मोबाइल न मिलने पर बच्चे खुद को पहुंचा रहे है नुकसान
चीन के बाद भारतीय यूजर्स विश्व में सर्वाधिक ऐप डाउनलोड करते हैं। वर्ष 2021 में देश में गूगल प्ले स्टोर और ऐप स्टोर से 26 अरब 70 करोड़ एप्स डाउनलोड किए गए।
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सेहत खराब करने के साथ मोबाइल की लत बच्चों व किशारों को हिंसक भी बना रही है। मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से उन पर अच्छी-बुरी सूचनाओं की बौछार हुई है। इसका सीधा असर उसके अधीर मन पर पड़ा है। सही-गलत में फर्क किए बिना वह हर उस चीज पा लेना चाहता है, जो उसे पसंद है। इसी चक्कर में बच्चे आक्रामक हो रहे हैं और खुद के साथ अपनों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट बताती है कि बीते साल नाबालिग अपराधियों की संख्या में आठ फीसदी इजाफा हुआ है। विशेषज्ञ इसकी बड़ी वजह मोबाइल की लत बता रहे हैं। वह मोबाइल में दिखने वाली शौन-शौकत से भरपूर और बादशाहत वाली जिंदगी जीने की लालसा पाल लेते हैं। नतीजा जिसका उनको अपराध की दुनिया में ला पटकता है।
दायरा के साथ ख्वाहिशें भी बढ़ीं
विशेषज्ञों का मानना है कि घटनाएं बेशक तीन हैं, लेकिन यह बच्चों में पनप रही आपराधिक प्रवृत्ति की तरफ इशारा कर रही हैं। मोबाइल ने किशारों की पहुंच का दायरा भी बढ़ाया है और ख्वाहिशें भी। पहले वह नई-नई चीजें देखते हैं, फिर उससे पाने का तरीका। इस दौरान अगर कोई अपराध होता है तो मोबाइल ही उनको बचने का तरीका भी बता देता है। हर चीज उनको पैकेज से मिल रही है। वहीं, यह उम्र का वह पड़ाव होता है, जहां उनमें संयम नहीं रहता। जहांगीरपुरी का वाकया तो ज्यादा हैरान करने वाला है। किशोर ने जिस तरह घटना को अंजाम दिया और उसका फिल्मांकन भी करवाया, उससे साफ पता चलता है कि अपराध करने से ज्यादा उसकी कोशिश प्रसिद्धि पाने की थी। तभी उसने वीडियो को वायरल किया। पुलिस भी मानती है कि अपने लोगों के बीच रौब जमाने के लिए उसने इस तरह का कृत्य किया है।
नशेड़ियों जैसी हो जाती है प्रवृति
दिल्ली साइकेट्रिक सोसायटी के उपाध्यक्ष व वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. पंकज कुमार के मुताबिक, पढ़ाई के साथ रोचक गेम्स व उत्तेजक वीडियो देखने से दिमाग में डोपामाइन (रासायनिक संदेशवाहक) को एक किक मिली। इसने उसको खुश किया। बार-बार देखने से उसमें उत्तेजना की प्रकृति नशेड़ियों जैसी रही। बच्चे मोबाइल की इसे पाने के लिए कोशिश करते हैं। इस प्रक्रिया में उनकी सोचने-समझने की शक्ति कमजोर हो जाती है। इससे कोई भी हद उनके लिए मायने नहीं रखती। मोबाइल हासिल करने के लिए घर या बाहर चोरी करते हैं। हिंसक होकर दूसरों पर वार करते हैं। कई बार परेशान होकर आत्महत्या तक की कोशिश कर बैठते हैं। कोरोना काल से देश में मोबाइल के लत तेजी से बढ़ी है।
हादसा नंबर-1
कोविड के दौरान पढ़ाई के लिए मोबाइल मिलने पर दसवीं का एक बच्चा ऑनलाइन गेम्स खेलने के साथ वेब सीरीज भी देेखने लगा। इसका असर स्कूल खुलने के बाद समझ में आया। मोबाइल फोन ले लेने से उसकी व्यवहार नशेड़ियों जैसा हो गया। उसने मां के गहने चोरी कर मोबाइल खरीदा और चुपके से उसका इस्तेमाल करने लगा। पता लगने पर जब पिता ने सख्ती बढ़ाई तो बेटा पंखे से लटक गया। संयोग ठीक था कि पिता को इसी भनक मिली और बच्चे को लेकर अस्पताल पहुंचे। उसका इलाज अभी भी डॉ. पंकज कुमार के क्लीनिक में चल रहा है।
हादसा नंबर-2
मोबाइल के चक्कर में कंझावला में कुछ दिनों पहले 13 साल के एक किशोर ने अपने आठ वर्षीय दोस्त की हत्या कर दी थी। हुआ यह कि दोनों पास के तालाब पर गए थे। उनके हाथ में मोबाइल थे, लेकिन आरोपी का मोबाइल डिस्चार्ज हो गया। मांगने पर मना करते ही आरोपी ने ईंट मार-मार कर दोस्त की हत्या कर दी। खुद को बचाने के लिए उसका शव को जंगल में फेंक दिया। बाद में पुलिस जांच में इसका खुलासा हुआ।