इस्राइल पर हमास के हमले के बाद शुरू हुई जंग अब भीषण रूप ले चुकी है। इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हमास को गाजा से नेस्तनाबूद करने की कसम खाई है। दोनों ओर से हो रहे हमलों के कारण हालात बिगड़ते जा रहे हैं। इसके साथ ही आम जरूरत के चीजों के दाम बढ़ने की आशंका तेज हो गई है जिसमें पेट्रोल भी शामिल है।
इस्राइल-हमास लड़ाई के बाद तेल बाजार की स्थिति क्या है?
सऊदी अरब और रूस ने पहले ही 2023 के अंत तक स्वैच्छिक आपूर्ति में कटौती की घोषणा कर दी है। इससे सितंबर के अंत में तेल की कीमतें 10 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं।
इस बीच, अमेरिकी विदेश विभाग में अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा मामलों के पूर्व विशेष दूत डेविड गोल्डविन ने आशंका जताई है कि यह लड़ाई कीमतों की बढ़ोतरी के लिए एक वजह हो सकती है।
वहीं टोर्टोइज कैपिटल के वरिष्ठ पोर्टफोलियो मैनेजर रॉब थम्मेल ने कहा कि तेल की कीमतों में तब तक भारी वृद्धि नहीं होगी जब तक कि ईरान या किसी अन्य देश के कारण होर्मुज जलमार्ग में व्यवधान न हो।
कच्चे तेल के दाम बढ़ने से भारत पर क्या असर?
आमतौर पर माना जाता है कि पेट्रोल-डीजल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत से तय होती है। तेल कंपनियां यह देखती हैं कि पिछले 15 दिनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भावों का औसत क्या है, उसी हिसाब से दाम तय किए जाते हैं। यानी जब कच्चे तेल के दाम घटते या बढ़ते हैं तो उसका असर आम उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ता है।
कौन तय करता है कीमत?
भारत मुख्य रूप से आयात के माध्यम से अपनी घरेलू तेल की मांग को पूरा करता है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी से ज्यादा कच्चा तेल बाहर से मंगवाता है। कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ओपेक ही तय करता है। भारत को भी उसी कीमत पर कच्चा तेल खरीदना पड़ता है, जो ओपेक तय करता है। सरकारी तेल कंपनिया पेट्रोल-डीजल की कीमत रोज तय करती हैं। इसके साथ ही भारत रूस से भी तेल आयात करता है।