फ़्रांस के उच्च समानता संगठन (एचसीई) द्वारा प्रकाशित नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, फ्रांस में महिलाओं के प्रति स्त्री द्वेष, भेदभाव और हिंसा की मात्रा में तेज़ी से और खतरनाक स्तर तक वृद्धि हुई है।
एचसीई की अध्यक्ष सिल्वी पियरे-ब्रूसलेट ने शोध के परिणामों की घोषणा करते हुए अपील की है कि आरंभिक उम्र के पुरुषों के व्यवहार और बर्ताव पर ध्यान दिया जाए जिसमें शिक्षा में व्यापक कार्रवाई और सोशल मीडिया में सख्त नियमों को बनाए जाने जैसे प्रावधान शामिल किए गये हैं।
दशकों से पश्चिमी देश विशेष रूप से फ्रांस ने हमेशा मानव अधिकारों और पुरुषों व महिलाओं के समान अधिकारों का सम्मान करने का नारा दिया है और महिलाओं के अधिकारों की समानता और समानता का सम्मान न करने के लिए कई देशों की निंदा की है, यहां तक कि दंडात्मक कार्यवाहियां भी कीं हैं जैसे कि बहिष्कार और विरोध रैलियां,जबकि सामने आने वाले तथ्य ऐसे दावों के विपरीत कुछ अलग ही कहानी सुना रहे हैं।
यूरोपीय संघ की पूर्व विदेश नीति प्रभारी फेडरिका मोग्रेनी ने कहा कि यूरोप में हर तीन में से एक महिला शारीरिक या यौन हिंसा की शिकार है। उनका कहना था कि हमें यूरोप में इस घटना से लड़ना चाहिए, हम अभी भी इस समस्या का समाधान नहीं कर पाए हैं, महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा इतने आपातकालीन स्तर पर पहुंच गई है कि यूरोप में यौन शोषण या तस्करी की भेंट चढ़ने वाली लगभग सभी महिलाएं हैं।
शारीरिक हिंसा, कार्यस्थल में असमानता, पुरुषों के बराबर वेतन न मिलना, यौन और शारीरिक उत्पीड़न, रोज़गार में भेदभाव और यहां तक कि मुस्लिम महिलाओं के लिए कपड़ों की स्वतंत्रता का न होना, उन भेदभावों में से एक है जिसका फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों में कई महिलाओं को सामना करना पड़ता है।
हालिया वर्षों में फ़्रांस में जो यूरोप में सबसे अधिक मुस्लिम अल्पसंख्यकों का घर है, आज़ादी के तमाम दावों के बावजूद, मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं पर हिजाब पहनने की वजह से तमाम तरह के दबाव और पाबंदियां लगा दीं, यहां तक कि कभी-कभी हिजाब पहनने पर शिक्षा से भी रोक दिया जाता है।
यूरोपीय राजनीतिक संस्थानों में भी यौन उत्पीड़न और असमानता को अलग-अलग रूपों में देखा जा सकता है, जैसा कि यूरोपीय संसद की कुछ महिला प्रतिनिधियों ने स्वीकार किया है कि उन्हें उनके पुरुष सहयोगियों ने प्रताड़ित किया है।
वास्तव में पश्चिमी समाजों में दावों के बावजूद, महिलाओं को दूसरे दर्जे का इंसान माना जाता है जिनके पास शांतिपूर्ण जीवन के लिए आवश्यक सुरक्षा नहीं है और क़ानून द्वारा गंभीर रूप से संरक्षित नहीं हैं लेकिन वे राजनीतिक और आर्थिक प्रचार के उपकरणों में शामिल हैं। यूरोपीय देशों में महिलाओं के ख़िलाफ हिंसा की संख्या में वृद्धि इतनी ज़्याद हो गयी है कि कैथोलिक इसाई के नेता पोप फ्रांसिस ने भी इसका विरोध किया और पश्चिम में महिलाओं के ख़िलाफ बढ़ती हिंसा की निंदा की।
उन्होंने कहा कि जिन महिलाओं को उनके पति अपने घरों में पीटते और गाली देते हैं, उनकी संख्या बहुत अधिक है।