फ्रांस के बार-बार क्यों भड़क रही है हिंसा?
पिछले मंगलवार को एक ट्रैफिक लाइट पर कार न रोकने पर पुलिस ने गोली चलाई और नाहेल की मौत हो गई। ये वारदात पेरिस के नजदीकी इलाके नानतेरे में हुई।
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फ्रांस के उपनगरीय इलाकों पर मीडिया का ध्यान तभी जाता है जब वो आग की लपटों से घिरे हों. देश में भड़की हिंसा की मौजूदा आग भी इसका अपवाद नहीं है। फ्रांस में कई शहर हिंसा की आग में घिरे रहे. ये हिंसा 17 साल के किशोर नाहेल एम की पुलिस की गोली से हुई मौत के बाद भड़की।
अब इस त्रासदी की वजह से एक बार फिर ‘बेनेल्यू’ चर्चा के केंद्र में है. बेनेल्यू मतलब फ्रांस के उपनगरीय इलाके। पूरे देश में ये इलाके एक बार फिर हिंसा की आग में जल उठे। कुछ लोगों की निगाह में ये हिंसा गरीबी और भेदभाव का नतीजा है। फ्रांसीसी समाज में मौजूद सामाजिक बुराइयों की वजह से इस तरह के इलाके जब-तब हिंसा की लपटों से घिर जाते हैं।
लेकिन कुछ लोग इस राय से इत्तेफाक नहीं रखते है. वो दंगों को आम तौर पर कानून-व्यवस्था का सवाल मानते हैं।
उनकी राय में फ्रांस में अपराधियों के गैंग और छोटे अपराधी एक त्रासद मौत पर भड़के गुस्से को मार-काट मचाने के बहाने के तौर पर इस्तेमाल करते रहे।
हिंसा और टकराव का इतिहास
कुछ लोगों ने उन इलाकों में पुलिस की चुनौतियों की बात की है, जहां काफी ज्यादा अपराध होते हैं। 2012 से लेकर 2020 के बीच सुरक्षा बलों के 36 लोग ऐसे इलाकों में मारे गए हैं। हर साल अपराधियों से टकराव में पांच हजार सुरक्षाकर्मी घायल होते हैं। मौजूदा दंगों के दौरान बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी घायल हुए हैं।
नाहेल एम की मौत कोई इकलौती घटना नहीं है। पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक़ पिछले साल ड्राइविंग करने के दौरान पुलिस के रोके जाने से इनकार करने पर 13 लोगों को मार डाला गया था।
फ्रांस के समाज में जो तनाव खदबदा रहा है उससे हिंसा की स्थितियां बन रही हैं. हर मौत से हिंसा का विस्फोट होता है और फिर पुलिस इसका जवाब देती है। इससे पुलिस और लोगों के बीच अविश्वास की खाई और चौड़ी होती जा रही है।
फ्रांस के उपनगरीय इलाकों में हिंसा की पहली घटना 1979 में हुई थी। लियोन के एक गरीब उपनगरीय इलाके वॉल-एन-वेलिन में कार चोरी के आरोप में पकड़े गए एक किशोर ने अपने हाथ की नसें काट ली थीं।
दो साल बाद कार चोरी के ही एक मामले को सुलझाने की कोशिश में नजदीकी वेनिसिये इलाके में दंगे भड़क उठे थे। 1990 और 1993 में इन इलाकों में दो युवकों की मौत के बाद भी ऐसी हिंसा हुई थी।
बेरोजगारी, ड्रग्स और भेदभाव
देश के शहरों के गरीब इलाके कम से कम 50 लाख लोगों का ठिकाना बने हुए हैं। इनमें से कई लोग तीन या चार पीढ़ी पहले फ्रांस आए थे। थिंक टैंक इंस्टीट्यूट मॉन्टेन के मुताबिक़ इन इलाकों में रहने वाले 57 फीसदी बच्चे उन समुदायों से आते हैं जो गरीबी में रहते हैं।
जबकि बाकी फ्रांसीसी आबादी में 21 फीसदी बच्चे ही गरीब बैकग्राउंड से आते हैं। गरीब इलाकों के बच्चों में इन इलाकों की तुलना में तीन गुना ज्यादा बेरोजगारी है।
इन इलाकों को परिवहन व्यवस्था से जोड़ने के लिए अरबों डॉलर खर्च करने के बाद भी यहां के निवासियों की सबसे बड़ी शिकायत है कि वे अलग-थलग पड़े हुए हैं।
नई सार्वजनिक इमारतें बढ़ी हैं. लेकिन फ्रेंच समाजशास्त्री क्रिश्चियन मोहाना का कहना है कि सार्वजनिक सेवाओं के लिए खर्चों में कटौती का बड़ा ही घातक असर हुआ है।
उन्होंने मिडिया से बात करते हुए कहा,’’ हालात ऐसे हैं कि ऐसे लोगों के लिए स्कूलों को ज़िंदगी बेहतर करने का जरिया नहीं माना जा रहा है। बेरोजगारी, ड्रग्स और भेदभाव बरकरार है।
पुलिस से इन लोगों का संबंध भी एक बड़ी समस्या है. प्रवासी मूल के लोग अक्सर ये शिकायत करते हैं कि पुलिस अफसर भेदभाव करते हैं।
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विभाग ने कहा है फ्रांस के मौजूदा दंगों को देश में कानून लागू करने वाली एजेंसियों के अंदर नस्लवाद से जुड़ी समस्याओं को खत्म करने का अवसर के तौर पर देखा जा सकता है।