एक रिपोर्ट में बताया है कि हालिया दशकों के दौरान यूरोप को ऊर्जा के क्षेत्र में होने वाला यह सबसे बड़ा घाटा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि रूस से मिलने वाली गैस और तेल के बंद हो जाने के कारण उनकी क्षतिपूर्ति करना यूरोप को कठिन पड़ रहा है। इस हिसाब से अगर संयुक्त राज्य अमरीका और क़तर यूरोप के लिए प्राकृतिक गैस उपलब्ध ही करवा दें फिर भी वर्तमान संकट 2026 तक जारी रह सकता है।
अगर यूरोपीय संघ में गैस की क़ीमत अगर फिर बढ़ती है तो फिर यूरोप को मंदी का नहीं बल्कि अपने विघटन का सामना करना पड़ सकता है।यूरोपीय देश इस समय गैस की सप्लाई सुनिश्चित करने और ऊर्जा की क़ीमतों को कंट्रोल करने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं मगर इस संकट से गंभीर आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक संकट पैदा हो गया है।
यूनान के प्रधानमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि रूस के ख़िलाफ़ यूरोपीय संघ की पाबंदियां अब स्वयं युरोप को ही निशाना बनाने लगी हैं।इनसे यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंच रही है।
एसे में लगता है कि यूरोपीय देश इस समय बुरी तरह से संकट में फंस गए हैं। एक तरफ़ वे अमरीका की मांग ठुकरा नहीं सकते और दूसरी तरफ़ रूस के बारे में उसकी शत्रुतापूर्ण नीतियों के चलते इन देशों को बहुत ज़्यादा नुक़सान उठाना पड़ रहा है।
उल्लेखनीय है कि यूक्रेन युद्ध के बाद अमरीका और पश्चिमी देशों ने रूस के विरुद्ध कड़े प्रतिबंध लगाए थे जिनके बाद रूस ने यूरोप के लिए ऊर्जा की आपूर्ति को बहुत सीमित कर दिया था।