ईरान के ख़िलाफ़ इसराइल की धमकियाँ असली हैं या हौव्वा?
शनिवार, 13 अप्रैल की शाम को ईरान के इसराइल पर ड्रोन और मिसाइल हमले के बाद, इस शासन के अधिकारी लगातार ईरान पर हमले की धमकी दे रहे हैं, लेकिन इसराइलियों की सभी धमकी भरी टिप्पणियों के बावजूद, ये धमकियाँ कितनी सच हैं?
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निस्संदेह, किसी भी देश पर हमला करने का निर्णय बहुत गंभीर और उच्च-स्तरीय निर्णयों में से एक है जिसे हर देश के सबसे उच्च अधिकारी कई आंतरिक विचारों जैसे आर्थिक, सैन्य शक्ति, राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों के साथ-साथ बाहरी विचारों को भी ध्यान में रखा जाता है। साथ ही इसमें क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय समीकरणों का भी ध्यान रखा जाता है। इस सभी चीज़ों को ध्यान में रखते हुए हमें देखना चाहिए कि ईरान के विरुद्ध एक बड़ी कार्यवाही की इजराइली अधिकारियों की धमकियों में कितना दम है और यह कितनी गंभीर हो सकती हैं।
इसराइल की आंतरिक स्थिति
आंतरिक स्तर पर इसराइली अधिकारियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि पिछले 6 महीने से यह शासन उत्तरी और दक्षिणी मोर्चों पर फिलिस्तीनी और लेबनानी प्रतिरोधी बलों से लड़ रहा है, लेकिन दोनों ही मोर्चों पर उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई है।
दक्षिणी मोर्चे पर फ़िलिस्तीनी नागरिकों की हत्या के अलावा व्यावहारिक रूप से कोई सफलता हासिल नहीं हुई है। और गाजा युद्ध जो हमास के विनाश के नारे के साथ शुरू किया गया था उस वादे में सफलता प्राप्त नहीं हुई है। न केवल ज़ायोनी शासन को सफलता प्राप्त नहीं हुई बल्कि इस युद्ध के कारण इतिहास में पहली बार इसराइल पर मानवता के विरुद्ध अपराध पर अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय में मुकदमा चलाया गया और उसे सज़ा भी सुनाई गई।
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इसराइल के उत्तरी मोर्चे की स्थिति भी दक्षिण की तुलना में बेहतर नहीं है। लेबनानी प्रतिरोध के हमले इसराइल के उत्तरी भाग में बस्तियों और उसके निवासियों को नष्ट करने के लिए जारी हैं, जो हिजबुल्लाह मिसाइलों के डर से अपने घर छोड़ चुके हैं। दक्षिणी मोर्चे से हिज़्बुल्लाह के डर से भागे यह विस्थापित इसरायली कैबिनेट के कंधों पर बोझ हैं।
इस शासन की सैन्य स्थिति यह है कि हर दिन इसरायली सेना की यूनिट, ब्रिगेड और अधिकारियों के विद्रोह और अवज्ञा के बारे में समाचार प्रकाशित होते हैं। एक रिपोर्ट में, हिब्रू भाषा के समाचार पत्र "येडियट अहरोनोट" ने बताया कि कम से कम चार वरिष्ठ इसरायली सैन्य अधिकारी अपने पदों से इस्तीफा देने से पहले गाजा में युद्ध की स्थिति निर्धारित करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस समाचार पत्र ने लिखा कि दूसरी सेना इकाइयों और ब्रिगेड में भी स्थिति इससे बेहतर नहीं है।
इसराइल की आर्थिक स्थिति
आर्थिक पहलू में, यह बताना काफी है कि इसरायली अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्र, भारी नुकसान उठाने के कारण या तो दिवालिया हो चुके हैं या अर्ध-बंद हो गए हैं। युद्ध से इसराइल को हुए आर्थिक नुकसान का ताजा अनुमान 56 अरब डॉलर का है, जो युद्ध जारी रहने के साथ बढ़ता ही जा रहा है।
सामाजिक आयाम में, नेतन्याहू की नीतियों के खिलाफ इसरायलियों का सामाजिक विभाजन और विरोध न केवल खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है बल्कि और भी गहरा और तीव्र हो गया है। युद्ध के बावजूद, इस शासन में अभी भी विरोध प्रदर्शन और रैलियां आयोजित की जाती हैं, और यह इससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इसराइल में शीघ्र चुनाव हो सकते हैं।
इसराइल की सैन्य स्थिति
अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर हालत यह है कि न केवल इसराइल ने अपनी अंतरराष्ट्रीय स्थिति और छवि खो दी है और क्षेत्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ गया है, बल्कि अब उसकी पहले जैसी वैभवता भी नहीं रह गई है। अब ये तो सब जानते हैं कि इसराइल की वह सेना जिसे अजेय बताया जाता था वह मिथक और झूठ से ज्यादा कुछ नहीं है।
यह सेना पिछले 6 महीनों से गाजा से हमास को खत्म करके कब्ज़ा करना चाहती है लेकिन नाकाम है। यह सेना हिज़्बुल्लाह को भी ऐसा सबक देना चाहती है कि वह इसराइल के उत्तर में रॉकेट और मिसाइल हमले करने की हिम्मत न दिखा पाए।
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साथ ही यह सेना निश्चित रूप से वह यमनी हौथिस को नष्ट करने और लाल सागर और बाब अल मंदब में इसरायली शिपिंग रूट को दोबारा बहाल करना चाहती है। लेकिन सच्चाई यह है कि सेना किसी भी मोर्चे पर सफल नहीं रही है। अब हालत यह है कि हर मोर्चे पर विफल यह सेना ईरान पर हमला करना चाहती है।
यह वही इसराइल है जो अकेले ईरान के मिसाइल और ड्रोन हमलों को विफल नहीं कर सका, और उसे अपने पड़ोसियों और अरब शासन से मदद मांगनी पड़ी।
हिब्रू समाचार पत्र हारेत्ज़ के रिपोर्टर "हैम लेविंसन" के अनुसार, सपने देखने और अतिशयोक्ति करने के बजाय, यह सच स्वीकार करने का समय है, कि हम गाजा में, इसराइल के उत्तर में और ईरान के खिलाफ विफल रहे। ईरान जल्द ही ढह जाएगा, यह एक झूठ से ज्यादा कुछ नहीं है जो बेंजामिन नेतन्याहू की प्रचार मशीनें हमें विश्वास दिलाना चाहती हैं।
सच तो यह है कि इसराइल पर ईरान के हमले ने इसराइल की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को बड़ा झटका दिया और पूरी दुनिया को दिखाया कि इजराइल कितना कमजोर है कि उसने ड्रोन और मिसाइल हमले से बचने के लिए दूसरे देशों से मदद मांगी।
सच्चाई यह है कि इसराइल दूसरे देशों की सहायता के बिना कुछ नहीं है, यह हमने गाजा युद्ध में भी देखा कि जब पहले दिन से ही इसराइल अमेरिकी और दूसरे देशों की तरफ़ देख रहा है और एक छोटे से समूह से लड़ने के लिए उसे अंतरराष्ट्रीय सहायता की आवश्यकता पड़ी रही है और यह सहायता अभी भी जारी है।
असल बात तो यह है कि इसराइल की सत्ता नेतन्याहू के हाथों में नहीं, बल्कि व्हाइट हाउस में बिडेन के हाथों में है, जो पिछले छह महीनों से युद्ध का नगाड़ा पीट पहे हैं।
इसलिए, ईरान पर हमला करने के बारे में इसरायली अधिकारियों के बयान व्हाइट हाउस की सहमति से ही दिए जाएंगे, अन्यथा इसरायल के पास इन खतरों को अंजाम देने की शक्ति नहीं है।
इससे पता चलता है कि इसराइल और ईरान के बीच किसी भी तरह का टकराव वास्तव में अमेरिका और ईरान के बीच का टकराव है अब हमें यह देखना होगा कि अमेरिका ईरान के साथ युद्ध में उतरने का जोखिम उठाने की कितनी हिम्मत रखता है।