नवंबर में हुए इस सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाक़ात के अंदाज़ ने सबका ध्यान खींचा था।
डिनर का वक़्त था और पीएम मोदी खाने की मेज पर बैठे थे। इस बीच राष्ट्रपति जिनपिंग वहां पहुंचे और मोदी कुर्सी से खड़े होकर जिनपिंग के पास पहुँच जाते हैं।
दोनों नेताओं ने गर्मजोशी के साथ एक-दूसरे से हाथ मिलाया और कुछ देर बात भी की थी।
साल 2020 में गलवान में एलएसी पर भारतीय-चीनी सैनिकों के बीच हिंसा के बाद दोनों देशों के प्रमुख नेताओं की ये पहली और अभी तक इकलौती मुलाक़ात थी।
इस मुलाक़ात का ज़िक्र करने की वजह हाल ही में चीन द्वारा किया गया एक दावा है। चीन ने एक बयान जारी कर दावा किया है कि पिछले साल बाली में दोनों नेताओं की बैठक हुई थी।
चीन ने अचानक ऐसा दावा क्यों किया?
अगले महीने ब्रिक्स देशों का सम्मेलन होना है और फिर सिंतबर में भारत में जी-20 सम्मेलन होगा. ऐसा में सवाल उठ रहा है कि इन दो बड़े समिट से पहले चीन ने अचानक दोनों देशों की आम सहमति वाले मुद्दे को हवा क्यों दी है?
सवाल के जवाब में दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार डॉ. स्वर्ण सिंह का कहना है कि इस तरह की मुलाक़ातों में हमेशा दोनों तरफ़ से अलग-अलग परिभाषाएं दी जाती हैं।
डॉ. स्वर्ण सिंह कहते हैं, ''देशों के बीच जितना मतभेद होता है, उतनी ही परिभाषाएं निकलती हैं कि बैठक में क्या हुआ। इसके पीछे एक मंशा भी होती है कि बैठक की किस बात को ज़्यादा तवज्जो देना है और किसे तवज्जो नहीं देना है। चूंकि भारत-चीन के बीच मतभेद काफ़ी गहरे हैं, इसलिए ये कोई चौंकाने वाली बात नहीं है कि बैठक को लेकर दोनों के मत अलग-अलग हैं।
वहीं शिव नादर यूनिवर्सिटी के 'इंटरनेशल रिलेशंस एंड गवर्नेंस स्टडीज़' में एसोसिएट प्रोफे़सर जबिन टी जैकब का मानना है कि चीन के इस दावे को ज़्यादा तवज्जो देने की ज़रूरत नहीं है।
जैकब कहते हैं, ''पिछले एक साल से चीन इस नैरेटिव को स्थापित करने में लगा है कि सीमा पर सब कुछ ठीक है। हो सकता है कि जब डिनर के दौरान दोनों नेताओं ने हाथ मिलाया था तो तब जो बातचीत हुई थी उसमें संबंधों को बेहतर बनाने की बात हुई होगी, जो कि आम है।
लेकिन सहमति तो तभी बनेगी जब दोनों देश सीमा पर स्थिरता रखने की कोशिश करेंगे। अगर एक पक्ष की तरफ़ से कोशिश नहीं होगी तो सहमति का मतलब क्या है?''