यूपी नगर निकाय चुनाव को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ यूपी सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि वह इस मामले में चार जनवरी को सुनवाई करेगी। राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि उच्च न्यायालय पांच दिसंबर की मसौदा अधिसूचना को रद्द नहीं कर सकता है, जो अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों के अलावा अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए शहरी निकाय चुनावों में सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है। आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला? सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला दे सकता है? यूपी सरकार ने कोर्ट में क्या दलील दी है?
पहले जान लीजिए क्या है मामला
पांच दिसंबर को यूपी सरकार ने नगर निकाय चुनाव के लिए आरक्षण की अधिसूचना जारी की थी। इसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। कहा गया कि यूपी सरकार ने आरक्षण तय करने में सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले का पालन नहीं किया है।
मंगलवार 27 दिसंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया था। कोर्ट ने बिना ओबीसी आरक्षण लागू किए ही चुनाव कराने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने कहा कि बगैर ट्रिपल टेस्ट की औपचारिकता पूरी किए ओबीसी को कोई आरक्षण नहीं दिया जाएगा।
कोर्ट ने कहा चूंकि नगर पालिकाओं का कार्यकाल या तो खत्म हो चुका है या फिर खत्म होने वाला है, ऐसे में राज्य सरकार/ राज्य निर्वाचन आयोग तत्काल चुनाव अधिसूचित करें। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि ट्रिपल टेस्ट संबंधी आयोग बनने पर ट्रांसजेंडर्स को पिछड़ा वर्ग में शामिल किए जाने के दावे पर गौर किया जाएगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इसी आदेश के खिलाफ यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
यूपी की तरह ही चार अन्य राज्यों में भी नगर निकाय चुनाव में आरक्षण का पेंच फंसा था। इन मामलों में भी पहले हाईकोर्ट ने सरकार के खिलाफ ही आदेश दिया था। जैसा कि यूपी में भी हुआ है। इसके बाद सभी राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। आइए जानते हैं चारों राज्यों में क्या-क्या हुआ था?
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सोर्स अमर उजाला