सुधार की मांग करने वाली शिया छात्रा को सऊदी अरब ने 34 साल की सज़ा सुनाई
शांतिपूर्ण तरीके से सुधार की मांग करने के कारण सऊदी सरकार ने शिया छात्रा को 34 साल की कैद की सज़ा सुनाई है।
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सऊदी अरब में सुधार की वकालत और ऐक्टिविस्टों की रिहाई की मांग करने वाले ट्वीट की वजह से वहां की एक पीएचडी छात्रा को 34 साल की क़ैद की सज़ा सुनाई गई है।
34 साल की सलमा अल-शहाब दो बच्चों की मां हैं और वो सऊदी अरब की नागरिक हैं। उन्हें पिछले साल इस मामले में गिरफ़्तार किया गया था।
मानवाधिकार संस्थाओं का कहना है कि इस मामले में सुनाई गई सज़ा, सऊदी सरकार के उस झूठ को उजागर करती है कि देश में महिलाओं को पहले से ज़्यादा अधिकार दिए जा रहे हैं। इन संस्थाओं का आरोप है कि देश में महिलाओं की स्थिति पहले से ख़राब होती जा रही है।
चरमपंथ के मुकदमों की सुनवाई करनेवाले ट्राइब्यूनल ने सलमा अल-शहाब को 'देश की व्यवस्था में गड़बड़ करने वालों' का साथ देने और 'अफ़वाह फैलाने' का दोषी करार दिया है।
सऊदी अरब में शांतिपूर्ण तरीके से आवाज़ उठाने वाले किसी कार्यकर्ता को दी गई अब तक की सबसे लंबी सज़ा को लेकर मानवाधिकार संस्थाओं ने चेतावनी दी है। क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के नेतृत्व में पिछले पांच साल के दौरान ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाए गए हैं।
बिन सलमान के नेतृत्व वाले सऊदी अरब में शिया समुदाय के दमन की इस प्रकार की कार्यवाई आम है। अपने इंस्टाग्राम प्रोफ़ाइल में वे अपने आप को दांतों की डाक्टर और मेडिकल एजुकेटर बताती हैं। उनका कहना है कि वे ब्रिटेन की लीड्स यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही हैं और फ़िलहाल वे रियाद की प्रिसेंज़ नूरा यूनिवर्सिटी में लेक्चरर हैं।
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उनके ट्विटर पर 2,700 फ़ॉलोअर हैं और उनका अकाउंट 12 जनवरी, 2021 से अपडेट नहीं हुआ है। उसके तीन दिन बाद ही उन्हें सऊदी अरब में कथित तौर पर हिरासत में ले लिया गया था।
उन्होंने देश में सुधार और प्रमुख ऐक्टिविस्टों, मौलानाओं और अन्य बुद्धिजीवियों की रिहाई की मांग करने वाले कई मैसेज ट्वीट या रीट्वीट किए थे।
अमेरिका की मानवाधिकार संस्था 'द फ़्रीडम हाउस' और ब्रिटेन की एएलक्यूएसटी के अनुसार, 2021 के आखि़र में शहाब को चरमपंथ और साइबर अपराध विरोधी क़ानूनों का उल्लंघन करने का अपराध साबित होने पर पहले छह साल की जेल की सज़ा सुनाई गई थी।
लेकिन कोर्ट के दस्तावेज़ों को पढ़ने के बाद इन संस्थाओं ने बताया है कि इस महीने की नौ तारीख़ को अपीलीय अदालत ने उनकी सज़ा बढ़ाते हुए 34 साल कर दी। साथ ही उन पर 34 साल के लिए यात्रा प्रतिबंध भी लगाए हैं। माना जा रहा है कि यात्रा करने पर लगाए गए प्रतिबंध उनकी रिहाई के बाद लागू होंगे।
पूरी दुनिया में हो रही इस फै़सले की आलोचना
फ़्रीडम इनशिएटिव की सऊदी केस मैनेजर बेथनी अल-हैदरी ने इस सज़ा को 'घिनौना' क़रार दिया है।
उन्होंने शनिवार को बीबीसी को बताया, ''सऊदी अरब दुनिया को बताता है कि महिलाओं के अधिकारों को बेहतर बनाने और क़ानूनी सुधार लाने के लिए वह काम कर रहा है। लेकिन इस फै़सले के बाद अब कोई शक़ नहीं रह जाता कि देश में इस मोर्चे पर हालात और ख़राब होते जा रहे हैं।''
एएलक्यूएसटी की कम्युनिकेशंस हेड और लौजैन अल-हथलौल की बहन लीना अल-हथलौल ने सोमवार को कहा, ''इस फै़सले से साफ़ हो गया है कि सऊदी अरब के अधिकारियों पर खुलकर अपने विचार रखने वाले लोगों को बहुत कठोर दंड देने का भूत सवार हो गया है।''
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बुधवार को लीड्स यूनिवर्सिटी के प्रवक्ता ने बीबीसी को बताया, ''सलमा मामले में हाल की घटनाओं को देखकर हमें गहरी चिंता हुई है। उन्हें किसी तरीके से कोई मदद दी जा सकती है, इसे लेकर जानकारों से हम सलाह ले रहे हैं।''
यूनिवर्सिटी ने इस फ़ैसले के बाद सलमा, उनके परिवार और दोस्तों के साथ होने का यक़ीन दिलाया है।
वहीं अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि वे शहाब के मामले का अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि महिलाओं के हक़ की वकालत करने के लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी के इस्तेमाल को अपराध नहीं बनाया जाना चाहिए।
हालांकि इस मामले पर अभी तक सऊदी सरकार की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।
सऊदी अरब में बोलने पर पहले भी मिली हैं सज़ाएं
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि मानवाधिकारों के हनन के मामले में सऊदी अरब दुनिया के सबसे ख़राब मुल्कों में एक है। यहां अभिव्यक्ति की आज़ादी को बुरी तरह से दबाया जाता है और सरकार की आलोचना करने वाले को गिरफ़्तार कर लिया जाता है।
मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक़ 2019 में सऊदी में रिकॉर्ड 184 लोगों को फांसी की सज़ा हुई थी। वहीं कोड़े मारने की सज़ा भी वहां आम थी, लेकिन 2020 में सऊदी अरब के सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके बदले या तो जेल की सज़ा दी जाएगी या फिर जुर्माना भरना होगा।
आख़िरी बार सऊदी अरब में कोड़े मारने की सज़ा तब सुर्ख़ियों में आई थी, जब 2015 में ब्लॉगर रैफ़ बदावी को सार्वजनिक तौर पर कोड़े मारे गए थे। उन पर साइबर क्राइम का आरोप था और साथ ही इस्लाम का अपमान करने का भी।
बदावी को जून 2012 में गिरफ़्तार किया गया था। उन्हें 10 साल क़ैद और 1000 कोड़े मारे जाने की सज़ा दी गई थी। बदावी पर अपनी वेबसाइट ''सऊदी लिबरल नेटवर्क'' पर इस्लाम का अपमान करने, साइबर अपराध और अपने पिता की अवहेलना करने के आरोप थे। यह वेब साइट अब बंद कर दी गई है।
सोर्स बीबीसी