अपने ज़ैतून के लिए दुनिया भर में मशहूर है फ़लस्तीन
गाजा अस्पताल में भीषण धमाका हुआ है। फ़लस्तीनी स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार-कम से कम 500 लोगों की मौत।
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क़ुसरा के बाशिंदों ने अपने एक इंटरव्यू देते हुए बताया कि गांव में दहशत फैली हुई है। ज़ैतून (ऑलिव) चुनने का सीज़न शुरू हो गया है जो गांववालों की कमाई का ज़रिया है। मगर गोली मारे जाने के डर से ये लोग बाहरी इलाक़े में नहीं जा पा रहे।
इस साल इसराइली सैनिकों द्वारा की जा रही हिंसा में भी काफ़ी बढ़ोतरी देखने को मिली है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि यह तेज़ी हमास के हमले से पहले से ही देखने को मिल रही है।
जनवरी से अगस्त के बीच ही हर महीने 100 से ज़्यादा घटनाएं सामने आईं और क़रीब 400 लोगों को उनकी ज़मीन से बेदख़ल कर दिया गया।
इसराइली के एक आदमी बत्सेलेम ने ने बताया कि 'यहां बसाए गए इसराइलियों ने हमास के हमले के बाद से संगठित होकर वेस्ट बैंक में ज़मीन कब्ज़ाना शुरू कर दिया है क्योंकि पूरी दुनिया और इस क्षेत्र के लोगों का ध्यान ग़ज़ा और उत्तरी इसराइल पर केंद्रित है।
बत्सेलेम के आंकड़ों के मुताबिक़, हमास के हमले के बाद के पहले छह दिन में 46 अलग-अलग घटनाओं में इसराइलियों ने वेस्ट बैंक में फ़लस्तीनियों को धमकाया, उन पर हमला किया या उनकी संपत्ति को नुक़सान पहुंचाया।
ख़ाली होते फ़लस्तीनी गांव
बत्सेलेम के प्रवक्ता रॉय येलिन ने कहा, “चरवाहों के कई परिवार और कई समुदाय पिछले हफ़्ते इसराइलियों की धमकियां मिलने के बाद यहां से भाग चुके हैं।"
यहां बसाए गए इसराइलियों ने यहां के बाशिंदों को एक मियाद बताई है और कहा है कि अगर वे यहां से नहीं गए तो उन्हें नुक़सान पहुंचाया जाएगा। कुछ गांव तो पूरी तरह ख़ाली हो चुके हैं।
ऐसा ही एक गांव है वादी अल-सिक़ जो रामल्लाह के पास है। पहले यहां फ़लस्तीनी बद्दू समुदाय के क़रीब 200 लोग रहते थे।
वादी अल-सिक़ के 48 वर्षीय किसान अब्दुल रहमान काबना कहते हैं, “हम कई महीनों से दिन रात इसराइलियों के हमलों और उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। लेकिन जंग छिड़ने के बाद हमले बढ़ गए हैं।
इस गांव से भगाए गए तीन लोगों ने हमें बताया कि नौ अक्टूबर को क़रीब 60 इसराइलियों ने उनके समुदाय पर हमला किया। इनमें कई ने सेना की वर्दी पहनी हुई थी। उन्होंने हथियारों से हमला किया और धमकाया।
एक ने कहा, "इसके बाद उन्होंने हमें अपनी भेड़ों के साथ जाने के लिए एक घंटे का समय दिया और कहा कि अगर हमने ऐसा नहीं किया तो मार डालेंगे।"
एक अन्य विस्थापित, 35 साल के अली अरारा ने बताया, “लोग बचने के लिए 10 किलोमीटर से भी ज़्यादा पैदल चले। इसराइलियों ने हमारे घर से सबकुछ चुरा लिया। मेरी बेटी डर गई थी। उन्होंने हमें पीटा और सबकुछ छीन लिया।”