सबसे बड़ा चावल का निर्यातक है भारत क्यों है विदेशों में भारत के चावल की अधिक मांग!?
प्रतिबंधों के बावजूद चावल निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 27 प्रतिशत थी। हालाँकि, साल 2024 में भारत की बासमती चावल का निर्यात कम हो सकता है।
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साल 2022 में विश्व चावल निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत थी। पिछले साल चावल की कुछ क़िस्मों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद भारत चावल निर्यात में शीर्ष पर रहा है।
भारत का प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान उत्पादन बढ़ने की वजह से प्रतिस्पर्धी क़ीमतों पर चावल बेच रहा है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ इससे भारत का बासमती निर्यात इस साल कम हो सकता है।
भारत और पाकिस्तान लंबे बासमती चावल के निर्यात में सबसे आगे हैं। इन चावलों की ईरान, इराक़, सऊदी अरब, यमन और अमेरिका जैसे देशों में मांग अधिक है।के निर्यात से भारत ने 2023 में 5.4 अरब डॉलर की कमाई की थी।अधिक क़ीमतों की वजह से 2022 के मुक़ाबले 2023 में भारत ने 21 फ़ीसदी अधिक कमाई की थी।
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क्या थाईलैंड के आरोपों से भारत के व्यापार रिश्ते प्रभावित होंगे?
थाईलैंड के दूत ने ये टिप्पणी ऐसे दिन की, जब डब्लूटीओ की 13वीं मंत्री स्तर की बैठक में भारत ने खाद्य भंडारण की सीमा के स्थायी समाधान पर चर्चा की मांग की थी।
डब्लूटीओ के नियमों के तहत पब्लिक फ़ूड स्टॉक होल्डिंग का मतलब है। "राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों या अन्य सार्वजनिक एजेंसियों के माध्यम से सरकारों द्वारा खाद्य भंडार की ख़रीद, भंडारण और वितरण।
वरिष्ठ पत्रकार और कृषि विशेषज्ञ हरवीर सिंह कहते हैं कि थाइलैंड के आरोपों ने पल्बिक स्टॉक होल्डिंग और कृषि सब्सिडी से जुड़ी जटिलताओं को फिर से सतह पर ला दिया है।
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कोविड महामारी के बाद से खाद्य सुरक्षा अहम वैश्विक मुद्दा है। विश्लेषक मानते हैं कि खाद्य सुरक्षा को राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जोड़कर देखा जाने लगा है।
ऐसे में भारत को लेकर की गई थाईलैंड की टिप्पणी के व्यापाक व्यापार हितों पर भी असर हो सकता है।
हरवीर सिंह कहते हैं, “थाईलैंड ने फ़ोरम में मौक़ा मिलने पर ये मुद्दा उठाया है। इससे कृषि और व्यापार से जुड़े मुद्दों पर बहस शुरू होगी।
अबू धाबी में हुई इस बैठक में भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि भारत का पक्ष इस मुद्दे पर स्पष्ट है।
उन्होंने कहा, "दुनिया को ये देखने की ज़रूरत है कि कौन इस मुद्दे के समाधान को रोक रहा है और डब्लूटीओ का काम सही से क्यों नहीं हो रहा है। भारत इस मामले पर सहमति बनाना चाहता है लेकिन कुछ देश इस सहमति को तोड़ रहे हैं।
पीयूष गोयल ने कहा कि भारत ये चाहता है कि डब्लूटीओ में जो भी निर्णय हो, उनमें भारत के किसानों के हितों का ध्यान रखा जाए।
हालाँकि, डब्लूटीओ में अमेरिकी प्रतिनिधि कैथरीन ताई ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा है कि विवादों का समाधान सुधार एक जटिल विषय है।
उन्होंने ये कहा कि इस दिशा में सकारात्मक, रचनात्मक और व्यवहारिक माहौल बनाया जा रहा है। उन्होंने ये भी माना कि अभी और भी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है।
दरअसल अमेरिका और यूरोपीय संघ के देश इसे कृषि में व्यापक सुधार से जोड़कर चल रहे हैं। इसमें कृषि सब्सिडी कम करना और आयात कर कम करना शामिल हैं।
हाल के महीनों में कई यूरोपीय देशों में किसानों ने प्रदर्शन किए हैं।
घरेलू राजनैतिक परिस्थितियों की वजह से फ़िलहाल पश्चिमी देश, ख़ासकर यूरोपीय संघ, सब्सिडी या आयात कर कम करने पर चर्चा करने के लिए तैयार नहीं हैं। यही वजह है कि पब्लिक भंडारण के मुद्दे पर भी चर्चा नहीं हो पा रही है।
2022 में हुई डब्लूटीओ की बैठक में सदस्य देशों ने 2024 तक प्रभावी विवाद समाधान स्थापित करने के लिए प्रतिबद्धता ज़ाहिर की थी।
अब ऐसा लग रहा है कि नतीजे तक पहुँचने के बजाए इस मंत्री स्तरीय बैठक में भी सिर्फ़ प्रतिबद्धता ही हासिल की जा सकेगी।