इन लोगों से 27 अलग अलग किस्म के प्यार के अनुभव के बारे में जानकारी इकट्ठा की गई थी।
उदाहरण के लिए रोमांटिक प्रेम, सेक्सुअल प्रेम, माता-पिता वाला प्रेम, दोस्तों के प्रति प्रेम, अजनबियों, प्रकृति, ईश्वर या खुद के प्रति प्रेम। इन लोगों से ये भी पूछा गया था कि क्या उन्हें अपने शरीर में अलग अलग किस्म के प्रेम का अहसास होता है और शारीरिक और मानसिक रूप से कितना तीव्र वे इसे महसूस करते हैं। नतीजों से पता चला कि अलग अलग किस्म के प्रेम में कमज़ोर से लेकर सशक्त होने की एक निरंतरता दिखाई देती है।
इस अध्ययन को एक साइंस जर्नल ‘फ़िलोसोफिकल साइकोलॉजी’ में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि सभी प्रकार के प्रेम को सिर में अधिक महसूस किया गया लेकिन उनकी तीव्रता शरीर के अलग अलग हिस्से में अलग अलग होती है। कुछ का असर सीने में होता है, जबकि बाकी को पूरे शरीर में महसूस किया जा सकता है।
दिल से दिमाग तक असर
रिने ने कहा, “भावना की शारीरिक और मानसिक तीव्रता और इसके सुखद अहसास के बीच पुख़्ता संबंध का पता चलना भी दिलचस्प बात थी। “प्रेम का अहसास शरीर में जितना अधिक होता है उतना ही अधिक मानसिक रूप से महसूस किया जाता है और ये अधिक सुखद होता है।
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उनके मुताबिक, “जब हम तीव्र अहसास वाले प्रेम से कम तीव्र अहसास वाले प्रेम को महसूस करते हैं, सीने में उत्तेजना भी लगातार कमजोर होती जाती है।
शायद ये ऐसा इसलिए है क्योंकि अजनबियों के लिए प्रेम सोच विचार की प्रक्रिया से जुड़ा होता है। ये इसलिए भी हो सकता है कि सिर में सुखद अहसास का अनुभव होता है।
रिने ने कहा कि इस बारे में और जांच पड़ताल की जानी चाहिए। रिने ने ये भी ध्यान दिया कि प्रेम में सांस्कृतिक अंतर की भी अहम भूमिका होती है।
उनके अनुसार, “अगर यही अध्ययन बहुत धार्मिक समुदाय में होता तो ईश्वर के प्रति महसूस होने वाला प्रेम अधिक तीव्र होता।
"इसी तरह अगर रिश्ता माता पिता का हो तो लोग अपने बच्चों के लिए सबसे अधिक प्रेम महसूस करेंगे।