सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक शादी पर चल रही सुनवाई,कोर्ट में अब तक क्या-क्या हुआ
सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक शादी को क़ानूनी मान्यता दिलाने की मांग से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई कर रही है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा इस पीठ में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं।
Table of Contents (Show / Hide)
![सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक शादी पर चल रही सुनवाई,कोर्ट में अब तक क्या-क्या हुआ](https://cdn.gtn24.com/files/india/posts/2023-04/thumbs/shadi.webp)
इस मामले की सुनवाई 18 अप्रैल से शुरू हुई है और सुप्रीम कोर्ट रोज़ाना इसकी लाइव स्ट्रीमिंग भी कर रही है।
सुनवाई के पहले दिन ही सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कर दिया कि वो पर्सनल लॉ के क्षेत्र में जाए बिना देखेगी कि क्या साल 1954 के विशेष विवाह क़ानून के ज़रिए समलैंगिकों को शादी के अधिकार दिए जा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट इस बात पर गौर कर रही है कि वो समलैंगिक विवाह के लिए कितना आगे जा सकती है, क्योंकि शादी से जुड़े तीन दर्जन से अधिक कानून हैं. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यी भी कहा है कि याचिकाकर्ताओं की समलैंगिक विवाह पर की गई मांगें संसद के दायरे में आती हैं।
कब क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो पर्सनल लॉ के क्षेत्र में जाए बिना देखेगी कि क्या साल 1954 के विशेष विवाह क़ानून के ज़रिए समलैंगिकों को अधिकार दिए जा सकते हैं।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ़ से दलील दी गई कि ये याचिकाएं एक अभिजात्य वर्ग के विचारों को दर्शाती हैं।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि क़ानूनी दृष्टि में शादी का अर्थ एक बायोलॉजिकल पुरुष और बायोलॉजिकल महिला के बीच रिश्ता रहा है।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला और पुरुष में भेद करने की कोई पुख़्ता अवधारणा नहीं है।
वहीं, याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि समलैंगिकों के लिए समान अधिकार हासिल करने की दिशा में सबसे बड़ा रोड़ा आईपीसी की धारा 377 थी जिसे पांच साल पहले ही निरस्त कर दिया गया है।
अब अगर हमारे अधिकार समान हैं तो हम आर्टिकल 14, 15, 19 और 21 के तहत अपने सभी अधिकारों का इस्तेमाल करना चाहते हैं।
दूसरे दिन की सुनवाई, 19 अप्रैल: केंद्र सरकार ने अपील की है कि इस मामले में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पार्टी बनाया जाए।
लाइव लॉ हिंदी के मुताबिक़ याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि एडॉप्शन, सरोगेसी, अंतरराज्यीय उत्तराधिकार, कर छूट, कर कटौती, अनुकंपा सरकारी नियुक्तियां आदि का लाभ उठाने के लिए विवाह की आवश्यकता होती है।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने केंद्र सरकार को कहा कि वे इसे शहरी अभिजात्य वर्ग के विचार नहीं कह सकती। ख़ासतौर पर तब, जब सरकार ने इस दावे के पक्ष में कोई डेटा नहीं दिया है।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा, "ये शहरी सोच लग सकती है क्योंकि शहरी इलाकों में अब लोग खुलकर सामने आने लगे हैं।
तीसरे दिन की सुनवाई, 20 अप्रैल: मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान कहा कि समलैंगिक संबंध केवल शारीरिक संबंध नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि हम समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करके, स्वीकार करते हैं कि समलैंगिक संबंध सिर्फ शारीरिक संबंध नहीं है बल्कि एक स्थिर, भावनात्मक संबंध से कुछ अधिक बढ़कर हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से कहा कि समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के बाद संवैधानिक और सामाजिक रूप से उस स्तर पर पहुंच गया है कि जिसमें कोई यह सोच सकता है कि समलैंगिक लोग, विवाह जैसे संबंध में हो सकते हैं।
तीसरे दिन कोर्ट में बच्चे को गोद लेने पर बहस हुई. याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विश्वनाथन ने कहा कि एलजीबीटीक्यू माता-पिता बच्चों को पालने के लिए उतने ही योग्य हैं जितने विषमलैंगिक माता-पिता।
पीठ इस दलील से सहमत नहीं थी कि विषम लैंगिकों के विपरीत समलैंगिक जोड़े अपने बच्चों की उचित देखभाल नहीं कर सकते।
पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि लोग अब इस धारणा से दूर हो रहे हैं कि एक लड़का होना ही चाहिए. यह शिक्षा के प्रसार और प्रभाव के कारण है।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से किसी भी मामले में सोमवार को दलीलें बंद की जाएंगी।
चौथे दिन की सुनवाई, 25 अप्रैल: मंगलवार को चौथे दिन की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताई कि विवाह, तलाक़ और विरासत के बारे में क़ानून बनाने की ज़िम्मेदारी संसद की है।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, "इसमें कोई शक नहीं कि इन याचिकाओं में जो मुद्दे उठाए गए हैं, उनमें हस्तक्षेप का अधिकार संसद के पास है। इसलिए सवाल ये है कि इस मामले में कोर्ट कितना आगे तक जा सकती है।
स्पेशल मैरेज एक्ट के तहत अधिकार देने पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "अगर हम स्पेशल मैरेज एक्ट के तहत इसे देखेंगे, हमें कई पर्सनल लॉ बोर्ड में भी सुधार करने होंगे."
जस्टिस कौल और जस्टिस भट्ट ने कहा कि इसलिए बेहतर होगा कि वो इस बात पर गौर करें कि समलैंगिक विवाह का आधिकार दिया जा सकता है या नहीं. इसके बहुत अंदर जाने पर मामला उलझ जाएगा।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत में पेश वकील मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि संविधान में दिए गए अधिकार से वंचित करने के लिए संसद का कारण नहीं दिया जा सकता।
उन्होंने कहा कि जब किसी समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन हो तो उन्हें संविधान के आर्टिकिल 32 के आधार पर संवैधानिक पीठ में जाने का अधिकार है।
उन्होंने कोर्ट से ये भी कहा कि याचिकाकर्ता कोई विशेष बर्ताव की अपेक्षा नहीं कर रहे हैं बल्कि वो स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत अपने संबंधों की व्यवहारिक व्याख्या चाहते हैं।
इसके अलावा जस्टिक भट्ट ने कहा कि क्या याचिकाकर्ता पूरे एलजीबीटीक्यूआई प्लस समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। मुमकिन है कि कई आवाज़ें अनसुनी रह जाएं।