फिलिस्तीन के सपोर्ट में सोशल मीडिया पोस्टों में क्यों हो रहा है तरबूज़ का इस्तेमाल?
इसराइल और ग़ज़ा युद्ध के दौरान तरबूज़ फ़लस्तीन मुद्दे के समर्थन में एक शक्तिशाली रूपक बन गया है। आख़िर क्या है तरबूज़ का फलस्तीन से गहरा रिश्ता।आइए जानते हैं कि तरबूज़ फ़लस्तीनी एकजुटता का इतना मज़बूत प्रतीक कैसे बना।
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![फिलिस्तीन के सपोर्ट में सोशल मीडिया पोस्टों में क्यों हो रहा है तरबूज़ का इस्तेमाल?](https://cdn.gtn24.com/files/india/posts/2023-11/thumbs/1700894137.webp)
तरबूज़ का लाल, काला, सफ़ेद और हरा रंग न केवल इस रसीले फल में होता है बल्कि फ़लस्तीन के झंडे का भी रंग है। तरबूज़ एक बार फिर फ़लस्तीन समर्थक रैलियों और सोशल मीडिया पोस्ट में प्रमुख तौर पर दिखाई देने लगा है।
''फ़लस्तीन में, जहाँ फलस्तीन का झंडा लहराना अपराध है, फ़लस्तीन के लाल, काले, सफेद और हरे रंग के लिए इसराइली सैनिकों के ख़िलाफ़ तरबूज़ के टुकड़े उठाए जाते हैं।''
ये पंक्तियां अमेरिकी कवि अरासेलिस गिर्मे की एक कविता 'ओड टू द वॉटरमेलन' से हैं। वे फ़लस्तीनी समस्या के रूप फल के प्रतीकात्मक अर्थ का उल्लेख करते हैं।
लाल, काला, सफ़ेद और हरा रंग न केवल तरबूज़ बल्कि फलस्तीनी झंडे के भी रंग हैं। इसलिए ग़ज़ा में इसराइल के हमले के बीच दुनिया भर में फ़लस्तीन समर्थक मार्च और अनगिनत सोशल मीडिया पोस्ट में प्रतीकवाद देखा जा सकता है। लेकिन तरबूज़ के रूपक बनने के पीछे एक इतिहास है।
फिलिस्तीन के सपोर्ट में आगे आए कलाकार
टिक टॉक पर ब्रितानी मुस्लिम कॉमेडियन शुमीरुन नेस्सा ने तरबूज़ फिल्टर बनाए और अपने फॉलोवर को उनके साथ वीडियो बनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने इससे होने वाली आय को ग़ज़ा की मदद के लिए दान करने का वादा किया।
कुछ सोशल मीडिया यूजर्स इस डर से फ़लस्तीनी झंडे के बजाय तरबूज़ पोस्ट कर रहे होंगे कि उनके अकाउंट या वीडियो को सोशल नेटवर्क द्वारा दबाया जा सकता है।
अतीत में फ़लस्तीन समर्थक यूजर्स ने इंस्टाग्राम पर 'शैडो बैन' लगाने का आरोप लगाया है। शैडो बैन तब होता है, जब कोई सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म यह सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप करता है कि कुछ पोस्ट अन्य लोगों के फ़ीड में दिखाई न दें।
लेकिन साइबर मामलों के संवाददाता जो टाइडी का कहना है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि अब ऐसा हो रहा है। वो कहते हैं, "ऐसा नहीं लगता कि फ़लस्तीन समर्थक सामग्री पोस्ट करने वाले यूजर्स पर शैडो बैन लगाने की कोई साज़िश है।"
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वो कहते हैं, "लोग सोशल मीडिया पोस्ट में तरबूज़ का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन वे फ़लस्तीन के झंडे का भी खुलकर उपयोग कर रहे हैं और संघर्ष के बारे में खुलकर लिख रहे हैं।"
फ़लस्तीन में दशकों तक तरबूज़ को एक राजनीतिक प्रतीक माना जाता था, ख़ासकर पहले और दूसरे इंतिफादा के दौरान।
आज तरबूज़ इस इलाक़े में अविश्वसनीय रूप से न केवल एक लोकप्रिय भोजन बना हुआ है, बल्कि फ़लस्तीनियों की पीढ़ियों और उनके संघर्ष का समर्थन करने वालों के लिए एक शक्तिशाली रूपक भी है।
सबसे प्रसिद्ध कलाकृतियों में से एक खालिद हुरानी की है। उन्होंने 2007 में 'सब्जेक्टिव एटलस ऑफ फ़लस्तीन' नाम की किताब के लिए तरबूज़ के एक टुकड़े को चित्रित किया।
'द स्टोरी ऑफ़ द वॉटरमेलन' नाम की यह पेंटिंग दुनिया भर में घूमी। मई 2021 में इसराइल-हमास संघर्ष के दौरान इसे और अधिक प्रसिद्धि मिली।
तरबूज़ के चित्रण में एक और उछाल इस साल की शुरुआत में आया। जनवरी में, जब इसराइल के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतामार बेन ग्विर ने पुलिस को सार्वजनिक स्थानों से फलस्तीनी झंडे हटाने का निर्देश दिया।
उन्होंने कहा कि फलस्तीनी झंडे लहराना आतंकवाद के समर्थन जैसा काम है। इसके बाद इसराइल विरोधी मार्च के दौरान तरबूज़ की तस्वीरें दिखाई देने लगीं।
इसराइली क़ानून फ़लस्तीनी झंडों को ग़ैर क़ानूनी नहीं कहता, लेकिन पुलिस और सैनिकों को उन मामलों में उन्हें हटाने का अधिकार है, जहाँ उन्हें लगता है कि इससे सार्वजनिक व्यवस्था को ख़तरा है।
इस साल जुलाई में यरूशलम में आयोजित एक विरोध-प्रदर्शन में, फ़लस्तीनी प्रदर्शनकारियों ने फ़लस्तीनी झंडे के रंग में तरबूज़ या स्वतंत्रता शब्द के प्रतीक ले रखे थे।
वहीं अगस्त में, प्रदर्शनकारियों के एक समूह ने प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की न्यायिक सुधार योजनाओं का विरोध करने के लिए तेल अवीव में तरबूज़ की फोटो वाली टी-शर्ट पहनी थी।
हाल ही में, ग़ज़ा युद्ध का विरोध करने वाले सोशल मीडिया पोस्टों में तरबूज़ के चित्रों का इस्तेमाल हुआ है।