इस हादसे के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं जिनमें काफ़ी अफ़रा-तफ़री का माहौल नज़र आ रहा है।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, सालों से गृह युद्ध झेल रहे यमन की राजधानी सना के इस स्कूल में लोग दान स्वरूप लगभग नौ डॉलर (क़रीब 740 रुपये) की राशि लेने पहुंचे थे।
यमन के गृह मंत्रालय ने कहा है कि इस घटना के बाद पैसे बांटने के लिए ज़िम्मेदार लोगों को पकड़ लिया गया है और मामले की जांच शुरू कर दी गई है।
मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बताया है कि इस घटना की वजह स्थानीय अधिकारियों के साथ समन्वय बनाए बिना अचानक पैसों का वितरण है।
एक स्वास्थ्यकर्मी ने बताया है कि इस घटना में कई लोग घायल हुए हैं जिनमें से 13 की हालत काफ़ी गंभीर है।
वहीं, हूती विद्रोहियों की ओर से एक सुरक्षा अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा है कि मरने वालों में महिलाएं एवं बच्चे भी शामिल हैं।
वहीं, समाचार एजेंसी एपी ने दो प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से कहा है कि हूती विद्रोहियों से जुड़े लड़ाकों ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए हवा में गोलियां चलाई थीं जो संभवत: एक बिजली के तार से लग गयी। इससे एक धमाका हो गया जिससे लोगों के बीच अफ़रा-तफ़री मच गई।
ये घटना रमज़ान के अंतिम दिनों में सामने आई है. इन दिनों इस्लाम मानने वाले ज़्यादातर लोग व्रत रखते हैं।
आठ सालों से संघर्ष जारी
यमन पिछले कई सालों से हिंसक संघर्ष झेल रहा है। साल 2015 में हूती विद्रोहियों ने यमन के पश्चिमी हिस्से के ज़्यादातर भाग पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था। इसके साथ ही तत्कालीन राष्ट्रपति मंसूर हादी ने विदेश में शरण ली थी।
इसके बाद सऊदी अरब के नेतृत्व में अरब देशों की गठबंधन सेना ने हादी का शासन पुनर्स्थापित करने के लिए संघर्ष शुरू किया।
इसके बाद से यमन में संघर्ष जारी है जिसमें डेढ़ लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई।
इसके चलते यमन की 75 फीसद आबादी यानी लगभग 2.3 करोड़ से ज़्यादा लोगों को किसी न किसी तरह की मदद की ज़रूरत है।
पिछले हफ़्ते दोनों पक्षों के बीच हुई क़ैदियों की अदला-बदली को आठ साल से जारी संघर्ष को ख़त्म करने के प्रयास के रूप में देखा गया था।
हूती सुप्रीम इवॉल्यूशनरी कमेटी के प्रमुख मोहम्मद अली अल-हूती ने बुधवार की भगदड़ के लिए देश के मानवीय संकट को ज़िम्मेदार ठहराया है।
उन्होंने ट्विटर पर लिखा है, "ये जो कुछ हुआ है, हम उसके लिए आक्रमणकारी देशों को ज़िम्मेदार ठहराते हैं। इसके साथ ही इस कड़वे सच के लिए भी उन्हें ज़िम्मेदार ठहराते हैं कि यमन के लोग प्रतिबंधों और आक्रमण की वजह से इन हालात में रहने को मजबूर हैं।