहीं कि दोनों लड़ाई रोकेंगे। इसके बावजूद दोनों देशों के बीच शांति की इस पहल में सऊदी अरब के अपने दो अहम हित जुड़े हैं।
मुदस्सर कहते हैं, ''सऊदी अरब के लिए खाद्य सुरक्षा बेहद ज़रूरी है क्योंकि वो यूक्रेन और रूस से बड़ी मात्रा में अनाज मंगाता है। इसलिए रूस और यूक्रेन के बीच शांति कायम होती है तो खाद्य सुरक्षा के मोर्चे पर उसकी चिंता खत्म हो जाएगी।
सऊदी अरब का दूसरा बड़ा हित उसके तेल कारोबार से जुड़ा है. रूस के साथ उसकी नज़दीकी उसके तेल कारोबार को और मज़बूती देगा। रूस के साथ खड़े होने से वह अमेरिकी तेल लॉबी भी चुनौती दे सकेगा।
रूस और यूक्रेन के बीच शांति की ये पहल अगर बहुत ज्यादा कामयाब न भी रही तो भी ये वैश्विक मंच पर सऊदी अरब की छवि को मज़बूत ही करेगा।
रूस-यूक्रेन युद्ध में निष्पक्ष दिखने की कोशिश कर रहा सऊदी अरब अब अपने यहां इस पर शांति सम्मेलन करने की योजना बना रहा है.
सम्मेलन में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की की शांति योजना पर चर्चा होगी। इसमें अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन, मेक्सिको, इंडोनेशिया, ब्राज़ील, भारत और दक्षिण अफ्रीका समेत 30 देश हिस्सा लेंगे। ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका ब्रिक्स के सदस्य हैं।
यूक्रेन के राष्ट्रपति के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ एंद्रेई यरमक ने कहा है कि सम्मेलन में बातचीत यूक्रेन के दस सूत्रीय फॉर्मूले पर होगी। सम्मेलन के बारे में सबसे पहले ख़बर देने वाले वॉल स्ट्रीट जर्नल ने यूक्रेन की शांति योजना से जुड़े राजनयिकों के हवाले से कहा है कि ये बातचीत पांच और छह अगस्त को होगी सम्मेलन में जे़लेंस्की खुद मौजूद रह सकते हैं ताकि वो इसमें हिस्सा ले रहे देशों के नेताओं पर यूक्रेन के समर्थन के लिए दबाव डाल सकें।
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रूस-यूक्रेन के युद्ध ने पूरी दुनिया में उथल-पुथल मचा दी है. इसने दुनियाभर की अर्थव्यवस्था और सप्लाई चेन को बुरी तरह नुक़सान पहुंचाया है। रूस ने यूक्रेन पर ऐसे वक्त हमला किया जब, कोविड से बुरी तरह चोट खाई ग्लोबल अर्थव्यवस्था में रिकवरी दिखनी शुरू ही हुई थी।
यही वजह है कि इस संकट को खत्म करने के लिए तुर्की, चीन, इसराइल और डेनमार्क जैसे देश शांति समझौते का प्रस्ताव दे चुके हैं। तुर्की रूस और यूक्रेन के बीच अनाज निर्यात से जुड़ा समझौता करा चुका है।
वहीं चीन रूस-यूक्रेन के बीच बातचीत कराने का ऑफर दे चुका है। ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने के बाद चीन का कूटनीतिक आत्मविश्वास काफी बढ़ गया है।
यहां तक कि उसने वर्षों पुराने मसले में इसराइल और फ़लस्तीन के बीच समझौता कराने की पहल की है।