क्रिकेट की दुनिया के सबसे अच्छे दिनों की कहानी
आए जानते है 1983 में कैसा वर्ल्ड कप हुआ जिसकी चर्चा का इतिहास लिखा गया।
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भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे कामयाब दिन की चर्चा हो तो आम क्रिकेट प्रेमियों को 25 जून का ध्यान आता है इसी दिन 1983 में कपिल देव की अगुवाई में भारत ने वर्ल्ड कप जीतने का करिश्मा कर दिखाया था।
उसका असर वाक़ई कई पीढ़ियों पर रहा भी लेकिन इस कामयाबी से सात साल पहले भारतीय क्रिकेट टीम ने वो कारनामा कर दिखाया था जो सालों साल तक रिकॉर्ड बुक में रहा और उस पर आज भी यक़ीन करना मुश्किल है।
ये 12 अप्रैल, 1976 की बात है भारतीय क्रिकेट टीम वेस्टइंडीज़ के दौरे पर थी और पोर्ट ऑफ़ स्पेन के क्विंस पार्क ओवल मैदान में खेले जा रहे टेस्ट का आख़िरी दिन था टेस्ट की चौथी पारी में जीत के लिए 403 रन के लक्ष्य का पीछा करते हुए भारतीय टीम को एक विकेट पर 134 रनों की पारी से खेल को आगे बढ़ाना था।
यानी मैच के आख़िरी दिन वेस्टइंडीज़ के तूफ़ानी गेंदबाज़ों के सामने 279 रन बनाने की चुनौती थी यह चुनौती कितनी बड़ी थी, इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि टेस्ट क्रिकेट इतिहास में इससे पहले यह कारनामा महज़ एक ही बार हुआ था।
1948 में डॉन ब्रैडमैन के नाबाद 173 रनों की बदौलत ऑस्ट्रेलिया ने लीड्स टेस्ट में चौथी पारी में तीन विकेट पर 403 रन बनाकर इंग्लैड को हराया था उस टेस्ट में डॉन ब्रैडमैन के अलावा पहली पारी में नील हार्वे और दूसरी पारी में ऑर्थर मौरिस ने भी ज़ोरदार शतक बनाए थे।
भारतीय क्रिकेट टीम ने जो इतिहास बनाया था, उसका अंदाज़ा पहले चार दिनों के खेल में बिल्कुल नहीं हो पाया था पहले दिन के खेल में विवियन रिचर्ड्स के नाबाद 151 रन की बदौलत वेस्टइंडीज़ ने पांच विकेट पर 320 रन बना लिए थे।
दूसरे दिन रिचर्ड्स 177 रन पर आउट हुए जबकि कप्तान क्लायव लॉयड ने 68 रनों का योगदान दिया भागवत चंद्रशेखर के छह विकेट और कप्तान बिशन सिंह बेदी के चार विकेटों की बदौलत भारत वेस्टइंडीज़ को 359 रन पर समेटने में कामयाब रहा वेस्टइंडीज़ ने अपने स्टार गेंदबाज़ एंडी रॉबर्ट्स को आराम दिया, लेकिन माइकल होल्डिंग और जूलियन को खेलना आसान नहीं था।
सुनील गावस्कर, मोहिंदर अमरनाथ और गुंडप्पा विश्वनाथ के होते हुए भारत की ओर से पहली पारी में सर्वाधिक रन ऑलराउंडर मदन लाल के बल्ले से निकले उन्होंने 42 रन बनाए थे दूसरी तरफ़ माइकल होल्डिंग ने छह विकेट लेकर भारत की पारी 228 रनों पर समेट दी भारतीय स्पिनरों ने वेस्टइंडीज़ की दूसरी पारी पर अंकुश ज़रूर रखा, लेकिन एल्विन कालीचरण ने नाबाद शतक (103 रन) बनाकर टीम को बेहद मज़बूत स्थिति में पहुंचा दिया उनके शतक के बाद कप्तान लॉयड ने मैच के चौथे दिन छह विकेट पर 271 रन पर पारी समाप्त की घोषणा करते हुए भारत को 403 रनों का लक्ष्य दिया इस चुनौती के सामने चौथे दिन का खेल ख़त्म होने तक भारत ने एक विकेट पर 134 रन बना लिए थे सुनील गावस्कर नाबाद 86 रन पर खेल रहे थे और उनके साथ मोहिंदर अमरनाथ 14 रनों पर मौजूद थे।
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गावस्कर ने इस चुनौती के बारे में अपनी आत्मकथा 'सन्नी डेज़' में लिखा है, "दूसरी पारी से पहले मुझे लगा कि हम ये मैच बचा सकते हैं, जीत का ख़्याल भी नहीं था" गावस्कर ने ये भी लिखा है, "ये मैदान मेरा फ़ेवरिट मैदान था, इस टेस्ट से पहले मैं यहां 65 और नाबाद 67 ( डेब्यू टेस्ट, 1971) , 124 एवं 220 ( सिरीज़ का पांचवां टेस्ट, 1971) और 157 (दूसरा टेस्ट, 1976) रनों की पारी खेल चुका था यहां भारतीय मूल के लोग बड़ी संख्या में मौजूद हैं चौथे दिन पवेलियन से लौटते वक्त मेरे ध्यान में यही था कि यहां दोहरा शतक बन सकता है"।
लेकिन पांचवें दिन की शुरुआत में गावस्कर अपनी लय में नहीं दिखे और उनकी टाइमिंग ठीक नहीं बैठ रही थी 86 रन से 100 रन तक पहुंचने में उन्हें एक घंटे से भी ज़्यादा का वक़्त लगा शतक पूरा करने के बाद 102 रन पर गावस्कर आउट हो गए अंपायर ने उन्हें जुमादिन की गेंद पर विकेट के पीछे कैच आउट क़रार दिया, हालांकि गावस्कर के मुताबिक़ वे कैच आउट नहीं, लेकिन स्टंप आउट थे गावस्कर के आउट होने के बाद गुंडप्पा विश्वनाथ बल्लेबाज़ी के लिए उतरे विश्वनाथ की पारी थी जिसने भारत को ये मैच जीतने की स्थिति में पहुंचाया तीसरे विकेट के लिए गुंडप्पा विश्वनाथ और मोहिंदर अमरनाथ ने 220 मिनट में 159 रन जोड़े थे और इसमें 112 रन विश्वनाथ के बल्ले से निकले थे।
गुंडप्पा विश्वनाथ का विदेशी पिचों पर यह पहला शतक था वे जिस अंदाज़ में खेल रहे थे और वेस्टइंडीज़ के तेज़ गेंदबाज़ों को बाउंड्री के पार भेज रहे थे, उससे लग रहा था कि वे भारत को जीत दिलाकर ही दम लेंगे वे एक ही तरीके से आउट हो सकते थे और वही हुआ मोहिंदर अमरनाथ के साथ एक मिसअंडरस्टैंडिंग के चलते वे रन आउट हो गए 15 बेहतरीन चौकों की उनकी पारी ने भारत को वहां पहुंचाया जहां से भारत मैच जीतने के बारे में सोच सकता था भारतीय क्रिकेट के अहम पड़ावों पर आधारित अपनी पुस्तक 'द नाइन वेव्स- द एक्स्ट्राऑडिनरी स्टोरी ऑफ़ इंडियन क्रिकेट' में स्पोर्ट्स एडिटर मिहिर बोस ने लिखा है, "यह पहला मौका था जब विश्वनाथ ने उस पारी में रन बनाए जहां गावस्कर ने शानदार खेल दिखाया अमूमन गावस्कर जब रन बनाते थे तो विश्वनाथ नाकाम हो जाते" विश्वनाथ के आउट होने के बाद भी भारत को 67 रन बनाने थे ऐसे वक्त में एकनाथ सोल्कर की जगह कप्तान बिशन सिंह बेदी ने ब्रजेश पटेल को सोल्कर की जगह बल्लेबाज़ी करने भेजा।
इसकी एक बड़ी वजह तो यही थी कि इसी मैदान पर खेले गए दूसरे टेस्ट में ब्रजेश पटेल ने नाबाद 115 रनों की पारी खेली थी, जो उनके करियर का इकलौता शतक साबित हुआ पटेल ने मिले मौके का पूरा फ़ायदा उठाते हुए तेज़ी से नाबाद 49 रन बनाए उनकी बल्लेबाज़ी के चलते ही भारतीय टीम ने छह अनिवार्य ओवर के रहते जीत हासिल कर ली।
सोर्स : बीबीसी