कैसे बना मुस्लिम पर्सनल लॉ एक्ट?
मुस्लिम पर्सनल लॉ सालों से विवाद में है लेकिन मुसलमान धर्म गुरुओं का कहना है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के बारे में लोगों के अंदर ग़लतफ़हमियां जानकारी की कमी के कारण है।
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प्रोफ़ेसर मुस्तफा कहते हैं, "मेरे हिसाब से ये अनुवाद एक सियासी प्रोजेक्ट था। इसमें बहुत-सी ग़लतियां थीं। अंग्रेज़ अदालतों ने चार्ल्स हैमिल्टन की अल-हिदाया के हिसाब से फ़ैसले सुनाए।
''वो अंग्रेज़ जो हिंदुस्तान आकर वकालत करना चाहते थे, उनके लिए किताब अनिवार्य कर दी गई, तो जो मुस्लिम पर्सनल लॉ आज है वो इस्लामिक लॉ नहीं है, वो क़ानून इस ग़लत अनुवाद वाले अल-हिदाया पर आधारित है।
डॉक्टर ताहिर महमूद के मुताबिक़ जब अंग्रेज़ आए तो उन्होंने समझा कि सब ही समुदायों के लोगों में रिवाज एक जैसा है और उन्होंने ने फ़ैसले स्थानीय कस्टम के हिसाब से देने शुरू कर दिए।
डॉक्टर महमूद कहते हैं, "1873 के मद्रास सिविल कोर्ट एक्ट और 1876 के अवध लॉज़ एक्ट में लिखा गया कि मज़हबी क़ानून पर स्थानीय परंपरा को तरजीह दी जाएगी।
इसमें महिलाएं पीड़ित हुईं क्योंकि स्थानीय प्रथाओं में महिलाओं को कोई अधिकार नहीं दिए गए थे, जायदाद में महिलाओं को कोई शेयर नहीं मिलता था। हालाँकि मुसलमानों में औरतों को जायदाद में आधा हिस्सा मिलने का रिवाज है।
ये क़दम हिन्दू क़ानून के मुताबिक़ था लेकिन शरिया के बिल्कुल विपरीत. डॉक्टर ताहिर महमूद कहते हैं, "इसको ख़त्म कराने के लिए उलेमा ने एक अभियान छेड़ा, उसके नतीजे में 1937 में मुस्लिम पर्सनल लॉ एक्ट बना"
भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ मुख्य रूप से 1937 के मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लिकेशन अधिनियम से संचालित होता है। यह अधिनियम मुसलमानों के बीच विवाह, तलाक़, विरासत और रखरखाव के मामलों में इस्लामी क़ानून को लागू करने को मान्यता देता है।
लेकिन ये क़ानून 1935 में मौजूदा पाकिस्तान के सूबा सरहद (अब ख़ैबर-पख्तूनख्वाह) में लाया गया था।
डॉक्टर ताहिर महमूद कहते हैं, "मौजूदा पाकिस्तान के सूबा सरहद में एक क़ानून बना जिसका नाम मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट 1935 था. उस क़ानून का सब कुछ उठाकर केंद्र में लाया गया और 1937 वाला एक्ट लागू किया गया"
मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार की मांग
समान नागरिक संहिता पर क़ानून बनाना सालों से बीजेपी के चुनावी मैनिफेस्टो में रहा है।
बीजेपी सरकार उसे जल्द-से-जल्द लागू करना चाहती है और सूत्रों के अनुसार इस संदर्भ में संसद के मॉनसून सत्र में ही एक बिल पेश किया जाएगा जिसे पारित कराने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी हर मुमकिन कोशिश करेगी।
भारत में, विभिन्न धार्मिक समुदाय पारिवारिक मामलों में अपने व्यक्तिगत क़ानूनों का पालन करते हैं, जो उनके संबंधित धार्मिक ग्रंथों और रीति-रिवाजों पर आधारित हैं।
ये पर्सनल लॉ शादी, तलाक़, गोद लेने और विरासत समेत दूसरे पारिवारिक मामलों को नियंत्रित करते हैं इसीलिए विभिन्न धार्मिक समुदायों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं।
समान नागरिक संहिता का मतलब सभी नागरिकों के लिए एक समान व्यक्तिगत कानून लागू होगा।
यूसीसी की अवधारणा की जड़ें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में हैं, जो सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता के अधिनियम की सिफ़ारिश करती है, हालांकि यूसीसी को लागू करना भारत में कई वर्षों से बहस और चर्चा का विषय रहा है।