मोदी सरकार और भारत-खाड़ी के देशों के गहराते रिश्ते
जी20 शिखर सम्मेलन ख़त्म होने के बाद सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान भारत में ही रहे और ये उनका राजकीय दौरा था।
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सऊदी अरब सहित खाड़ी के देशों से भारत के संबंध बीते 10 सालों में गहरे हुए हैं। या यूँ कहें कि मोदी सरकार की विदेश नीति में खाड़ी देशों को ज़्यादा अहमियत दी जा रही है।
ये सवाल कई बार उठते हैं कि नरेंद्र मोदी की हिदुत्व की राजनीति और अल्पसंख्यक समुदाय के ख़िलाफ़ हेट-क्राइम की घटनाओं पर कई बार खाड़ी के देश क्यों चुप रहते हैं? नरेंद्र मोदी सरकार पर अल्पसंख्यक विरोधी होने का आरोप लगाती हैं, तो खाड़ी के देशों को क्यों इससे कोई फ़र्क नही पड़ता।
दिल्ली की जवाहरलाल यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर अश्वनी महापात्रा कहते हैं, "भारत और मध्य-पूर्व के रिश्ते या फिर मौजूदा वर्ल्ड ऑर्डर में देशों के रिश्ते उनकी आर्थिक क्षमता के आधार पर चलते हैं। सऊदी अरब का विज़न 2030 देखेंगे, तो उसमें ये बात है कि वो अब गैस और तेल पर निर्भर ना रह कर अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता लाना चाहता है।
"रह गई बात मोदी की देश में राजनीति की, तो सऊदी अरब, यूएई, क़तर को इससे फ़र्क नहीं पड़ता और ना ही पड़ना चाहिए। ऐसा तो है नहीं कि मुसलमानों को मोदी सरकार नीतिगत तौर पर अलग-थलग कर रही है, कुछ छिटपुट घटनाएँ हो रही हैं उसे लेकर कोई भी देश क्यों प्रतिक्रिया देगा?
कई तरह की घटनाएँ खाड़ी के देशों में होती हैं जिसे लेकर असहज हुआ जा सकता है, लेकिन भारत भी उसके आंतरिक मामलों में दखल नहीं देता। मुझे लगता है कि ये आपसी समझ है कि वो एक-दूसरे के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी ना करे।
महापात्रा के मुताबिक़, भारत और अरब के देशों के बीच रिश्ते सांस्कृतिक, आर्थिक और भू-राजनैतिक स्तर पर जुड़े हैं। लेकिन आर्थिक स्तर पर भारत उनके लिए महत्वपूर्ण देश है।
ऐसा नहीं है कि सऊदी अरब, कुवैत, यूएई, क़तर में भारत के आंतरिक मामलों को लेकर कभी आपत्ति दर्ज नहीं कराई गई। इन देशों के विदेश मंत्रालयों से इसे लेकर बयान जारी किया गया। भारत ने भी इन आपत्तियों पर प्रतिक्रिया देते हुए नूपुर शर्मा को पार्टी से सस्पेंड कर दिया।
धर्मं इस रिश्ते में अहम भूमिका निभाता है। मध्य-पूर्व के देशों को पता है कि दक्षिण एशिया में मुसलमानों की बड़ी आबादी रहती है। यहाँ लगभग 60 करोड़ मुसलमानों की आबादी है और सिर्फ़ भारत में ही 40 करोड़ मुसलमान रहते हैं।
साल 2015 में पहली बार भारतीय एयरफ़ोर्स के अधिकारियों ने सऊदी अरब का दौरा किया।
साल 2018 में यूएई और भारत के बीच पहला द्विपक्षीय नौसेना अभ्यास किया गया। नरेंद्र मोदी और सऊदी अरब के शाही परिवार की नज़दीकी का उदाहरण तब मिला, जब साल 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सऊदी अरब का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘अब्दुल अजीज़ सैश’ दिया गया है।
जेएनयू में अंतराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफ़ेसर स्वर्ण सिंह भी मानते हैं कि बीते एक दशक में दुनिया की राजनीति सैद्धांतिक ना हो कर यथार्थवादी हुई है। लेकिन भारत और खाड़ी के देशों के बीच के रिश्ते का सबस बड़ा टर्निंग प्वाइंट साल 2017 में आया।
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साल 2017 में ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक कॉपरेशन यानी ओआईसी के पूर्ण अधिवेशन में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया।
स्वर्ण सिंह कहते हैं, “साल 1967 में जब ओआईसी की स्थापना हुई थी उस समय इसका नाम ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक कॉन्फ़्रेंस हुआ करता था। उस वक्त इस संगठन ने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रूद्दीन अली अहमद को अधिवेशन में भाषण देने के लिए आमंत्रित किया था।
भारत एक और ग्रुप का हिस्सा है, जिसे आई2यू2 नाम दिया गया है। इसमें इसराइल, यूएई और अमेरिका और भारत शामिल हैं।