BJP ने अपनी राजनीतिक रणनीतियों की मदद से सपा के इस वोटबैंक में पर्याप्त सेंधमारी की है. देखते ही देखते गैर-यादव OBC समुदाय BJP के पास आते गए और सपा से दूर होते गए. ऐसे में सवाल उठता है कि यूपी के सियासी रनवे में क्या सपा एकबार फिर से OBC वोट बैंक में BJP के दबदबे को तोड़ने में कामयाब हो पाएगी?
उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है, जहां लोकसभा (Lok Sabha Elections 2024) की सबसे ज्यादा सीटें हैं. 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश (UP Lok Sabha Seats) के बारे में कहा जाता है कि यहां वोटर वोट नेता को नहीं, जाति को देते हैं।
OBC को वैसे सपा का कोर वोटर माना जाता है. यादव वोटर्स समाजवादी पार्टी के डेडिकेटेड वोटर्स माने जाते हैं। लेकिन 2017 में जब से BJP यूपी की सत्ता में काबिज हुई, तब से OBC वोट बैंक भी डिवाइड हो गया।
BJP ने अपनी राजनीतिक रणनीतियों की मदद से सपा के इस वोटबैंक में पर्याप्त सेंधमारी की है। देखते ही देखते गैर-यादव OBC समुदायBJP के पास आते गए और सपा से दूर होते गए. ऐसे में सवाल उठता है कि यूपी के सियासी रनवे में क्या सपा एकबार फिर से OBC वोट बैंक में BJP के दबदबे को तोड़ने में कामयाब हो पाएगी?
यूपी में किस समुदाय का कितना वोट शेयर?
OBC- 42%
यादव- 11%
कुर्मी- 5%
कोइरी-मौर्य-कुशवाहा-सैनी- 4%
जाट- 2%
अन्य OBC- 16%
BJP का कैसा बना OBC वोट बैंक पर दबदबा?
BJP ने 2014, 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017, 2022 के यूपी विधानसभा में OBC वोटबैंक में सेंधमारी की थी। इसमें उसे अच्छी-खासी सफलता भी मिली। कई सपा नेता और समर्थक BJP के खेमे में आ गए थे।
इस बार BJP OBC वोट बैंक को लेकर अपना दायरा बढ़ाना चाहती है। OBC वोट बैंक में अपना दबदबा बढ़ाने के लिए BJP यूपी में 'ओबीसी महाकुंभ' जैसे आयोजन करने वाली है।
इसका मकसद गैर-यादव पिछड़ी जाति के लोगों को एकसाथ लाना है। इसी मकसद को पूरा करने के लिए ओम प्रकाश राजभर को NDA में लाया गया। संजय निषाद, जयंत चौधरी और अनुप्रिया पटेल ऐसे ही उदाहरण हैं। इनपर NDA के लिए OBC वोट बैंक बढ़ाने का दारोमदार (जिम्मेदारी) है।
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OBC वोट को मेंटेन रखना BJP के लिए कितनी बड़ी चुनौती?
पिछले चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि BJP को OBC का बंपर वोट मिला। इस लोकसभा चुनाव में OBC वोट को मेंटेन रखना BJP के लिए बड़ी चुनौती है। 2014 में सपा और बसपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था।
तब अगर यादवों के वोट को छोड़ दिया जाए, तो बाकी OBC जातियों में BJP और सपा के बीच 35 से 70 फीसदी का अंतर है। 2019 में जब सपा-बसपा साथ थे, तब भी ये 50 से 84 फीसदी का अंतर है। विरोधियों के लिए इस अंतर को पाटना इतना आसान नहीं होगा।