जानिए टाइटैनिक पर बनी वो फ़िल्म, जो बन गई दुष्प्रचार और दुर्घटना
टाइटैनिक के डूबने का वो सिनेमाई दृश्य आज भी लोगों को याद होगा। उस हादसे पर बनाई डायरेक्टर जेम्स कैमरून की वो फ़िल्म 1997 में रिलीज़ हुई थी।
Table of Contents (Show / Hide)
लियोनार्डो डी कैप्रियो और केट विंसलेट की मुख्य भूमिकाओं वाली उस फ़िल्म ने कई ऑस्कर अवार्ड जीते थे। लेकिन, समुद्र में 80 साल पहले हुए उस हादसे ने जर्मनी की नाज़ी सत्ता को भी एक बड़ी फ़िल्म बनाने को प्रेरित किया था।
वो शानदार और तमाम लग्ज़री सुविधाओं से लैस जहाज़ था 'एसएस कैप एर्कोना'। 1942 की शुरुआत तक इसे 'क्वीन ऑफ साउथ अटलांटिक' कहा जाता था।
वो जहाज़ बाल्टिक सी में जर्मनी के नेवल बेस में बेकार पड़ा जंग खा रहा था। दो साल पहले उस जहाज़ को हिटलर की नौसेना ने नौसैनिकों के बैरक में तब्दील कर दिया था।
संयोग से उसका आकार-प्रकार उस 'आरएमएस टाइटैनिक' से मिलता-जुलता था, जो 1912 में समुद्र में डूब गया था। अब हिटलर की सरकार ने उसी टाइटैनिक हादसे पर एक फ़िल्म बनाने का फैसला किया था।
फ़िल्म पर पानी की तरह बहाया पैसा
हालांकि, टाइटैनिक हादसे पर एक फ़िल्म 1912 में ही बन चुकी थी। इसी साल टाइटैनिक अपनी पहली समुद्री यात्रा में ही उत्तरी अटलांटिक के बर्फ़ीले इलाक़े में एक हिमखंड से टकरा कर डूब गया था। इसलिए उस हादसे पर 30 साल बाद फ़िल्म बनाना कोई धांसू आइडिया नहीं कहा जा सकता था।
लेकिन, हिटलर के कुख्यात प्रचार मंत्री जोसेफ़ गोएबल्स को टाइटैनिक हादसे को लेकर एक ऐसी कहानी हाथ लगी, जिसमें हादसे के नए पहलुओं को उकेरा गया था। इस कहानी में दिखाया गया था- कैसे ये दर्दनाक हादसा ब्रिटेन और अमेरिका की 'लालच' की वजह से हुआ था।
नाज़ी टाइटैनिक' नाम की किताब लिखने वाले अमेरिकी इतिहासकार प्रोफे़सर रॉबर्ट वॉटसन ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "गोएबल्स की देखरेख में नाज़ी सरकार तब तक सैकड़ों प्रोपेगैंडा फिल्में बना चुकी थीं। इस बार वो सबसे कुछ अलग करना चाहते थे।''
प्रोफेसर वॉटसन बताते हैं, "1942 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी को कई मोर्चों पर हार का सामना करना पड़ रहा था। तब गोएबल्स ने ये सोचा कि बेहतर है कि दुष्प्रचार के मोर्चे पर ही कुछ बड़ा किया जाए।"
गोएबल्स का मकसद था टाइटैनिक ट्रैजेडी पर एक बड़ी फ़िल्म बनाकर पश्चिमी देशों को उन्हीं के अंदाज़ में जवाब देना।
प्रोफेसर वॉटसन बताते हैं, "नाज़ी विरोधी 'कासाब्लैंका' के जवाब में बनाई जाने वाली फ़िल्म में गोएबल्स कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे। इसमें वो जहाज़ भी शामिल था जिसे जर्मनी ने हू-ब-हू टाइटैनिक की तर्ज़ पर बनाया था।"
दोनों जहाज़ों में समानता पर प्रोफेसर वॉटसन कहते हैं, "'टाइटैनिक और कैप एर्कोना में सिर्फ़ एक चिमनी का फ़र्क था। टाइटैनिक में चार चिमनियां थीं, जबकि कैप एर्कोना में तीन। बाकी दोनों जहाज़ एक ही तरह के थे। लेकिन फ़िल्म की शूटिंग में कैप एर्कोना की चर्चा नकली टाइटैनिक की तरह हुई। "
प्रोफे़सर वॉटसन अपनी किताब में लिखते हैं, "उस वक़्त 40 लाख (तब की जर्मन मुद्रा में) का बजट रखा गया, जो आज के अमेरिकी डॉलर में 180 मिलियन (18 करोड़) के बराबर है। इस लिहाज़ से ये दुनिया की सबसे महंगी फ़िल्मों में से एक है।"
इस फ़िल्म में काम करने के लिए सैकड़ों जर्मन सैनिकों को युद्ध के मोर्चे से हटाकर शूटिंग में लगाया गया। साथ ही 'सिबिल श्मिट' जैसे उस वक़्त के मशहूर जर्मन एक्टर्स को भी फ़िल्म से जोड़ा गया।
हालांकि फ़िल्म के निर्माण के दौरान तमाम तरह की गड़बड़ियां और अराजकता सामने आईं। शूटिंग में सैनिकों के महिला कलाकारों का शोषण करने की ख़बरें आईं, तो एक ख़ौफ इस बात का भी बना रहा कि फ़िल्म के चमचमाते सेट्स को देखकर मित्र देशों की सेना यहां बमबारी कर सकती है।
इसके अलावा और भी गंभीर घटनाएं हुईं। मसलन फ़िल्म के डाइरेक्टर हरबर्ट सेल्पिन की गिरफ़्तारी। हरबर्ट फ़िल्म की शूटिंग में नाज़ी अधिकारियों की दखलअंदाज़ी से खुश नहीं थे। उन्होंने इस बात पर नाराज़गी जाहिर की तो उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। खुद गोएबल्स ने उनसे पूछताछ की।
कुछ दिन बाद हरबर्ट जेल के कमरे में फांसी के फंदे पर लटके पाए गए।
सोर्स बीबीसी